बाराबंकी में श्रीराम स्वरूप मेमोरियल यूनिवर्सिटी (SRMU) के खिलाफ दर्ज हुआ मुकदमा केवल किसी एक संस्थान पर कार्रवाई नहीं है, बल्कि यह शिक्षा जगत की गंभीर वास्तविकता को उजागर करता है। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के लगातार संघर्ष और दबाव का परिणाम है कि बिना मान्यता के संचालित हो रहे लॉ संकाय की सच्चाई सामने आई।
यह सवाल केवल SRMU तक सीमित नहीं है। जब बिना मान्यता के संस्थान छात्रों से प्रवेश शुल्क लेते हैं, परीक्षाएं कराते हैं और उनके भविष्य से खिलवाड़ करते हैं, तो यह सीधे-सीधे धोखाधड़ी है। शिक्षा संस्थान, जो समाज के भविष्य निर्माण की आधारशिला माने जाते हैं, यदि पारदर्शिता और नियमों की अनदेखी करेंगे, तो यह व्यवस्था के लिए सबसे बड़ा खतरा है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश और उच्चाधिकारियों की संयुक्त रिपोर्ट के बाद हुई यह कार्रवाई शिक्षा जगत के लिए एक सख्त संदेश है—कानून से ऊपर कोई नहीं है। खास बात यह भी है कि एफआईआर में एबीवीपी कार्यकर्ताओं पर हुए बल प्रयोग का उल्लेख दर्ज हुआ, जो छात्र आंदोलनों के महत्व और उनकी वैधता को रेखांकित करता है।
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा तय समयसीमा और प्रक्रिया साफ़ करती है कि मान्यता नवीनीकरण, आवेदन और बीसीआई की मंजूरी से जुड़ा प्रत्येक कदम सार्वजनिक और पारदर्शी होना चाहिए। यदि कोई संस्थान इन नियमों का उल्लंघन करता है, तो उसके खिलाफ कठोर कार्रवाई होना अनिवार्य है।
यह घटना उन सभी छात्रों और अभिभावकों के लिए चेतावनी है, जो प्रवेश लेते समय केवल चमक-दमक देखकर निर्णय कर लेते हैं। अब समय है कि छात्र और समाज दोनों ही शिक्षा संस्थानों से जवाबदेही की मांग करें।
एबीवीपी का संघर्ष इस मायने में ऐतिहासिक है कि उसने न केवल छात्रों के भविष्य को बचाया, बल्कि यह साबित किया कि यदि छात्र एकजुट होकर आवाज़ उठाएँ तो बड़े-बड़े संस्थान भी जवाबदेह बनने को मजबूर हो जाते हैं।
यह मामला शिक्षा की साख और पारदर्शिता के लिए एक कसौटी बन चुका है। ज़रूरत है कि सरकार और नियामक संस्थाएं इसे एक अवसर मानें और सुनिश्चित करें कि आगे से किसी भी छात्र का भविष्य ऐसी लापरवाही की भेंट न चढ़े।