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Tuesday, September 23, 2025

जब तक अभाव, गरीबी और शोषण रहेगा—तब तक प्रासंगिक रहेंगे मुंशी प्रेमचंद

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– प्रेमचंद की कहानियों का भावपूर्ण वाचन, सामाजिक चेतना पर हुई चर्चा

फर्रुखाबाद। जनवादी लेखक संघ (जलेस) के तत्वावधान में कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद की 145वीं जयंती के अवसर पर “वर्तमान समय में मुंशी प्रेमचंद के साहित्य की प्रासंगिकता” विषयक एक विचारगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता राजकीय बालिका इंटर कॉलेज की पूर्व अध्यापक सुषमा कटियार ने की।

गोष्ठी का शुभारंभ प्रेमचंद के चित्र पर पुष्प अर्पित कर किया गया। इसके बाद होनहार छात्रा सेजल द्वारा प्रेमचंद की कालजयी कहानी “ईदगाह” का प्रभावशाली पाठ किया गया, जिससे श्रोता भावुक हो उठे।

जनवादी लेखक संघ के वरिष्ठ साथी महेश वर्मा ने कहा कि प्रेमचंद का साहित्य समाज का आईना ही नहीं, बल्कि बदलाव का रास्ता भी दिखाता है। सामाजिक कार्यकर्ता श्रीराम ने प्रेमचंद की कहानियों के उदाहरण देते हुए बताया कि उनका साहित्य आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना उनके समय में था।

राज्य परिषद सदस्य गीता भारद्वाज ने प्रेमचंद की कहानी “पूस की रात” का सजीव पाठ प्रस्तुत किया। वरिष्ठ साहित्यकार और पूर्व विभागाध्यक्ष, दुर्गानारायण स्नातकोत्तर महाविद्यालय के डॉ. राजकुमार सिंह ने कहा कि “आज तुलसीदास से भी अधिक प्रासंगिक मुंशी प्रेमचंद हैं, क्योंकि उन्होंने आम जनजीवन के स्पंदन को अपनी कहानियों में प्रस्तुत किया।”

पूर्व जिला बार एसोसिएशन अध्यक्ष जवाहर सिंह गंगवार एडवोकेट ने प्रेमचंद की कहानियों को जनमानस पर गहरा प्रभाव छोड़ने वाला साहित्य बताया।
केन्द्रीय परिषद सदस्य सुनील कुमार कटियार ने कहा कि प्रेमचंद ने अंग्रेजी हुकूमत के साथ-साथ सामाजिक गुलामी के विरुद्ध भी अपनी लेखनी चलाई। उनके लेखों और कहानियों में सांप्रदायिकता, जातिगत शोषण, किसान-मजदूरों की पीड़ा और धार्मिक पाखंड पर तीव्र प्रहार देखने को मिलता है। उन्होंने बताया कि प्रेमचंद ने ‘कर्बला’, ‘सद्गति’, ‘ठाकुर का कुआं’, ‘गोदान’, ‘दूध का दाम’, ‘सवा सेर गेहूं’ जैसी रचनाओं से समाज के शोषणकारी तंत्र को बेनकाब किया।
उन्होंने यह भी कहा कि—
> “प्रेमचंद का साहित्य गांधीवाद से होते हुए यथार्थवाद और अंततः मार्क्सवादी दृष्टिकोण तक जाता है। उनके साहित्य में आज के भारत की समस्याओं का भी स्पष्ट चित्रण है—चाहे वह किसान का मजदूर बनना हो, पूंजी का संकेन्द्रण हो, या दलित-आदिवासी-अल्पसंख्यकों के प्रति अन्याय।”
गोष्ठी की अध्यक्ष सुषमा कटियार ने प्रेमचंद साहित्य की सामाजिक प्रासंगिकता पर प्रकाश डालते हुए सभी का आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम का कुशल संचालन गीता भारद्वाज ने किया।
गोष्ठी का समापन राष्ट्रगान के साथ हुआ।
इस अवसर पर रामकुमार शर्मा, नरवीर सिंह, हरिनंदन यादव, उत्तम कुमार, देवकीनंदन गंगवार, वंशिका, संतोष कुमार, श्याम सुंदर, सुनील कुमार कटियार, जवाहर सिंह गंगवार, डॉ. राजकुमार सिंह आदि गणमान्य उपस्थित रहे।

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