जिसने फर्जी मुकदमों और रंगदारी से खड़ा किया करोड़ों का साम्राज्य
सरकारी कालेजों की जमीनों से लेकर शहर देहात तक फैला अवैध खेल
विरोध करने वालों पर फर्जी मुकदमे, दलित उत्पीड़न और बलात्कार के आरोप लगवाकर कराई तबाही

फर्रुखाबाद। जनपद और आसपास के जिलों में एक नाम वर्षों से डर और दहशत का पर्याय बन चुका है — नॉन प्रैक्टिशनर वकील अवधेश मिश्रा। जिसने कानून के लबादे में गैरकानूनी साम्राज्य खड़ा कर लिया। गरीब से शुरू होकर करोड़पति बनने तक का यह सफर भ्रष्टाचार, फर्जी मुकदमों, सरकारी ज़मीनों की बिक्री और भय की राजनीति पर टिका रहा।
जानकारी के मुताबिक, अवधेश मिश्रा का नेटवर्क जनपद फर्रुखाबाद से लेकर आसपास के जिलों तक फैला हुआ है। यह नेटवर्क सरकारी विद्यालयों और कॉलेजों की जमीनों की खरीद-फरोख्त का बड़ा खेल चलाता था। जब भी किसी प्रधानाचार्य, प्रबंधक, शिक्षक या अधिकारी ने इस खेल का विरोध किया, तो उसके खिलाफ फर्जी बलात्कार, दलित उत्पीड़न या धन उगाही जैसे संगीन मुकदमे दर्ज करवा दिए जाते थे।
बताया जाता है कि इस पूरे गिरोह में राजीव कृष्ण मिश्रा उर्फ मनकु मिश्रा समेत कई प्रधानाचार्य, विद्यालय प्रबंधक, जिला विद्यालय निरीक्षक कार्यालय के कर्मचारी और कुछ पुलिसकर्मी भी शामिल थे। पुलिस और प्रशासन के भीतर तक जमे इस नेटवर्क ने वर्षों तक सरकारी संपत्तियों को निजी स्वार्थ के लिए बेचा और करोड़ों रुपये की अवैध कमाई की।
1998 में फर्रुखाबाद आए अवधेश मिश्रा के पास उस समय खाने के लिए रोटी और पकाने के लिए बर्तन तक नहीं थे। लेकिन अब उसके पास कई मकान, प्लॉट, आलीशान गाड़ियाँ और अकूत संपत्ति है। सूत्र बताते हैं कि इस संपत्ति के पीछे फर्जी मुकदमों से कमाई गई मोटी रकम, रंगदारी और लोगों को डराकर जमीनों का हड़पना मुख्य कारण हैं।
मिश्रा के खिलाफ बोलने वाले शिक्षकों, पत्रकारों, वकीलों, यहाँ तक कि कुछ नौकरशाहों को भी उसने झूठे मामलों में उलझा दिया। किसी अधिकारी ने उसके खिलाफ कार्यवाही करने की हिम्मत दिखाई तो उसके खिलाफ फर्जी शिकायतें, मानहानि के मुकदमे और दबाव की याचिकाएं दायर की गईं।
केवल एक वर्ष में ही अवधेश मिश्रा ने माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद में 13 रिट याचिकाएं शासन और प्रशासन के विरुद्ध दायर कर दीं — जिनका उद्देश्य था अधिकारियों पर दबाव बनाना और व्यक्तिगत हितों की रक्षा करना।
स्थानीय सूत्र बताते हैं कि अवधेश मिश्रा का यह नेटवर्क वर्षों से फर्रुखाबाद के शिक्षा तंत्र को खोखला कर चुका है। कई विद्यालयों की जमीनें या तो अवैध रूप से बेची गईं या ट्रस्ट के नाम पर कब्जाई गईं। वहीं, इस खेल में शामिल कुछ अफसरों और पुलिसकर्मियों ने भी अपनी जेबें भरीं।
अब सवाल यह है कि क्या शासन-प्रशासन इस जड़ें जमा चुके ‘वकील माफिया नेटवर्क’ के खिलाफ कोई ठोस कार्यवाही करेगा? या फिर यह भू-माफिया अपने प्रभाव और फर्जी मुकदमों के डर से कानून के शिकंजे से यूँ ही बचता रहेगा?





