कानपुर से फतेहगढ़ तक फैला “फर्जी मुकदमे गैंग” का नेटवर्क

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अखिलेश दुबे के बाद फतेहगढ़ कचहरी के वकील मिश्रा पर भी पुलिस का शिकंजा

कानपुर/फर्रुखाबाद। कानपुर में चर्चित अधिवक्ता अखिलेश दुबे गिरोह पर कार्रवाई के बाद अब फतेहगढ़ कचहरी के अधिवक्ता मिश्रा पर भी पुलिस ने शिकंजा कसना शुरू कर दिया है।अपर पुलिस महानिदेशक आलोक सिंह शुरू से ही अपराधियों के लिए काल बने हैं, और बड़े बड़े माफिया जेल भेज चुके हैँ।
सूत्रों के अनुसार, फतेहगढ़ मे दागी वकील अवधेश मिश्रा पर भी फर्जी मुकदमे दर्ज कर वसूली करने, जमीन कब्जाने और रंगदारी मांगने के गंभीर आरोप हैं।
यह कार्रवाई कानपुर से लेकर फर्रुखाबाद तक फैले उस नेटवर्क का हिस्सा बताई जा रही है, जिसमें वकील, दलाल और कुछ भ्रष्ट पुलिसकर्मी शामिल होकर लोगों को झूठे मामलों में फंसाकर लाखों रुपये की वसूली करते थे। इस मामले मे एक सदस्य बार कौन्सिल के भी मददगार बताये जा रहे, उन्होंने फतेहगढ़ के अभियुक्त वकील अवधेश मिश्रा के समर्थन में पूर्व में भी पत्र लिखे और दागी मिश्रा को पूरा सपोर्ट दिया, और दे भी रहे।
इस नेटवर्क को अब “फर्जी मुकदमा माफिया गिरोह” कहा जा रहा है।

कानपुर केस: अखिलेश दुबे गैंग की गिरफ्त में आधा शहर

कानपुर पुलिस की एसआईटी ने अधिवक्ता अखिलेश दुबे और उनके सहयोगी लवी मिश्रा समेत कई लोगों के खिलाफ 5 एफआईआर दर्ज की हैं।
चार्जशीट में 100 से अधिक पीड़ितों के बयान शामिल हैं और करीब 4500 पन्नों के साक्ष्य जुटाए गए हैं।
गैंग पर आरोप है कि उन्होंने पॉकसो, दुष्कर्म और घरेलू हिंसा जैसे झूठे केसों का जाल बिछाकर लोगों से लाखों रुपये वसूले।
स्रोतों के मुताबिक, गिरोह ने कानपुर, नोएडा, लखनऊ और आसपास के जिलों में संपन्न परिवारों को निशाना बनाया।
अब तक की जांच में 6 पुलिसकर्मी और 2 केडीए अधिकारी निलंबित हो चुके हैं।

फतेहगढ़ कचहरी में भी “मिश्रा नेटवर्क” पर शिकंजा

फतेहगढ़ में कार्यरत अधिवक्ता अवधेश मिश्रा पर आरोप है कि उन्होंने रंगदारी और संपत्ति विवादों में पक्षकारों को झूठे मुकदमों से धमकाकर समझौते के नाम पर मोटी रकम वसूली।
स्थानीय पुलिस ने इस पर कार्रवाई शुरू कर दी है और प्रारंभिक जांच के बाद मिश्रा की संपत्ति और बैंक लेनदेन की जांच विजिलेंस को सौंप दिए जाने की चर्चा है।
सूत्रों के अनुसार, मिश्रा का नाम कानपुर के अखिलेश दुबे गिरोह से भी जुड़ा हुआ है, और दोनों के बीच “मुकदमा तैयार करने और धमकी देने” की प्रक्रिया साझा थी।
कुछ पीड़ितों ने बताया कि फतेहगढ़ में भी मुकदमे के नाम पर 3-5 लाख रुपये लेकर मामले को “खत्म” करने की बात की जाती थी।
कानपुर और फर्रुखाबाद पुलिस ने संयुक्त रूप से एक इंटर-डिस्ट्रिक्ट जांच टीम गठित की है जो इन दोनों अधिवक्ताओं के संपर्कों और बैंक रिकॉर्ड का विश्लेषण कर रही है।
टीम अब तक 17 खातों और करीब ₹3.5 करोड़ के लेनदेन का पता लगा चुकी है।
कानपुर के पुलिस आयुक्त ने बताया,
> “हमने फर्जी मुकदमा गैंग की जड़ें उखाड़ने का संकल्प लिया है। कानून का दुरुपयोग कर कोई भी नागरिक को ब्लैकमेल नहीं कर सकता।”
इस मामले ने प्रदेश की न्याय व्यवस्था और वकील समुदाय में हलचल मचा दी है।
समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने बयान जारी कर कहा —
> “कानपुर में फर्जी मुकदमे और वसूली का यह नेटवर्क सत्ता के संरक्षण में पनपा। अब कार्रवाई इसलिए हो रही है क्योंकि मामला खुल चुका है।”
वहीं भाजपा प्रवक्ता ने कहा कि योगी सरकार की “जीरो टॉलरेंस नीति” के तहत ही यह संभव हुआ —
> “भ्रष्टाचार और अपराध में शामिल चाहे कोई भी हो, उसे बख्शा नहीं जाएगा। कानून अब अपना काम करेगा।”
कानपुर से लेकर फतेहगढ़ तक फैले इस “फर्जी मुकदमा सिंडिकेट” ने कानून और न्याय प्रणाली की साख को गहरा झटका दिया है।
जहाँ एक ओर वकीलों का पवित्र पेशा न्याय दिलाने का प्रतीक है, वहीं कुछ लोगों ने इसे वसूली और आतंक का औजार बना डाला।
एसआईटी और विजिलेंस की संयुक्त कार्रवाई से उम्मीद है कि इस गिरोह की जड़ें पूरी तरह से काटी जाएँगी और निर्दोष पीड़ितों को न्याय मिलेगा।

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