कायमगंज: साहित्यिक संस्था साधना निकुंज एवं अनुगूंज के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित संगोष्ठी में स्थानीय साहित्यकारों ने राष्ट्रकवि मैथिली (National poet) शरण गुप्त (Maithili Sharan Gupt) की जयंती मनाई और उनकी कविता पर चर्चा की। अध्यक्ष प्रोफेसर रामबाबू मिश्र रत्नेश ने कहा कि गुप्त जी का काव्य गांधी युग का दर्पण है। उनका हर शब्द राष्ट्रीय पुनर्जागरण का महामंत्र है।
मुंशी प्रेमचंद ने जहां अपने वाम पंथ की ओर झुकाव के चलते सामाजिक विद्रूप पर फोकस किया वहीं गुप्त जी ने राष्ट्र धर्म और संस्कृति के पुरातन आदर्शों को लेकर नए भारतके वर्तमान का श्रृंगार किया और युवा पीढ़ी को जीवंत एवं जागृत होकर राष्ट्र सेवा के लिए प्रेरित किया। गीतकार पवन बाथम ने कहा कि गुप्त जी ने उर्मिला और यशोधरा जैसी उपेक्षित नारियों का महिमा मंडन किया ।अपने साकेत महाकाव्य में उन्होंने कैकई के प्रति सहानुभूति जगायी और तो और पंचवटी खंडकाव्य में उन्होंने अभिसारिका शूर्पणखा के रूप और लावण्य का मनमोहक चित्रण किया।
पूर्व प्रधानाचार्य अहिवरन सिंह गौर ने कहा कि भारत की सारी समस्याओं का निदान उग्र राष्ट्रवाद से ही संभव है। प्रधानाचार्य शिवकांत शुक्ला ने कहा कि गुप्त जी ने अपनी रचनाओं में शुद्ध एवं परिमार्जित भाषा का प्रयोग किया ।उनके संपूर्ण काव्य में कहीं भी विजातीय भाषा का कोई शब्द नहीं मिलेगा। शिक्षक नेता जेपी दुबे ने कहा कि राष्ट्र भाव जगाने के लिए गुप्त जी जैसे राष्ट्रवादी साहित्यकारों को पाठ्यक्रमों में अनिवार्य रूप से रखा जाए जिससे भटकती हुई युवा पीढ़ी को कोई आदर्श प्राप्त हो सके। वीएस तिवारी ने कहा कि गुप्त जी की भारत भारती विश्व की महानतम क्लासिक काव्य कृतियों में शुमार की जाती है।
युवा कवि अनुपम मिश्रा ने कहा कि राष्ट्र धर्म संस्कृति का करके गौरव गान। अमर रहेंगे गुप्त जी जब तक विश्व विधान। छात्र कवि यशवर्धन ने कहा कि हमें दे गए गुप्त जी यह संदेश ललाम। भाग्य पुरुष इस देश के सदा रहेंगे राम। समाजशास्त्री डॉक्टर सुनीत सिद्धार्थ ने कहा कि राष्ट्रवाद के साथ गुप्त जी ने दलित चेतना को भी स्वर दिए हैं वे वास्तव में मानवतावादी कवि हैं। कार्यक्रम का संचालन करते हुए डॉ कुलदीप आर्य ने राष्ट्रकवि की अमर पंक्तियों का गान किया
भारत भवन में आर्यजन जिनकी उतारे आरती। भगवान भारतवर्ष में गूंजे हमारी भारती।