34.5 C
Lucknow
Tuesday, June 17, 2025

बॉन सम्मेलन शुरू: जलवायु संकट, फाइनेंस और फॉसिल फ्यूल पर दुनिया की नजरें

Must read

जलवायु आपातकाल के बीच बॉन में जुटे देश, ब्राजील की ‘FFF’ रणनीति पर भी रहेगा फोकस

बांन जर्मनी: संयुक्त राष्ट्र के तत्वावधान में जलवायु परिवर्तन पर वार्षिक मध्यवर्ती बैठक UNFCCC बॉन सम्मेलन (Bonn conference) आज से जर्मनी के बॉन शहर में शुरू हो गई। यह महत्वपूर्ण सम्मेलन 26 जून तक चलेगा। जलवायु आपातकाल (climate emergency) के बढ़ते खतरों के बीच इस बार सम्मेलन में फॉसिल फ्यूल से बाहर निकलने की रणनीति, विकासशील देशों के लिए जलवायु फाइनेंस और न्यायसंगत ऊर्जा संक्रमण (Just Transition) जैसे गंभीर मुद्दों पर चर्चा होगी।

इससे पहले विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) ने चेतावनी दी है कि 2029 से पहले वैश्विक तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा टूटने की 87 प्रतिशत संभावना है। वहीं बीमा कंपनियों के अनुसार, केवल 2024 में ही जलवायु से जुड़ी आपदाओं से करीब 320 अरब डॉलर का नुकसान हो चुका है।

ब्राजील, जो अगले वर्ष COP30 का मेज़बान देश होगा, ने तीन प्राथमिकताओं की घोषणा की है:

ब्राजील के जलवायु सलाहकार आंद्रे कोरेया डो लागो ने साफ किया है कि वे इस सम्मेलन में ‘Action Agenda’ को ठोस दिशा देना चाहते हैं। बॉन सम्मेलन में देशों से अपेक्षा है कि वे अपनी नई राष्ट्रीय जलवायु योजनाएं (NDCs) पेश करें। लेकिन अब तक सिर्फ 22 देशों ने अपनी योजनाएं जमा की हैं। इनमें भी केवल ब्रिटेन की योजना को पेरिस समझौते के 1.5°C लक्ष्य के अनुरूप माना गया है।

भारत ने 2030 तक 500 GW नॉन-फॉसिल एनर्जी का लक्ष्य तय किया है, जिसमें से 200 GW पहले ही हासिल किया जा चुका है। हालांकि 2035 के लिए नया रोडमैप अब तक सामने नहीं आया है। जलवायु विश्लेषक कैथरीन अब्रू का मानना है, “भारत में फाइनेंस सबसे बड़ी बाधा है। भारत, चीन और यूरोपीय संघ के निर्णय अगले दशक की दिशा तय करेंगे।”

COP29 में जलवायु फाइनेंस को $300 अरब प्रतिवर्ष तक बढ़ाने की सहमति बनी थी, लेकिन अब सवाल यह है कि:

पैसा कहां से आएगा? और विकासशील देशों तक कैसे पहुंचेगा? ACT Alliance के जूलियस मबाटिया कहते हैं, “जो देश जलवायु संकट के लिए जिम्मेदार नहीं हैं, वे अपने संसाधनों से हल ढूंढने में लगे हैं। अमीर देशों को अब कर्ज़ नहीं, अनुदान देना होगा।” बॉन सम्मेलन में Global Goal on Adaptation (GGA) पर भी विशेष ध्यान रहेगा। फिलहाल जलवायु अनुकूलन मापने के लिए 490 संकेतक बनाए गए हैं, जिन्हें घटाकर 100 प्रभावी संकेतकों तक सीमित करने की तैयारी है।

इसका मकसद यह है कि अनुकूलन के क्षेत्र में ठोस क्रियान्वयन संभव हो सके। सम्मेलन में कई अफ्रीकी देशों के प्रतिनिधि शामिल नहीं हो पाए हैं, क्योंकि उनके पास यात्रा के लिए पर्याप्त वित्तीय सहायता नहीं है। यह जलवायु फाइनेंस की असमानता को उजागर करता है। LDC ग्रुप (कम विकसित देश) 13 जून को इस मुद्दे पर आधिकारिक बयान जारी करेगा।

भारत ने COP28 और G20 अध्यक्षता के दौरान ट्रिपल रिन्यूएबल एनर्जी की दिशा में मजबूत पहल की थी। इसके अलावा भारत ने जलवायु फाइनेंस टैक्सोनॉमी का मसौदा भी प्रस्तुत किया है। अब बॉन में भारत से यह अपेक्षा है कि वह 2035 के बाद की रणनीति को स्पष्ट करे। 21 जून को ब्राजील की अध्यक्षता में एक विशेष सत्र का आयोजन होगा, जिसमें जलवायु से जुड़ी गलत सूचना और फेक न्यूज़ के खिलाफ वैश्विक अभियान की शुरुआत होगी। इस “Global Information Integrity Initiative” में UNESCO और संयुक्त राष्ट्र की भी भागीदारी रहेगी।

COP31 की मेज़बानी के लिए ऑस्ट्रेलिया और तुर्किए के बीच मुकाबला है। ऑस्ट्रेलिया दक्षिण प्रशांत देशों के साथ मिलकर जलवायु छवि सुधारने की कोशिश कर रहा है, जबकि तुर्किए ग्लोबल साउथ की आवाज़ बनकर इस दौड़ में आगे बढ़ रहा है। नजर अब इस बात पर कि क्या बॉन से निकलेगा कोई ठोस कदम जलवायु संकट की गंभीरता को देखते हुए अब यह देखना होगा कि बॉन सम्मेलन केवल वादों और घोषणाओं तक सीमित रहेगा या ठोस जलवायु कार्रवाई की नींव भी रखी जाएगी।

Must read

More articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Latest article