– पार्टी के भीतर मचा घमासान थामने के प्रयास
📍 अजय कुमार
लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राजनीति में गठबंधन राजनीति का अहम चेहरा बन चुकी अपना दल (सोनेलाल) इस समय अंदरूनी घमासान की चपेट में है। पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय स्वास्थ्य राज्यमंत्री अनुप्रिया पटेल ने 3 जुलाई 2025 को एक बड़ा निर्णय लेते हुए अपने पति और पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष आशीष पटेल को ‘डिमोट’ कर राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद पर नामित कर दिया। यह निर्णय न केवल संगठन में हलचल पैदा करने वाला है, बल्कि पार्टी के अंदरूनी सत्ता संघर्ष को भी उजागर करता है।
पति-पत्नी की पार्टी बनती जा रही थी पहचान?
2018 में जब आशीष पटेल को अपना दल (एस) का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया था, तब उम्मीद थी कि पार्टी नए विस्तार की ओर अग्रसर होगी। लेकिन बीते कुछ वर्षों में कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों में यह धारणा मजबूत होती चली गई कि यह पार्टी अब “पति-पत्नी की पार्टी” बन चुकी है — जहाँ मंत्री केंद्र में हों या राज्य में, निर्णय सिर्फ एक ही परिवार के इर्द-गिर्द घूमते हैं।
इस एकाधिकार के खिलाफ आवाज़ तब तेज़ हुई जब पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रहे हेमंत चौधरी और वरिष्ठ नेता बृजेंद्र सिंह पटेल ने इस्तीफा दे दिया। दोनों ने यह कहते हुए पार्टी छोड़ी कि संगठन में केवल कुछ खास चेहरों को ही तवज्जो दी जाती है।
2024 में मिर्जापुर जीत भी रही संकीर्ण
2014 और 2019 में भारी मतों से जीत दर्ज करने वाली अनुप्रिया पटेल को 2024 लोकसभा चुनाव में मिर्जापुर सीट से बेहद कड़ी मशक्कत के बाद जीत हासिल हुई। इसके बाद कार्यकर्ताओं के बीच यह सवाल मुखर हो गया कि अगर पार्टी की पूरी ताकत केवल एक परिवार के लिए झोंकी जाएगी, तो बाकी नेता व कार्यकर्ता केवल “दरी बिछाने” के लिए ही रह जाएंगे?
बीते महीनों में आशीष पटेल की छवि को लेकर भी सवाल खड़े हुए। कभी उन पर STF के पीछे पड़ने की चर्चा रही, तो कभी स्वयं के ऊपर 1700 करोड़ खर्च किए जाने जैसे संगीन आरोप सामने आए। इससे पार्टी की साख को आघात पहुंचा। वहीं दूसरी ओर, पार्टी के भीतर यह स्पष्ट होता गया कि अब आशीष पटेल का प्रभुत्व घट रहा है।
“डिमोशन” के जरिए डैमेज कंट्रोल
3 जुलाई 2025 को अनुप्रिया पटेल ने आंतरिक असंतोष को साधते हुए बड़ा दांव चला। राष्ट्रीय कार्यकारिणी की सूची में आशीष पटेल का नाम दूसरे नंबर पर बतौर राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रखा गया। यह सीधा संकेत था कि अब वह पार्टी की पहली पंक्ति में नहीं, बल्कि दूसरे स्तर पर रहेंगे।
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि यह कदम डैमेज कंट्रोल की बड़ी रणनीति का हिस्सा है। इससे पार्टी में चल रहे असंतोष को थामने और यह संदेश देने की कोशिश है कि संगठन सामूहिक नेतृत्व की ओर बढ़ेगा।
गौरतलब है कि पार्टी की स्थापना के समय जवाहर सिंह पटेल राष्ट्रीय अध्यक्ष हुआ करते थे और आशीष पटेल तब सरकारी सेवा में थे। 2018 में जब वे अध्यक्ष बने, तब उम्मीद थी कि नेतृत्व में विविधता आएगी। लेकिन अब स्वयं उनके “डिमोशन” ने यह जता दिया है कि पार्टी की प्राथमिकता अब परिवारवाद से आगे जाकर समावेशी नेतृत्व की ओर बढ़ना है।
लगातार नेताओं के पार्टी छोड़ने और कार्यकर्ताओं की हताशा के बीच यह देखना अहम होगा कि अनुप्रिया पटेल का यह कदम पार्टी की पकड़ को फिर से मजबूत कर पाएगा या नहीं।
राजनीतिक पंडित मानते हैं कि 2027 की तैयारियों के मद्देनज़र यह कदम एक “राजनीतिक सरजमीं की सफाई” जैसा है।
एक ओर यह निर्णय महिला नेतृत्व की दृढ़ता को दिखाता है, वहीं दूसरी ओर यह भी बताता है कि सत्ता और संगठन में केवल रिश्तों के बल पर लंबा टिकना मुश्किल है। आगामी विधानसभा चुनावों में अपना दल (एस) की दिशा और दशा इसी निर्णय के असर से तय होगी।