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Thursday, May 22, 2025

वोटो की राजनीति में जातिवाद बना प्रयोगशाला, ‘राजपूत एकीकरण’ की उठी मांग

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– अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा की केसरिया स्वाभिमान यात्रा में गूंजा स्वर

लखनऊ। देश की राजनीति में जातिवाद के बढ़ते प्रभाव को लेकर अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा द्वारा चलाए जा रहे केसरिया स्वाभिमान यात्रा अभियान के दौरान ‘राजपूत एकीकरण’ की जोरदार वकालत की गई। संगठन की रीढ़ माने जाने वाले राघवेंद्र सिंह राजू ने वाराणसी से प्रकाशित अपनी पुस्तक “फिर इतिहास लौटा” का उल्लेख करते हुए कहा कि देश की राजनीति में जातिवाद को सत्ता प्राप्ति का उपकरण बना लिया गया है।

उन्होंने कहा कि वर्ण व्यवस्था का प्रारंभ सृष्टि की रचना के साथ हुआ, जहां ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र जैसे वर्गों में मानव सभ्यता संगठित हुई। किंतु मध्यकाल में विदेशी हस्तक्षेप और स्वतंत्रता के बाद राजनीतिक स्वार्थों ने जातिगत बिखराव को बढ़ावा दिया।

राजनीति ने समाज को बांटा, जातियों को भ्रम में डाला

राजू सिंह ने उदाहरण देते हुए बताया कि उत्तर भारत में यादव, अहीर और ग्वाला तीन भिन्न जातियां हैं, जिनका रहन-सहन व परंपराएं भी अलग हैं, परंतु राजनीतिक चालाकी से इन्हें “यादव” नाम के अंतर्गत संगठित कर एक वोट बैंक में बदल दिया गया। इसी तरह, एक प्रभावशाली राजनीतिक परिवार ने “विप्र वर्ग” को गोलबंद किया और जब क्षत्रिय समाज उभरा तो “राजपूत इतिहास” को विकृत करने का कार्य वामपंथी और अर्बन नक्सली विचारधारा के सहारे कराया गया।

क्षत्रिय समाज में उपवर्गों का विभाजन, एकता में बाधा

राजपूत शब्द से जुड़ी जातियों के विखंडन पर बोलते हुए उन्होंने बताया कि मध्य भारत और मालवा में सोंधिया, पटेल, पुरबिया, मिर्धा, आदिवासी क्षेत्रों में भिलाला, उत्तर प्रदेश में लोधा, शाक्य, बघेल, सेठवार, राजस्थान में रावत, भोमिया जैसे अनेक उपनामों ने “राजपूत” पहचान को विभाजित कर दिया है।

राजू सिंह ने कहा कि ऐतिहासिक दृष्टिकोण से राणा सांगा, राव मालदेव, महाराणा प्रताप और लेफ्टिनेंट जनरल सगत सिंह राठौड़ जैसे महापुरुषों की वीरता आज भी प्रेरणादायक है, लेकिन समाज में छोटे-बड़े, ठाकुर-ठिकानेदार की भावना ने रिश्तेदारियों को भी प्रभावित किया है।

राजपूत एकीकरण की जरूरत, जाति गणना में एकजुटता पर बल

राजू सिंह ने अपील की कि समाज के हर वर्ग को, चाहे वह किसी भी उपनाम से जुड़ा हो, “राजपूत” शब्द के साए में एकजुट होकर राष्ट्रहित में समर्पण की भावना से काम करना चाहिए। उन्होंने सुझाव दिया कि अगर जाति गणना होती है, तो सभी को केवल “राजपूत” शब्द का उपयोग करना चाहिए, जिससे समाज की ताकत एकजुट हो सके।

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