अमीर अलीः सात सौ हत्याएं करने वाला ठग

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क्या कोई ठग अपने ठगी के लगभग बीस साल के समय में 700 हत्याएं कर सकता है। इस पर यकीन नही होता किंतु यह सत्य है। 700 हत्याएं करने वाला ठग अमीर अली जेल में ठांठ से रहता है। उसे इन हत्याओं पर कोई अफसोस नही।

अशोक मधुप

वरिष्ठ पत्रकार

फिलिप मिडोज टेलर की पुस्तक एक ठग की दास्तान का हिंदी में अनुवाद राज नारायण पांडेय ने किया है। 700 से अधिक हत्याएँ करके अपराध के महासिन्धु में डूबा हुआ अमीर अली जेल में सामान्य बन्दियों से पृथक बड़े ठाट-बाट से रहता था। वह साफ कपड़े पहनता, अपनी दाढ़ी सँवारता और पाँचों वक्त की नमाज अदा करता था। उसकी दैनिक क्रियाएँ नियमपूर्वक चलती । अपराधबोध अथवा पश्चात्ताप का कोई चिह्न उसके मुख पर कभी नहीं देखा गया। उसे भवानी की अनुकम्पा और शकुनों पर अटूट विश्वास था। एक प्रश्न के उत्तर में उसने कहा था कि भवानी स्वयं उसका शिकार उसके हाथों में दे देती है, इसमें उसका क्या कसूर? और अल्लाह की मर्जी के बिना एक पत्ता भी नहीं हिल सकता। उसका यह भी कहना था कि यदि वह जेल में न होता तो उसके द्वारा शिकार हुए यात्रियों की संख्या हजार से अधिक हो सकती थी।

पुस्तक ‘एक ठग की दास्तान’ 19वीं शताब्दी के आरम्भकाल में मध्य भारत, महाराष्ट्र तथा निजाम के समस्त इलाकों में सड़क मार्ग से यात्रा करनेवाले यात्रियों के लिए आतंक का पर्याय बने ठगों में सर्वाधिक प्रसिद्ध अमीर अली के विभिन्न रोमांचकारी अभियानों की तथ्यपरक आत्मकथा है। इसे लेखक ने स्वयं जेल में अमीर अली के मुख से सुनकर लिपिबद्ध किया है। “एक ठग की आत्मकथा” — एक अत्यंत चर्चित कृति है। यह उपन्यास 1839 में प्रकाशित हुआ था और इसे भारतीय समाज, अपराध, धार्मिक अंधविश्वास तथा ब्रिटिश औपनिवेशिक दृष्टिकोण को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण दस्तावेज़ माना जाता है।टेलर स्वयं ब्रिटिश अधिकारी थे और उन्होंने लंबे समय तक भारत में कार्य किया। भारतीय संस्कृति, भाषा और समाज की गहरी समझ होने के कारण उन्होंने इस उपन्यास को न केवल अपराध की कथा के रूप में, बल्कि भारतीय जीवन के एक यथार्थ चित्र के रूप में प्रस्तुत किया। फिलिप मीडोज़ टेलर (1808–1876) ब्रिटिश अधिकारी, प्रशासक, और लेखक थे। उन्होंने अपने जीवन का अधिकांश समय भारत में बिताया, विशेषकर दक्षिण भारत के क्षेत्रों में। टेलर का झुकाव भारतीय जीवन, लोककथाओं और रहस्यमयी घटनाओं की ओर था। उन्होंने भारतीय समाज को केवल शासन की दृष्टि से नहीं, बल्कि मानवता और संस्कृति की दृष्टि से भी गहराई से समझा।

 

-“एक ठग की आत्मकथा” मूल रूप से एक अपराधी ठग, अमीर अली, की आत्मकथा है जिसे ब्रिटिश पुलिस पकड़ लेती है। कहानी का अधिकांश भाग अमीर अली के अपने अपराधी जीवन के वर्णन पर आधारित है, जिसे वह एक अंग्रेज अधिकारी को सुनाता है। अमीर अली मुस्लिम पृष्ठभूमि का व्यक्ति है, जो ठगों के एक संगठन से जुड़ जाता है। ये ठग धार्मिक और रहस्यमयी विश्वासों से प्रेरित होकर यात्रियों की हत्या करते थे और उनका धन लूट लेते थे। वे देवी काली की पूजा करते थे और मानते थे कि उनकी हत्या “धर्मिक बलिदान” का एक रूप है। अमीर अली अपने ठग जीवन के आरंभ, प्रशिक्षण, धार्मिक विश्वासों, यात्राओं, और अंततः गिरफ्तारी तक की कथा बड़े आत्मविश्वास और विस्तार से सुनाता है। कथा में भारत के विभिन्न भूभागों — मध्य भारत, बुंदेलखंड, मालवा, दक्क्षिण, आदि — के दृश्य आते हैं, जो 19वीं शताब्दी के भारत की सामाजिक और भौगोलिक झलक प्रस्तुत करते हैं।

