जनपद में नौनिहालों की जिंदगी जोखिम पर, एआरटीओ की लापरवाही ने बढ़ाया खतरा
फर्रुखाबाद: जनपद में स्कूली बच्चों को ढोने वाली मारुति वैनों (school vans) में अवैध रूप से गैस किट (gas kit) लगाकर धड़ल्ले से संचालन किया जा रहा है। नियमों की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं और इन वाहन मालिकों पर न तो कोई सख्ती हो रही है और न ही किसी प्रकार का नियमित निरीक्षण। नतीजन—स्कूल जाने वाले नौनिहाल रोज खतरे के साए में सफर करने को मजबूर हैं।
स्कूलों के बाहर सुबह-शाम कतार लगाकर खड़ी रहने वाली अधिकांश मारुति वैनों में अनधिकृत, घटिया और बिना सुरक्षा मापदंडों वाली गैस किट लगाई गई है।
ये वैनें
फिटनेस के बिना,
अधिक भार लेकर,
सुरक्षा किट, आपातकालीन गेट, अग्निशमन यंत्र के बिना,
पूरा-का-पूरा इंजेक्शन सिस्टम छेड़छाड़ के साथ
चलती रहती हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार ऐसी गैस किट किसी भी समय धमाका कर सकती है, और हादसे की दशा में बचाव की कोई संभावना नहीं रही। जनपद का परिवहन विभाग हालात देखकर भी आँखें बंद किए बैठा है।
एआरटीओ आफिस द्वारा
न तो नियमित चेकिंग हो रही,
न फिटनेस कैंप का आयोजन,
न ही स्कूल प्रबंधन पर कोई दबाव।
अभिभावकों का आरोप है कि एआरटीओ सुभाष राजपूत की लापरवाही से परिवहन विभाग पूरी तरह निष्क्रिय हो गया है। कभी-कभार चलने वाली औपचारिक कार्रवाई केवल काग़ज़ी खानापूर्ति साबित हो रही है।
अभिभावक भयभीत हैं। उनका कहना है—
“हम अपने बच्चों को स्कूल भेजते हैं या मौत के मुँह में? प्रशासन कब जागेगा? रोज हादसे का डर सताता है।”
यह स्थिति उस समय और गंभीर हो जाती है जब एक ही मारुति वैन में 15–18 बच्चों को ठूंसकर बैठाया जाता है। गर्मी, धुआं, गैस लीक—सब कुछ बच्चों की सेहत और सुरक्षा के लिए सीधे खतरे है! पिछले कई जिलों में अवैध गैस किट लगी स्कूल वैनों में भयंकर हादसे हुए हैं। फर्रुखाबाद में भी स्थिति बिल्कुल वैसी ही है। लेकिन प्रशासन इस मुद्दे पर चुप्पी साधे बैठा है मानो मरने के बाद कार्रवाई तय हो।
अधिकांश स्कूल केवल अपनी सुविधा और सस्ती व्यवस्था के लिए इन अवैध वैनों को अनुमति दे देते हैं जबकि स्कूल बस सुरक्षा मानकों में जीपीएस,फायर सेफ्टी वैध परमिट, फिटनेस,प्रशिक्षित चालक,स्पीड गवर्नर,अनिवार्य हैं। लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि नियम किताबों में हैं और बच्चों की जान ड्राइवरों की मरजी पर।
जनपद के अभिभावकों ने मांग की है कि अवैध गैस किट लगी स्कूल वैनों की तुरंत जांच की जाए, फिटनेस और परमिट अनिवार्य रूप से चेक किए जाएं, स्कूल प्रबंधन को जिम्मेदार बनाया जाए, और दोषी वाहन संचालकों पर कठोर कार्रवाई की जाए क्योंकि यह मामला केवल वाहन नियमों का नहीं, बल्कि नौनिहालों की जिंदगी बचाने का है।


