मुकेश कुमार
नगर के काशीराम कॉलोनी में ईदगाह के पास शव विश्राम स्थल का निर्माण फिलहाल ठप है। विवाद की जड़ में ज़मीन की मिल्कियत है, जिसे कुछ लोगों ने रेलवे की भूमि बताया और शिकायतें सामने आईं। इसी आधार पर एसडीएम सदर ने तत्काल प्रभाव से निर्माण रुकवाते हुए तीन दिन में जांच रिपोर्ट तलब की थी। लेकिन अब आज लगभग 20 दिन बीतने के बाद भी रिपोर्ट न आना प्रशासनिक कार्यशैली पर सवाल खड़े करता है।
यह मसला केवल भूमि विवाद तक सीमित नहीं है, यह शासन-प्रशासन की संवेदनशीलता और तत्परता की परीक्षा भी है। एक ओर, स्थानीय पार्षदों और नगर पंचायत की पहल पर क्षेत्र में शव विश्राम स्थल का निर्माण शुरू हुआ, जिससे वर्षों से चली आ रही मूलभूत ज़रूरत पूरी होने की उम्मीद जगी। दूसरी ओर, कुछ लोगों ने निर्माण स्थल को रेलवे की ज़मीन बताया और निर्माण को अवैध ठहराते हुए शिकायत दर्ज करा दी। शिकायत गंभीर हो सकती है, लेकिन उससे भी अधिक गंभीर प्रशासन का ढीला रवैया है।
जब एसडीएम ने स्वयं इस जांच के लिए तीन दिन का समय निर्धारित किया, तो 20 दिन बीत जाने के बाद भी रिपोर्ट न आना या कोई स्पष्ट दिशा न निकल पाना असंवेदनशीलता का प्रतीक है। यह सवाल उठना लाज़मी है कि क्या हमारे स्थानीय अधिकारी जनहित की योजनाओं को समयबद्ध ढंग से निपटाने में सक्षम हैं?
विवाद का एक दूसरा पहलू भी है, जो सामुदायिक जरूरतों से जुड़ा है। यदि क्षेत्र में शवों को सड़क पर रखने जैसी नौबत आती है, तो यह केवल प्रशासनिक विफलता ही नहीं, सामाजिक मर्यादाओं का भी अपमान है। ऐसे हालात में यदि नगर पंचायत ने स्थानीय जनप्रतिनिधियों की मांग पर कार्य प्रारंभ किया, तो उसे योजनाबद्ध रूप से उचित अनुमति व प्रक्रिया में शामिल करके निष्पादित किया जा सकता था।
इस पूरे प्रकरण में न केवल नायब तहसीलदार की निष्क्रियता उजागर हुई है, बल्कि प्रशासन की आंतरिक संवादहीनता और लचर अनुशासन व्यवस्था की भी झलक मिली है। यह आवश्यक है कि अब इस मामले में गंभीरता दिखाई जाए और जांच रिपोर्ट तत्काल सार्वजनिक कर निर्णय लिया जाए, जिससे जनविश्वास बहाल हो और विकास कार्यों को अनावश्यक विवादों से बचाया जा सके।
अंततः यह केवल एक ढांचे का सवाल नहीं है, यह उस सोच और व्यवस्था की परीक्षा है, जो नागरिकों की मूलभूत ज़रूरतों को समय पर पहचान कर समाधान दे सकती है। शव विश्राम स्थल की आवश्यकता एक मानवीय प्रश्न है, जिसका उत्तर शीघ्र मिलना ही चाहिए।