आज़ादी–सत्ता हस्तांतरण या Sc/St समाज की प्रथक मौलिक संवैधानिक पहचान का अपहरण

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आज़ादी की आकांक्षा रखने वाले कुल तीन “गुट” थे।
•एक गुट तत्कालीन शासकों (अंग्रेजों)की चापलूसी, जीहुजूरी करते हुए चाहता था कि अंग्रेज़ भारत को हमारे हवाले कर दें,ताकि हम अपने मनमाने तरीके से भारत पर शासन करने लगें।
•• दूसरा गुट विधि विधान के साथ पूरी लिखा पढ़ी करके अंग्रेजों से भारत को सार्वभौमिक तौर पर आज़ाद कराते हुए नये सिरे अपना संविधान,शासन व्यवस्था,नीति, न्याय,जन कल्याण,राष्ट्र संप्रति आदि तत्वों से भरपूर संप्रभुता संपन्न धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के लिए कटिबद्ध था।
•••तीसरा गुट क्रांतिकारी सोच को रखने वाला, पारदर्शी सरल जीवन-पद्धति, झूठ छल प्रपंच पाखंड आदि से विलग,आत्म सम्मान,आत्म विश्वास,आत्म गौरव,राष्ट्र प्रेम,समर्पण बलिदान एवं राष्ट्र प्रथम,राष्ट्र सर्वोपरि के मनोभावों से ओतप्रोत रहकर अंग्रेजी हुकूमत से अपने भारत को आज़ाद कराकर,अपना भारत,अपने लिए,भारत वासियों के लिए,अपनी मातृभूमि के लिए, अपने भारत की धन धरती सत्ता और व्यवस्था पर भारत का कब्जा। बिना किसी मध्यस्थता के नैसर्गिक आज़ादी चाहता था।
कालांतर में अंग्रेजों ने भारत छोड़ने का मन बना लिया, पुरातनपंथी – रूढ़िवादी किसी एक धर्म के प्रति कटृरवादी गुट को सत्ता सौंपना एक गंभीर जोखिम मानते हुए गहन अध्ययन विमर्श उपरांत दूरगामी निर्णय लेते हुए अंग्रेजी हुकूमत ने चापलूसी और जीहुजूरी वाले गुट तथा क्रन्तिकारी विचार धारा वाले गुट को सत्ता न सौंपकर विधि-विधान, मानवीय सरोकार, व्यवस्थित शासन, नीति,न्याय,जन कल्याण एवं संवैधानिक विचार धारा को संपोषित करने के प्रति वचनबद्ध व संकल्प प्रकट करने वाले गुट को “सत्ता हस्तांतरण” करने का निर्णय लिया।
कालचक्र के साथ शैन:शैन: विधि-विधान अंतर्गत पात्रता प्राप्त गुट ने भारत की सत्ता का संचालन करना शुरू किया, अपेक्षित सार्वभौमिक विकास को धरातल पर क्रमशः उतारा जाने लगा, क्रन्तिकारी गुट को सत्ताधारी गुट तथा सत्ता से वंचित रह जाने वाले रूढ़िवादी गुट, दोनों ने ही ऐन- केन-प्रकारेण नश्तोनाबूद कर दिया,हासिए पर डाल दिया, पोस्टरों बैनरों किताबों में स्थापित कर दिया, कुछ को स्वतंत्रता सेनानी घोषित करके पेंशन भोगी बना दिया, उनके उदाहरण, उनके नामों का इस्तेमाल “वोट की राजनीति” तक सिमटा दिया गया।
समय बदला। हालात बदले। स्थितियां और परिस्थितियों में बदलाव आया, पीढ़ियां बदल गयीं, आधनुकिता का साम्राज्य पश्चिमी सभ्यता के भीषण प्रभाव के कारण भारत में स्थापित हो गया।
