उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा राज्य है, जिसकी शिक्षा व्यवस्था पर पूरे देश की निगाहें टिकी रहती हैं। यहाँ के 75 ज़िलों में हज़ारों सरकारी और निजी स्कूल हैं, जहाँ लाखों छात्र हर साल एनसीईआरटी की किताबों से पढ़ते हैं। इन किताबों की आपूर्ति में पारदर्शिता और गुणवत्तापूर्ण वितरण की आवश्यकता लंबे समय से महसूस की जाती रही है, लेकिन हालिया वर्षों में किताबों की बिक्री को लेकर जो शिकायतें सामने आ रही हैं, उन्होंने शिक्षा व्यवस्था की जड़ों को झकझोर दिया है।
फर्रुखाबाद, लखनऊ, कानपुर, प्रयागराज, बरेली, वाराणसी, गाजियाबाद, मेरठ, आज़मगढ़, गोरखपुर और अन्य जिलों से लगातार आ रही शिकायतें दर्शाती हैं कि एनसीईआरटी की किताबों की अनिवार्यता का दुरुपयोग करके निजी स्कूलों में लाखों का घोटाला किया जा रहा है।
अंतर्राष्ट्रीय हिंदू सेना व्यापार प्रकोष्ठ के ज़िला अध्यक्ष जितेन्द्र अग्रवाल ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर फर्रुखाबाद के जिला विद्यालय निरीक्षक (DIOS) दुबे पर आरोप लगाया कि वे निजी स्कूलों और पुस्तक विक्रेताओं की मिलीभगत से भारी कमीशन के बदले छात्रों पर महंगी किताबें थोप रहे हैं।
शिकायत में कहा गया कि जिलों में NCERT की किताबें बाजार दर से 30-50% अधिक दामों में बेची जा रही हैं और हर साल ₹2.5 करोड़ से ₹5 करोड़ तक का अवैध कारोबार हो रहा है।
यह कोई अकेला मामला नहीं है – राज्यव्यापी समस्या
कैसे होता है खेल?
निजी स्कूल एक ही दुकान या वितरक से किताबें खरीदने के लिए छात्रों को बाध्य करते हैं। वहीं से कमीशन लिया जाता है।
विद्यालयों की मान्यता, निरीक्षण, और पुस्तकों के चयन की निगरानी के बावजूद ज़्यादातर अधिकारी मूकदर्शक बने रहते हैं या खुद भी इसमें लिप्त रहते हैं।
सैकड़ों शिकायतें आईजीआरएस पोर्टल पर की जाती हैं, लेकिन ज़्यादातर मामलों में जांच सिर्फ कागज़ों पर होती है।
बरेली के एक अभिभावक ने बताया कि उनके बेटे की कक्षा 5 की किताबों का सेट ₹1,800 में दिया गया, जबकि वही किताबें NCERT की वेबसाइट पर ₹950 में उपलब्ध थीं।
लखनऊ के एक विद्यालय में तो 8वीं तक के छात्रों को किताबों के साथ-साथ अनावश्यक कॉपी सेट और प्रोजेक्ट फाइल खरीदने के लिए भी मजबूर किया गया।
सीबीएससी , आईसीएससीऔर शिक्षा निदेशालय का स्पष्ट निर्देश है कि किसी भी स्कूल को विद्यार्थियों को किसी विशेष विक्रेता से किताब खरीदने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।
नेशनल एजुकेशन पॉलिसी (NEP 2020) में किताबों की उपलब्धता को पारदर्शी और सस्ती बनाने का निर्देश है।
उत्तर प्रदेश शिक्षा अधिनियम के अंतर्गत यह गैरकानूनी है कि कोई स्कूल किताबों की बिक्री को मुनाफाखोरी का माध्यम बनाए।
समाधान के लिए राज्यस्तरीय जांच आयोग का गठन हो – SCERT, DIOS, जिला प्रशासन और शिक्षा निदेशालय के वरिष्ठ अधिकारियों की एक संयुक्त कमेटी बनाए जाए।एनसीईआरटी पोर्टल से सीधी बिक्री को बढ़ावा मिले – ऑनलाइन बुकिंग और डिलीवरी की व्यवस्था का प्रचार हो।प्राइवेट स्कूल रेगुलेटरी बोर्ड को सशक्त किया जाए – जिसकी निगरानी में फीस, किताबें, यूनिफॉर्म, डोनेशन आदि नियंत्रित हों। कमीशन लेने के सबूत पर स्कूल और संबंधित अधिकारी पर तत्काल कार्रवाई हो।हर जिले में ‘एजुकेशन लोकपाल’ की नियुक्ति हो – जो त्वरित समाधान दे सके।उत्तर प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था आज एक दोराहे पर खड़ी है – एक ओर राज्य सरकार ने अनेक योजनाएं लागू की हैं, जैसे फ्री ड्रेस, टैबलेट वितरण, स्कूलों में स्मार्ट क्लासेज़। लेकिन यदि किताबें ही भ्रष्टाचार का शिकार हों, तो यह सारी योजनाएं खोखली हो जाती हैं।
फर्रुखाबाद से लेकर गोरखपुर, लखनऊ से लेकर कानपुर तक छात्रों की जेब पर डाका डालने वाला यह तंत्र केवल पैसों का घोटाला नहीं, बल्कि नैतिकता, जवाबदेही और पारदर्शिता की हार है।
अगर अब भी कठोर कदम न उठाए गए, तो ये भ्रष्टाचार अगली पीढ़ी के भविष्य को निगल जाएगा।
“किताबें ज्ञान देती हैं, मगर जब वही भ्रष्टाचार की शिकार हो जाएं, तो आने वाला कल अंधकार में डूब जाता है।”