पुलिस व्यवस्था पर सत्ता का शिकंजा: कमजोर को न्याय नहीं, नेताओं को सुरक्षा

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प्रशांत कटियार

देश की पुलिस व्यवस्था आज ऐसी दलदल में फंसी दिखाई देती है जहाँ उसका कर्तव्य जनता की रक्षा नहीं, बल्कि सत्ता की खुशामद तक सीमित होकर रह गया है। पुलिस के जेहन में यह बात गहरी बैठ चुकी है कि ऐसा कोई कदम न उठे जिससे कुर्सी पर बैठे लोग नाराज हो जाएं। इसी डर, दबाव और निर्भरता ने पूरे सिस्टम को भीतर से खोखला कर दिया है। परिणाम यह कि गरीब, कमजोर और पीड़ित व्यक्ति न्याय की उम्मीद लेकर पुलिस थाने तक तो पहुंच जाता है, लेकिन न्याय का दरवाज़ा उसके लिए अक्सर बंद ही दिखता है।पुलिस विभाग पर राजनीतिक दखल इस हद तक हावी है कि गिरफ्तारी से लेकर चार्जशीट तक, ट्रांसफर से लेकर प्रमोशन तक, यहां तक कि किसी मामले को दबाना है या उछालना है सबका फैसला सत्ता के कमरे में होता है। पुलिस का विवेक और कानून का रास्ता नेताओं की इच्छा के सामने अक्सर बेबस होकर रह जाता है।स्थिति और गंभीर तब होती है जब विभाग के अंदर ही अनुशासन टूट जाता है। कई सब इंस्पेक्टर और इंस्पेक्टर अपने उच्च अधिकारियों की बात तक नहीं मानते। वे कानून और अपने वरीयता क्रम के बजाय सीधे विधायक, सांसद और राजनीतिक आकाओं की शरण लेकर अपना काम निकलवाने लगते हैं। इससे विभाग के भीतर न सिर्फ नैतिकता मरती है बल्कि वरिष्ठ अधिकारियों की गरिमा भी धूल में मिल जाती है।इस व्यवस्था का सबसे बड़ा शिकार ईमानदार पुलिस अधिकारी बनते हैं। जो अफसर सिद्धांतों और कानून पर चलते हैं, उन्हें साइड लाइन कर दिया जाता है, महत्वहीन पदों पर बैठा दिया जाता है और कई बार तो उन्हें मानसिक रूप से प्रताड़ित करने तक की कोशिश की जाती है। कई अधिकारी इस दबाव में टूट जाते हैं और ईमानदारी का रास्ता छोड़कर सिस्टम से समझौता करने को मजबूर हो जाते हैं। यह सड़ा हुआ ढांचा ईमानदारों को निगल जाता है और भ्रष्टाचार व तानाशाही को बढ़ावा देता है।उत्तर प्रदेश में हाल के वर्षों में शीर्ष स्तर पर कुछ ईमानदार अधिकारियों की तैनाती की कोशिश जरूर हुई है, लेकिन जमीनी स्तर खासतौर पर थानों में आज भी पुराना रवैया कायम है। थानेदारों के व्यवहार में सत्ता का दबदबा साफ झलकता है। कई थाने ऐसे हैं जहाँ जनता की बात से ज्यादा नेता की फोन कॉल का वजन चलता है।देश की पुलिस व्यवस्था आज भीड़ के बीच खड़ी एक ऐसी थकी हुई संस्था बनती जा रही है जो जनता से दूर और सत्ता के करीब होती जा रही है। जब तक पुलिस को राजनीतिक गिरफ्त से मुक्त नहीं किया जाएगा, तब तक कमजोर लोगों तक न्याय नहीं पहुंचेगा। आज जरूरी है कि पुलिस कानून की रखवाली करे, न कि नेताओं की चौकसी। वरना यह व्यवस्था जनता के लिए नहीं, केवल सत्ता के संरक्षण का हथियार बनकर रह जाएगी।

लेखक दैनिक यूथ इंडिया के स्टेट है।

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