शरद कटियार
भारत ने आतंकवाद के विरुद्ध एक बार फिर अपने संकल्प को स्पष्ट कर दिया है। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ नामक संयुक्त सैन्य कार्रवाई में भारतीय सेना, वायुसेना और नौसेना ने पाकिस्तान और पीओके (पाक अधिकृत कश्मीर) में स्थित 9 आतंकी ठिकानों को लक्ष्य बनाकर उन्हें पूरी तरह ध्वस्त कर दिया। यह ऑपरेशन न केवल भारत की सैन्य शक्ति का परिचायक है, बल्कि यह आतंकवाद के प्रति उसकी ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति की प्रत्यक्ष पुष्टि भी है।
भारत लंबे समय से आतंकवाद से पीड़ित रहा है। कारगिल युद्ध, 26/11 मुंबई हमला, पुलवामा जैसी घटनाएं आज भी जनमानस में जख्म की तरह दर्ज हैं। इन घटनाओं के बाद भारत ने अपनी कूटनीति में जहां संयम और वैश्विक समर्थन का रास्ता चुना, वहीं सैन्य स्तर पर रणनीतिक सोच और शक्तिशाली प्रतिशोध की नीति भी विकसित की। 2016 की सर्जिकल स्ट्राइक और 2019 की बालाकोट एयरस्ट्राइक इसके उदाहरण हैं। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ उसी श्रृंखला की अगली कड़ी है, लेकिन कहीं अधिक संगठित, व्यापक और सटीक।
इस अभियान को ‘ऑपरेशन सिंदूर’ नाम देना एक प्रतीकात्मक और भावनात्मक निर्णय प्रतीत होता है। सिंदूर भारतीय संस्कृति में एक स्त्री की रक्षा, सम्मान और अखंडता का प्रतीक है। इस नाम के माध्यम से यह संदेश दिया गया है कि भारत अब अपनी मातृभूमि की रक्षा में कोई कोताही नहीं बरतेगा। जो भी उसके नागरिकों की शांति, सुरक्षा और अखंडता के विरुद्ध जाएगा, उसे उसी की भाषा में उत्तर मिलेगा।
9 ठिकानों पर लक्षित हमला जिनमें बहावलपुर (पाकिस्तान): जैश-ए-मोहम्मद का मुख्यालय। यह वही संगठन है जिसने 2019 में पुलवामा हमले की जिम्मेदारी ली थी। मुरिदके (पाकिस्तान): लश्कर-ए-तैयबा का गढ़, जो 26/11 हमले में संलिप्त था।गुलपुर (पीओके): आतंकियों के जमावड़े का प्रमुख केंद्र। सवाई कैंप: पीओके के तंगधार क्षेत्र में स्थित लश्कर का बड़ा अड्डा।बिलाल कैंप: जैश का लॉन्चपैड, जहां से घुसपैठ की योजना बनाई जाती थी।कोटली: 50 से अधिक आतंकियों की क्षमता वाला शिविर।बरनाला: एलओसी से केवल 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित शिविर।सरजाल: जैश का प्रशिक्षण केंद्र, अंतरराष्ट्रीय सीमा के बेहद करीब। मेहमूना: हिज्बुल मुजाहिदीन का प्रशिक्षण शिविर।
‘ऑपरेशन सिंदूर’ यह दर्शाता है कि अब भारत केवल जवाब देने की प्रतीक्षा नहीं करता, बल्कि खतरों को पूर्व में ही पहचान कर उन्हें जड़ से खत्म करने की नीति पर काम कर रहा है। यह proactive रणनीति भारत की सैन्य नीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव है। 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ लड़ी गई निर्णायक लड़ाई, 1999 में कारगिल युद्ध और अब इस तरह के लक्षित हमले भारत की सैन्य कुशलता और मनोबल की निरंतर वृद्धि का प्रमाण हैं।
