– शरद कटियार
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए भीषण आतंकी हमले में 28 निर्दोष हिन्दू श्रद्धालुओं की हत्या ने पूरे देश को झकझोर दिया है। लेकिन इस राष्ट्रीय त्रासदी पर कुछ तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दलों और वोट बैंक के हिमायती नेताओं की चुप्पी समाज को आहत कर रही है।
क्या यह सिर्फ आतंकवाद है, या फिर एक नियोजित धर्म जेहाद, जिसका उद्देश्य हिन्दुओं को डराना और धार्मिक ध्रुवीकरण को हवा देना है?
हथियार मस्जिदों से?
स्थानीय मदद की खुली साजिश!
सवाल उठ रहे हैं कि इतने घातक हथियार आखिर पहलगाम जैसे पर्यटन क्षेत्र में आए कैसे? क्या इन्हें स्थानीय मदरसों और मस्जिदों में छुपाया गया था? खुफिया एजेंसियां मान रही हैं कि बिना स्थानीय नेटवर्क के इतना बड़ा हमला संभव नहीं।
सोशल मीडिया पर कई ऐसे वीडियो वायरल हो रहे हैं, जिनमें कुछ मुस्लिम युवक इस खूनी हमले पर खुशियाँ सी मनाते दिख रहे हैं। यह दृश्य न केवल इंसानियत को शर्मसार कर रहे हैं, बल्कि यह सवाल भी खड़ा करते हैं कि क्या इन मानसिकता वालों को देश में रहने का अधिकार है?
गद्दारों को समर्थन देने वाले कुछ हिन्दू नेता भी सवालों के घेरे में
कुछ तथाकथित प्रगतिशील और सेक्युलर हिन्दू चेहरे, इन घातक घटनाओं को भी सांप्रदायिक रंग देने से बच रहे हैं। क्या यह “वोट बैंक” की राजनीति नहीं है? क्या केवल राजनीतिक समीकरण के लिए आतंकी मानसिकता को नजरअंदाज करना राष्ट्रद्रोह नहीं?
सरकार को जिम्मेदार ठहराना आसान, मगर…क्या ये समय आत्ममंथन का नहीं?
कई विपक्षी दलों ने सरकार पर सुरक्षा में चूक का आरोप लगाया है, लेकिन क्या यह हमला केवल सरकार की चूक है? जब देश की आंतरिक दुश्मन शक्तियां, धर्म के नाम पर जिहाद फैलाने में जुटी हों, तो क्या सारा दोष केवल व्यवस्था पर मढ़ना न्याय है?
गृहमंत्री अमित शाह का दो टूक ऐलान: “दोषी कोई भी हो, किसी को बख्शा नहीं जाएगा। पूरी ताकत से जवाब दिया जाएगा।”
देश की मांग –अब वक्त है निर्णय का, दया नहीं, दंड चाहिए।
पहलगाम की खून से लथपथ घाटियों से एक आवाज़ उठ रही है – अब बस! आतंकी सोच को कुचलना ही एकमात्र समाधान है।