प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसलों में हिंदी और अंग्रेजी के मिश्रण के बढ़ते प्रचलन पर गंभीर आपत्ति जताते हुए इसे “गलत और अस्वीकार्य परंपरा” करार दिया है। न्यायमूर्ति राजीव मिश्रा और न्यायमूर्ति अजय कुमार द्वितीय की खंडपीठ ने आगरा की सत्र अदालत द्वारा दिए गए 54 पन्नों के निर्णय को मिश्रित भाषा के प्रयोग का “अभूतपूर्व उदाहरण” बताया और मामले की प्रति मुख्य न्यायाधीश को भेजने का निर्देश दिया। साथ ही प्रदेश के सभी न्यायिक अधिकारियों को यह आदेश उपलब्ध कराने को कहा गया।
कोर्ट ने कहा कि हिंदी भाषी प्रदेश में निर्णयों को हिंदी में लिखने का उद्देश्य यह है कि एक आम वादी-प्रतिवादी भी अदालत की बात और उसके तर्कों को समझ सके। यदि आधा निर्णय अंग्रेजी और आधा हिंदी में हो तो आम व्यक्ति निर्णय का सार ही समझ नहीं पाएगा। अदालत ने पाया कि संबंधित फैसले के 199 पैरा में से 63 अंग्रेजी, 125 हिंदी और 11 दोनों भाषाओं के मिले-जुले थे। कई पैरा ऐसे भी थे जिनमें आधा वाक्य हिंदी और आधा अंग्रेजी में लिखा गया था।
हाईकोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिया कि यदि निर्णय हिंदी में लिखा गया हो तो उच्च न्यायालय या सुप्रीम कोर्ट के अंग्रेजी में दिए गए उद्धरणों का हिंदी अनुवाद भी अवश्य दिया जाए। वहीं अंग्रेजी में लिखे फैसलों में हिंदी में दर्ज डाइंग डिक्लेरेशन जस का तस अपनाया जा सकता है।
मामला आगरा के बरहन थाना क्षेत्र से जुड़ा है, जहां ट्रायल कोर्ट ने वर्ष 2021 में दहेज हत्या के केस में आरोपी पति रवि को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया था। मृतका अंकिता के पिता वेद प्रकाश त्यागी ने इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी।
हाईकोर्ट ने साक्ष्यों की समीक्षा के बाद ट्रायल कोर्ट के फैसले पर मुहर लगा दी। कोर्ट ने कहा कि मृतका की मृत्यु विवाह के सात वर्ष के भीतर और विषाक्तता से जरूर हुई थी, परंतु दहेज मांग से जुड़ी क्रूरता का कोई ठोस प्रमाण अदालत में पेश नहीं किया गया। गवाहों के बयान परस्पर विरोधी पाए गए। पति द्वारा पत्नी को अस्पताल ले जाना, उपचार का खर्च वहन करना और अंतिम संस्कार करना उसके सद्भावपूर्ण आचरण को दर्शाता है।
अभियोजन मृत्यु से ठीक पहले किसी भी प्रकार की क्रूरता या उत्पीड़न साबित करने में विफल रहा, इसलिए दहेज हत्या की कानूनी परिकल्पना भी इस मामले में लागू नहीं होती। हालांकि, हाईकोर्ट ने फैसले को बरकरार रखते हुए ट्रायल कोर्ट की लिखावट शैली पर गंभीर आपत्ति दर्ज की और इसे सुधारने हेतु स्पष्ट निर्देश जारी किए।