वहीं दूसरी ओर दीर्घ काल से सत्ता से वंचित रह रहे गुट ने समान्तर तौर पर स्वयं को तन मन धन तथा संख्या बल से मजबूत एवं संपुष्ट कर लिया और अपने जन्मजात विघटनकारी,विद्वेष परक,धर्म विशेष के प्रति कटृरवादी स्वभाव की शातिर कार्यशैली के परिणाम स्वरूप विभिन्न माध्यमों से सत्ता पर काबिज़ होने में कामयाबी हासिल कर ली। वर्तमान राजनीतिक महारथियों ने।
बारी बारी से सत्ता पर काबिज़ होने वाले दोनों ही गुटों की मिली भगत से अनेकों समझौते तथाकथित आज़ादी के बाद से अब तक हुए, होते आए हैं, उल्लेखनीय है कि संभवत: व्यवहारिक रूप से पूरी तन्मयता से किसी समझौते का परिपालन बहुत कम ही होते हुए देखा होगा। किंतु एक समझौता विधिवत आज़ादी से पूर्व एवं अंतरिम सरकार के कार्य काल में हुआ, जिसका अक्षरशः पालन करते आ रहे हैं Sc/st समाज के लोग ।
किन्तु ध्यान रहे पूना पैक्ट एक “पैक्ट” है। कोई “एक्ट” नहीं है।
24 सितंबर 1932 को यावरदा जेल पूना में महात्मा गांधी और डॉ अंबेडकर के बीच जिस समझौता को “*पूना पैक्ट” के नाम से जाना जाता है।
“पूना पैक्ट” की शर्त के अंतर्गत भारत के “गैर हिन्दू सामजिक वर्ग” को अंग्रेजी हुकूमत के द्वारा कम्युनल अवार्ड प्रदान किया गया जिसमें मानवीय सरोकार से ओतप्रोत सामाजिक,आर्थिक, शैक्षणिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक समता समानता मूलक अधिकार समाहित थे। “कम्युनल अवार्ड” में “ग़ैर हिन्दू समाज वर्ग” विशेषतया Sc/St समाज को अपनी जनसंख्या के अनुपात में लोकसभा, विधानसभा एवं अन्य सदनों के लिए अपने समाज विशेष का प्रतिनिधि प्रथक निर्वाचन प्रणाली के माध्यम से चुनने का अधिकार विद्यमान था। किन्तु “पूना पैक्ट” का नाटकीय *षड्यंत्र करके उस समाज वर्ग की सार्वभौमिक नैसर्गिक आज़ादी का अपहरण करते हुए कुटिल राजनितिज्ञों ने छीन लिया, इसी *अपहरण से उत्पन्न हुआ आरक्षण। Sc/St समाज के कुछ मानसिक गुलाम प्रवृत्ति के लोग, परिवार इस “आरक्षण” को अपनी व अपने समाज की प्राण वायु मान बैठे। किन्तु समाज के स्थाई कल्याण, सर्वांगीण विकास एवं आत्म सम्मान के साथ जीवन जीने की दूरदर्शी सोच रखने वाले अनेकानेक समाज सेवियों ने इस “आरक्षण” को समाज के लिए ज़हर* माना, “पूना पैक्ट” का विरोध किया, पूना पैक्ट रद्द करने, निष्प्रभावी कराने, “कम्युनल अवार्ड” वापस पाने की मांग रखी, सत्याग्रह किए, जेल यात्राएं की। संकल्पित मिशन हेतु आजीवन संघर्षरत रहने वाले पुरोधाओं में सम्मान सहित कई नाम हैं– हीरालाल हरिहर(स्वामी अछूतानंद),बाबू मांगुराम मंगोवालिया,बाबू जगजीवनराम,प्यारे लाल तालिब,तिलकचंद कुरील, दलित रत्न नत्थूलाल,बाबू कन्नौजी लाल आदि इत्यादि।
