कायमगंज, फर्रुखाबाद: किसानों को पराली (फसल अवशेष) न जलाने (Burning stubble) के लिए चल रहे जागरूकता अभियान में हिस्सा लेते हुए पर्यावरण विशेषज्ञ गुंजा जैन ने पराली जलाने के गंभीर दुष्परिणामों और इसके वैकल्पिक प्रबंधन के तरीकों पर प्रकाश डाला है। उन्होंने स्पष्ट किया कि पराली जलाने वाले किसानों को ₹2.5 हजार से लेकर ₹15 हजार तक का भारी जुर्माना भरना पड़ सकता है, क्योंकि फसल काटने के बाद अवशेषों को जलाना पूरी तरह से प्रतिबंधित है।
गुंजा जैन ने बताया कि पराली जलाने से हमारे खेत की मिट्टी की सेहत दिन-प्रतिदिन खराब होती जा रही है। उन्होंने बताया पराली जलाने से वातावरण में हानिकारक प्रदूषक जैसे पार्टिकुलेट मैटर, कार्बन मोनो ऑक्साइड, नाइट्रोजन के ऑक्साइड और अन्य वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों का उत्सर्जन होता है। यह वायु प्रदूषण अस्थमा और श्वसन संबंधी अन्य बीमारियों को जन्म देता है। इसके अलावा मिट्टी के आवश्यक पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं। इसके साथ ही मिट्टी की सेहत के लिए ज़रूरी जीवाणु भी मर जाते हैं, जिससे मिट्टी की उत्पादक क्षमता खत्म हो जाती है।
श्रीमती जैन ने किसानों से पराली न जलाने और इसके बजाय वैकल्पिक तरीकों को अपनाने का आग्रह किया। उन्होंने पराली के प्रबंधन और उपयोग के लिए पराली का उपयोग जैविक खाद बनाने, इसे पशुओं के चारे के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। पराली को खेत की मिट्टी में मिलाकर मलचिंग का प्रयोग किया जा सकता है। फसल के बचे हुए डंठल और पत्तियां हरी खाद के रूप में खेत की सेहत सुधार सकती हैं।
उन्होंने कहा इन सभी वैकल्पिक तरीकों का उपयोग करके हम पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाने के साथ-साथ अपने खेत की मिट्टी को भी सुरक्षित कर सकते हैं। उन्होंने किसानों से इस जागरूकता अभियान में सहयोग करने और पर्यावरण हितैषी कृषि पद्धतियों को अपनाने की अपील की।