अमीर अली का बाप भी ठग है। वह अपने बेटे काठगी की विधिवत ट्रेनिंग देता है। ये ठग अपने शिकार की एक रूमाल से हत्या करते हैं। रूमाल के एक किनारे में एक सिक्का बंधा होता है। ये अपने शिकार को बातों में लगाकर उसके गले में रूमाल डालकर उसे ऐंठ देते हैं।इससे शिकार का गला घुट जाता है और कुछ ही पल में मौत हो जाती है।ये मरे शिकार का पेट फाड़कर उसे जगह में दाब देतें हैं, जहां पता न लग सके।

पुस्तक के तीन पात्र हैं−1. अमीर अली – कहानी का नायक और कथावाचक। वह एक बुद्धिमान, साहसी, परंतु नैतिक दृष्टि से भ्रष्ट ठग है। उसके भीतर अपराध और आस्था का विचित्र मिश्रण है। 2.कैप्टन विलियम्स – ब्रिटिश अधिकारी जो अमीर अली से पूछताछ करता है और उसकी आत्मकथा को सुनता है। यह पात्र लेखक का प्रतिनिधि है । 3. ठगों का गिरोह – यह समूह संगठित अपराध का प्रतीक है, जो धार्मिक प्रतीकों और परंपराओं का सहारा लेकर हत्याओं को न्यायोचित ठहराता है।

पुस्तक में लेखक टेलर ने दिखाया कि कैसे धर्म और अंधविश्वास को अपराध का औचित्य सिद्ध करने के लिए प्रयोग किया जा सकता है। ठग देवी काली की सेवा के नाम पर यात्रियों की हत्या करते थे। कथा में विभिन्न भाषाएँ, रीति-रिवाज, परिधान, और लोकधारणाएँ शामिल हैं, जो भारत की बहुरंगी सामाजिक संरचना को दर्शाती हैं। अमीर अली का चरित्र गहराई से मनोवैज्ञानिक है। वह अपराधी है, परंतु पूरी तरह निर्दयी नहीं। वह अपने कर्मों को धार्मिक औचित्य से जोड़ता है, जिससे उसके भीतर द्वंद्व उत्पन्न होता है।

टेलर की भाषा सरल, प्रभावशाली और चित्रात्मक है। उन्होंने अंग्रेज़ी में लिखा, लेकिन भारतीय शब्दों — जैसे ठग, फकीर, देवी, नमाज़, काली — का प्रयोग प्रचुर मात्रा में किया, जिससे पाठक को भारतीय वातावरण का यथार्थ अनुभव होता है। संवाद-शैली ने उपन्यास को जीवंत बनाया है। अमीर अली के कथन आत्मस्वीकारोक्ति के रूप में हैं, जो उसे विश्वसनीय बनाते हैं।

“एक ठग की आत्मकथा अंग्रेजी साहित्य में पहला ऐसा उपन्यास था जिसने भारत के अपराध-जगत और औपनिवेशिक यथार्थ को इतने जीवंत रूप में प्रस्तुत किया। यह उपन्यास थ्रिलर शैली का प्रारंभिक उदाहरण भी माना जाता है, क्योंकि इसमें रहस्य, हत्या और मनोवैज्ञानिक तनाव का उत्कृष्ट संयोजन है। साथ ही, इस उपन्यास ने पश्चिमी पाठकों के बीच भारत के रहस्यमयी और अंधविश्वासी रूप की एक स्थायी छवि बनाई, जो बाद में औपनिवेशिक साहित्य की विशेषता बन गई।

उपन्यास उस समय लिखा गया जब ब्रिटिश सरकार भारत में ठगों के उन्मूलन के अभियान में जुटी थी।वास्तव में, 1830 के दशक में कैप्टन विलियम स्लीमैन ने ठगों के गिरोहों के विरुद्ध बड़े पैमाने पर कार्रवाई की थी।टेलर ने इसी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को आधार बनाकर अपने उपन्यास की रचना की। इस प्रकार यह रचना केवल साहित्यिक कल्पना नहीं, बल्कि एक सामाजिक-ऐतिहासिक दस्तावेज़ भी है।

उपन्यास यह संदेश देता है कि जब अंधविश्वास और धार्मिक कट्टरता मानव बुद्धि पर हावी हो जाते हैं, तो अपराध को भी “धर्म का रूप मिल जाता है। अमीर अली जैसे पात्र यह दिखाते हैं कि नैतिकता केवल कानून से नहीं, बल्कि विवेक और सहानुभूति से आती है। यह रचना यह भी इंगित करती है कि समाज में शिक्षा और विवेक का प्रसार ही ऐसे अपराधों का अंत कर सकता है।

फिलिप मीडोज़ टेलर की “एक ठग की आत्मकथा” केवल अपराध की कहानी नहीं, बल्कि भारतीय समाज के एक ऐसे अंधेरे पक्ष की गाथा है जहाँ धर्म, अंधविश्वास और लालच आपस में उलझे हैं। यह उपन्यास औपनिवेशिक युग के भारत को समझने का एक सशक्त माध्यम है।अमीर अली का चरित्र अपराधी होते हुए भी मानवीय जटिलताओं से भरा है, जो पाठक को यह सोचने पर विवश करता है कि अपराध केवल व्यक्ति का नहीं, समाज का भी दर्पण होता है ।

अशोक मधुप

( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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