इस ऑपरेशन का एक उद्देश्य पाकिस्तान को चेतावनी देना भी है कि आतंकवादियों को पनाह देना अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार नहीं किया जाएगा। भारत ने यह कार्रवाई ऐसे समय में की है जब वैश्विक राजनीति में शक्ति संतुलन की नई रेखाएं खींची जा रही हैं। अमेरिका, रूस और चीन जैसे देश आतंकवाद के विषय में अपने-अपने हितों के अनुसार व्यवहार करते हैं, परंतु भारत ने एक स्पष्ट और निर्भीक रुख अपनाया है। इससे भारत की वैश्विक छवि एक जिम्मेदार, परंतु सशक्त राष्ट्र के रूप में और मजबूत होती है।
भारत की यह कार्रवाई सैन्य दृष्टि से साहसी होने के साथ-साथ कूटनीतिक रूप से संतुलित भी रही है। यह पूरी कार्रवाई केवल आतंकवादियों के ठिकानों पर केंद्रित थी, जिससे पाकिस्तान को कोई प्रत्यक्ष युद्ध का बहाना नहीं मिला। साथ ही, इससे यह भी स्पष्ट हो गया कि भारत की लड़ाई किसी धर्म या देश से नहीं, बल्कि उस मानसिकता से है जो निर्दोष नागरिकों की हत्या को जिहाद का नाम देती है।
‘ऑपरेशन सिंदूर’ एक संकेत है कि भारत अब सीमा पार से होने वाली आतंकवादी गतिविधियों को केवल कूटनीतिक मंचों पर उठाकर छोड़ने वाला नहीं है। भारत अब टेक्नोलॉजी, खुफिया तंत्र और सामरिक योजना के बल पर आतंकवाद को जड़ से समाप्त करने की ओर बढ़ रहा है।
भविष्य में भारत को साइबर आतंकवाद, ड्रोन से होने वाले हमलों और घुसपैठ की नई तकनीकों से भी जूझना होगा। इसके लिए उसे केवल सैन्य शक्ति ही नहीं, बल्कि खुफिया एजेंसियों, सायबर कमांड और आंतरिक सुरक्षा तंत्र को भी सशक्त करना होगा।
जब राष्ट्रहित की बात आती है, तब राजनैतिक दलों को एकजुट होकर देश का समर्थन करना चाहिए। विगत में देखने में आया कि कुछ राजनैतिक दल ऐसे ऑपरेशनों को लेकर सवाल उठाते हैं, जिससे सैनिकों के मनोबल पर प्रभाव पड़ता है। यह समय है जब राष्ट्र की सुरक्षा को दलगत राजनीति से ऊपर रखा जाए। विपक्ष को चाहिए कि वह सरकार से सवाल पूछे, लेकिन राष्ट्र की एकता और अखंडता के साथ खड़ा भी हो।
भारत की सैन्य कार्रवाई केवल सरकार या सेना का कर्तव्य नहीं है, बल्कि नागरिकों की जागरूकता और सहयोग भी उतना ही महत्वपूर्ण है। सीमावर्ती क्षेत्रों में रहने वाले नागरिकों को सतर्क रहना चाहिए। साथ ही, युवाओं को राष्ट्रवाद के नाम पर अंधभक्ति में नहीं बल्कि जागरूकता में भागीदारी करनी चाहिए। सोशल मीडिया पर गलत सूचनाओं से बचना, सेना का सम्मान करना और राष्ट्रहित को प्राथमिकता देना अब हर भारतीय की जिम्मेदारी है।
‘ऑपरेशन सिंदूर’ केवल एक सैन्य कार्रवाई नहीं, बल्कि भारत की नई सुरक्षा नीति की घोषणा है। यह एक संदेश है कि अब भारत सहन नहीं करेगा, बल्कि जवाब देगा। यह शहीदों को श्रद्धांजलि है, और उन मासूमों के लिए न्याय है जो आतंक का शिकार बने।
आज का भारत अब चुप नहीं बैठता, वह अपने दुश्मनों को उनके अड्डों पर जाकर खामोश करता है। यह वह भारत है जो अपने सिंदूर, अपनी मिट्टी और अपने नागरिकों के सम्मान के लिए हर हद तक जा सकता है।