– उद्धव को CM फडणवीस ने दिया खुला ऑफर, बड़ी सियासी चाल भी हो सकती है
– BMC चुनाव से पहले महाराष्ट्र की राजनीति में हलचल
पुणे: महाराष्ट्र (maharashtra) की राजनीति (politics) में एक बार फिर सियासी गर्मी तेज हो गई है। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने मंगलवार को विधान परिषद में बड़ा बयान देते हुए कहा कि “2029 तक भाजपा और उसका गठबंधन विपक्ष (opposition) में नहीं जाने वाला। उद्धव ठाकरे चाहें तो सत्ता पक्ष में आने पर विचार कर सकते हैं।” फडणवीस का यह बयान ऐसे समय पर आया है जब मुंबई में बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) चुनाव की तैयारियां जोरों पर हैं और राजनीतिक समीकरण लगातार बदल रहे हैं।
इसे शिवसेना (उद्धव गुट) के लिए एक “खुला राजनीतिक ऑफर” माना जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मुख्यमंत्री फडणवीस का यह बयान केवल आत्मविश्वास नहीं, बल्कि विपक्षी एकता में दरार डालने की एक बड़ी सियासी चाल भी हो सकती है।
मुख्यमंत्री फडणवीस ने कहा कि भाजपा और उसके सहयोगी दल अगले कई वर्षों तक सरकार में बने रहेंगे और यदि कोई दल चाहे तो वह गठबंधन में शामिल हो सकता है। उन्होंने स्पष्ट किया कि “2029 तक विपक्ष में जाने की कोई संभावना नहीं है।” राजनीतिक हलकों में यह बयान शिवसेना (उद्धव गुट) प्रमुख उद्धव ठाकरे के लिए अप्रत्यक्ष आमंत्रण माना जा रहा है। हालांकि, भाजपा और एकनाथ शिंदे गुट के बीच पहले से गठबंधन मौजूद है। ऐसे में उद्धव गुट की वापसी से सत्ता समीकरणों में टकराव की स्थिति भी उत्पन्न हो सकती है।
हाल ही में उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे की नजदीकी भी चर्चा में रही है। दोनों भाई वर्षों बाद एक साथ मंच साझा करते हुए राज्य में हिंदी अनिवार्यता का विरोध कर चुके हैं। हालांकि, राज ठाकरे की पार्टी एमएनएस का उत्तर भारतीयों को लेकर रुख उद्धव गुट के लिए असहज करने वाला रहा है। ऐसे में इस संभावित गठबंधन की राह भी आसान नहीं दिख रही।
BMC पर कब्ज़े की रणनीति
फिलहाल बीएमसी पर शिवसेना (उद्धव गुट) का नियंत्रण है, लेकिन भाजपा इस बार किसी भी कीमत पर बीएमसी पर कब्ज़ा चाहती है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि उद्धव ठाकरे को सत्ता पक्ष में आने का प्रस्ताव देकर भाजपा गठबंधन को कमजोर करने और अपने विकल्प मजबूत करने की दिशा में काम कर रही है।
उद्धव और राज की नजदीकी पर गठबंधन मुश्किल
हाल ही में उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे एक मंच पर नजर आए थे। दोनों भाइयों ने 20 साल की दूरी खत्म कर महाराष्ट्र में हिंदी भाषा को अनिवार्य बनाने के फैसले का विरोध किया। हालांकि, राज ठाकरे की पार्टी एमएनएस के उत्तर भारतीयों के खिलाफ रुख को लेकर उद्धव की शिवसेना सहज नहीं है। ऐसे में दोनों के बीच गठबंधन की संभावना अभी अधर में है। वहीं, भाजपा के लिए उद्धव के साथ आना आसान नहीं होगा क्योंकि एक ओर शिंदे गुट पहले से भाजपा के साथ है, दूसरी ओर उद्धव गुट की वापसी से सत्ता समीकरण में तनाव आ सकता है।