कालांतर में,देश में संविधान लागू होने से पहले तक यह मिशन मृतप्राय स्थिति में पहुंचा दिया गया, हमारे ही समाज के तथाकथित शासन सत्ता के चाटुकारों, स्वघोषित स्वार्थी समाज उद्धारकों के द्वारा। प्रकृति का नियम है जब-जब किसी समाज विशेष के सार्वभौमिक हित और आत्म सम्मान के लिए पूर्व पीढ़ियों के संघर्षकर्ताओं व आंदोलन कारियों ने ज्वलंत,संवेदनशील मुद्दों को लेकर सक्रियता के साथ मशाल जागृत की,उनका संघर्ष निष्फल नहीं हुआ, अवरोध या विराम तो उत्पन्न होते रहते हैं किन्तु पूर्ण विराम नहीं लगता। समाज की अगली पीढ़ी में से कभी भी किसी के भी द्वारा उन मुद्दों को पूरे समर्पित एवं संकल्पित भावों से पुनः सक्रिय प्रयास शुरू कर दिया जाता है। इसी प्राकृतिक विधान के निहित तथा मैंने अपने पिताश्री दलित रत्न नत्थूलाल के संघर्षों व आंदोलन से प्रभावित होकर मैंने 1996-97 में हिस्साआन्दोलन(Sc/St समूह) भारत। नामक संगठन को संस्थापित करके, निरंतर सक्रिय संघर्ष आरंभ किया। तब से अब तक
*–“पूना पैक्ट” निष्प्रभावी कराने। “कम्युनल अवार्ड” वापस पाने ।
*–Sc/St समुदाय के लिए प्रथक निर्वाचन प्रणाली लागू कराने। *–जातीय जनगणना सुनिश्चित कराने।
*–अपनी जनसंख्या के अनुपात में देश के धन धरती सत्ता और व्यवस्था में संतुलित अनुपातिक हिस्से दारी पर अपना कब्ज़ा सुनिश्चित कराने।
*– “चमार रेजिमेंट” की पुर्नवहाली सहित भारतीय सशस्त्र सेना के तीनों बलों में संख्या के अनुपात में Sc/St सैन्य दलों की स्थापना सुनिश्चित कराने सहित अन्य कुल 20 सूत्रीय मांगों का ज्ञापन अनेकों बार धरना/ प्रदर्शन/ सत्याग्रह/प्रेसवार्ताएं/उपरोक्त मुद्दों पर ही स्वतंत्र प्रत्याशी के तौर पर लोकसभा -विधानसभा के सात आठ चुनाव लड़े ,भारत के 17 राज्यों के महामहिम राज्यपालों (राजधानियों),44 जिलों के जिलाधीशों,उ.प्र.के समस्त मंडलआयुक्तों (कमिश्नरिंयों), राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली (जंतर-मंतर) महामहिम राष्ट्रपति महोदय भारत संघ गणराज्य को संबोधित मूल ज्ञापन/ज्ञापनों की प्रतियां मेरे द्वारा सौंपी जा चुकीं हैं। निरंतर पत्राचार सरकार से जारी रहा है।
मैंने जीवन संकल्प लेकर इस संघर्ष को अपनी निज भौतिक,बौद्धिक, सीमितआर्थिक क्षमता से कार्य रुप देने का भरसक प्रयास किया है/करता रहूंगा। लक्ष्य की प्राप्ति तक।
सविस्तार विस्तृत जानकारी के लिए फेसबुक इंस्ट्राग्राम व्हाट्स ऐप, टेलिग्राम, यूट्यूब पर “हिस्सा आन्दोलन” ग्रुप, मेरे पेज़ “विद्या प्रकाश कुरील” पर सर्च/ फालो कर सकते हैं। समय-समय पर सुनियोजित निर्धारित कार्यक्रमों की अग्रिम सूचना भी शोसल मीडिया पर पोस्ट के माध्यम से प्रेषित करता रहता हूं।
आइए! साथ जुड़िए, बढ़िए और अपने अपने हिस्से की लड़ाई खुद ही लड़िए।
©विद्या प्रकाश कुरील,(सर्वाधिकार सुरक्षित लेखकाधीन)
कवि-लेखक-स्वतंत्र पत्रकार एवं सक्रिय समाजसेवी।
संस्थापक/राष्ट्रीय संयोजक हिस्सा आन्दोलन(Sc/st समूह) भारत ।
05 नवम्बर 2025.

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