श्री बांकेबिहारी मंदिर में अव्यवस्थाओं का आलम, सुप्रीम कोर्ट कमेटी के आदेशों का नहीं हो रहा पालन

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वृंदावन। प्रसिद्ध श्री बांकेबिहारी मंदिर में एक बार फिर अव्यवस्था हावी है। भक्तों की भारी भीड़ के बीच न गलियों में राहत है, न मंदिर परिसर में अनुशासन। सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित श्री बांकेबिहारी मंदिर प्रबंधन हाईपावर्ड कमेटी ने मंदिर की व्यवस्थाओं को सुधारने के लिए कई दिशा-निर्देश जारी किए थे, लेकिन आदेशों के अनुपालन के नाम पर केवल खानापूर्ति होती दिखाई दे रही है। न तो स्थानीय प्रशासन और न ही सेवायतों ने आदेशों के पालन की वास्तविक चिंता दिखाई है।

हाईपावर्ड कमेटी के गठन के बाद कई दौर की बैठकें हुईं। हर बैठक में पुराने नियमों की समीक्षा की गई और नए नियम लागू किए गए। आदेश जारी भी हुए, लेकिन मंदिर परिसर में पहुंचते ही ये आदेश निष्प्रभावी साबित हुए। उदाहरण के तौर पर वीआईपी पर्ची सिस्टम को बंद करने का आदेश तुरंत लागू कर दिया गया, क्योंकि यह आम लोगों को सीधे प्रभावित करता था। लेकिन मंदिर के समय में किया गया बदलाव, जो भक्तों की भीड़ को नियंत्रित करने में मददगार साबित हो सकता था, अब तक लागू नहीं किया जा सका है।

इसी तरह मंदिर में रैलिंग लगाने का आदेश भी केवल कागजों में रह गया। पिछली बैठक में रैलिंग की छह लाइनें लगाने की बात कही गई थी, लेकिन आज तक उसकी व्यवस्था नहीं हो सकी। यहां तक कि राजस्थान सिक्योरिटी एजेंसी को हटाकर रिटायर्ड सैनिकों की एजेंसी को सुरक्षा की जिम्मेदारी देने का प्रस्ताव भी अभी तक अमल में नहीं आया।

अब तो सेवायत वर्ग ने भी सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं कि यदि आदेशों का पालन ही नहीं होना है तो कमेटी बार-बार नए आदेश क्यों जारी कर रही है। कमेटी के पदाधिकारी खुद अपने आदेशों को लागू कराने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे।

भीड़ में फंसे श्रद्धालुओं की नाराजगी भी साफ झलक रही है। गाजियाबाद से दर्शन करने आए वरुण ने कहा कि “नई कमेटी बनने के बाद लगा था कि व्यवस्थाएं बेहतर होंगी, लेकिन यहां आकर कुछ भी बदलता नहीं दिखा। भीड़ हर बार बढ़ रही है, लेकिन प्रबंधन उतना ही कमजोर पड़ता जा रहा है।”

भक्तों की बढ़ती भीड़ और लचर प्रबंधन के कारण श्री बांकेबिहारी मंदिर में अव्यवस्थाओं की स्थिति लगातार गंभीर होती जा रही है। सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में बनी कमेटी के आदेश अगर इसी तरह ठंडे बस्ते में पड़े रहे, तो मंदिर की सुरक्षा और श्रद्धालुओं की सुविधा दोनों ही खतरे में पड़ सकती हैं।

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