रामपुर: रामपुर में एक विशेष सांसद-विधायक अदालत ने सोमवार को समाजवादी पार्टी के नेता मोहम्मद आज़म खान (Azam Khan) और उनके बेटे अब्दुल्ला आज़म (Abdullah Azam) को फर्जी पैन कार्ड मामले (fake PAN card case) में सात साल की सजा सुनाकर बड़ा झटका दिया। अदालत ने उन पर 50-50 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया। फैसले के बाद, पुलिस ने आज़म खान और अब्दुल्ला को अदालत कक्ष में हिरासत में ले लिया। विशेष न्यायाधीश शोभित बंसल ने दस्तावेजी साक्ष्यों, बैंक रिकॉर्ड और आयकर अधिकारियों की गवाही की समीक्षा के बाद फैसला सुनाया।
यह अदालती फैसला आज़म खान के खिलाफ दर्ज 104 मामलों में से एक है। अब तक अदालत 12 मामलों में फैसला सुना चुकी है। इनमें से सात मामलों में आज़म खान को दोषी ठहराया गया है, जबकि पांच में उन्हें बरी कर दिया गया है। आजम खान दो महीने पहले ही 23 सितंबर को सीतापुर जेल से रिहा हुए थे। उनके बेटे अब्दुल्ला नौ महीने पहले हरदोई जेल से रिहा हुए थे। अब दोनों को वापस रामपुर जेल भेज दिया गया है।
फर्जी पैन कार्ड का मामला 2019 का है। रामपुर के भाजपा नेता आकाश सक्सेना ने सिविल लाइंस थाने में दोनों के खिलाफ मामला दर्ज कराया था। उन्होंने आरोप लगाया कि आजम ने अपने बेटे अब्दुल्ला को चुनाव लड़ाने के लिए दो अलग-अलग जन्म प्रमाणपत्रों के आधार पर दो पैन कार्ड बनवाए थे। अपनी मूल जन्मतिथि 1 जनवरी, 1993 के आधार पर, अब्दुल्ला 2017 का चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य थे। उनकी उम्र अभी 25 साल नहीं हुई थी। इसलिए, आजम ने अपना जन्म वर्ष 1990 दिखाते हुए दूसरा पैन कार्ड बनवाया।
फैसला सुनाए जाने के समय अदालत में मौजूद भाजपा विधायक आकाश सक्सेना ने मीडियाकर्मियों से कहा, “मैं इसे सत्य की जीत मानता हूँ। आज़म के खिलाफ सभी मामले कागजी सबूतों पर आधारित हैं। उनके खिलाफ बिना सबूत के कोई मामला नहीं बनता। इसीलिए अदालत ने उन्हें सजा सुनाई। जिसने भी गलत किया है, उसे सजा मिलेगी।” आज़म और अब्दुल्ला को धारा 467 के तहत सात साल कैद की सजा सुनाई गई है। उन्हें धारा 120बी के तहत एक साल, धारा 468 और 420 के तहत तीन-तीन साल कैद की सजा सुनाई गई है। अदालत ने उन्हें धारा 471 के तहत भी दो साल कैद की सजा सुनाई है।
इससे पहले इसी साल 23 जुलाई को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पैन कार्ड के दो मामलों में आज़म खान और अब्दुल्ला आज़म की याचिकाएँ खारिज कर दी थीं। आज़म के वकील ने फर्जी पैन कार्ड के आरोपों को निराधार बताते हुए मामले को खारिज करने की अपील की थी। अदालत ने फैसला सुनाया कि मामला पहले से ही एक स्थानीय अदालत में चल रहा है और इसमें हस्तक्षेप अनुचित है। इसलिए याचिका खारिज कर दी गई। बाद में आज़म ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की, लेकिन वहाँ से भी उन्हें कोई राहत नहीं मिली।


