2 साल, 120 तारीखें और 3 करोड़: अतुल सुभाष की 40 पन्नों की दर्दनाक दास्तान
प्रशांत कटियार ✍🏿
यह घटना अतुल सुभाष की दुखद कहानी को और भी गहराई से उजागर करती है, जिसने अपनी शादी के पांच साल बाद आत्महत्या का कदम उठाया। उनके जीवन में आए बदलावों ने केवल व्यक्तिगत त्रासदी का रूप नहीं लिया, बल्कि यह समाज और कानून की विफलताओं का भी स्पष्ट संकेत है। पत्नी द्वारा मांगे गए 3 करोड़ के गुजारा भत्ते और बच्चे के चेहरे को देखने से रोकने की स्थिति ने उनके मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित किया।अ
तुल का 1.5 घंटे का सुसाइड वीडियो और 24 पृष्ठ का डेथ नोट इस बात का गहरा प्रमाण हैं कि उन्होंने कितनी पीड़ा सहन की। जौनपुर फैमिली कोर्ट की जज रीता कौशिक द्वारा 5 लाख रुपए की मांग ने उनकी परेशानियों को और बढ़ा दिया। यह सवाल उठता है कि क्या हमारे कानून पुरुषों को पर्याप्त सुरक्षा प्रदान करते हैं।
इस स्थिति ने पुरुषों के मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं को भी उजागर किया है। अक्सर, पुरुषों को अपनी भावनाएँ व्यक्त करने में कठिनाई होती है, और संकट के समय में उन्हें उपेक्षा का सामना करना पड़ता है। अतुल की कहानी हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि आत्महत्या केवल एक व्यक्तिगत निर्णय नहीं है; यह समाज की संरचना और उसके कानूनों पर भी गंभीर प्रश्न उठाती है।अतुल की पत्नी ने उसके परिवार पर दहेज के आरोप लगाए, जबकि उसने अपनी पत्नी को उसके परिवार की मदद के लिए लाखों रुपए दिए। यह स्थिति और भी जटिल हो जाती है जब उनकी पत्नी के पिता की शादी के तुरंत बाद बीमारी से मौत हो गई, और उन्होंने हत्या की धाराओं के तहत FIR दर्ज करवाई, जिसमें दावा किया गया कि “दहेज” की मांग के कारण उनके पिता की सदमे से मौत हुई। अतुल को पिछले दो साल में 120 बार पेशी पर जाना पड़ा, जो उनकी मानसिक स्थिति को और भी बिगाड़ने वाला साबित हुआ। यह घटनाएँ इस बात को दर्शाती हैं कि हमें एक ऐसा समाज बनाने की दिशा में कदम बढ़ाने की आवश्यकता है, जहां सभी की आवाज़ सुनी जाए और मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों को गंभीरता से लिया जाए।अतुल की कहानी हमें याद दिलाती है कि हमें एक सुरक्षित और समान वातावरण की आवश्यकता है, जहां किसी को भी अपने जीवन को समाप्त करने के लिए मजबूर न होना पड़े। यह केवल अतुल की कहानी नहीं है; यह हमारे समाज की कहानी है, और इसे बदलने की जिम्मेदारी हम सभी की है। हमें मिलकर एक ऐसा समाज बनाने का प्रयास करना चाहिए, जहां सभी को समान अवसर और समर्थन मिले।