भारतीय सिनेमा के सदाबहार अभिनेता धर्मेंद्र सिर्फ एक सुपरस्टार नहीं थे—वे एक विचार थे, एक सादगी थे, एक प्रेम थे और एक ऐसा जीवन-दर्शन थे, जिसे आज भी लाखों लोग अपनाना चाहेंगे। पर्दे पर शक्ति, गंभीरता, रोमांस और हास्य के प्रतीक बने धर्मेंद्र असल जीवन में उतने ही सहज, शांत और दार्शनिक थे।जीवन के अंतिम वर्षों में उन्होंने एक बेहद गहरी बात कही थी— स्वस्थ तन और मन ही असली पूंजी है। बाकी सब यहीं छूट जाता है। पता नहीं करने के बाद कहां ले जाते हैं। उनके ये शब्द किसी फिल्मी संवाद की तरह नहीं, बल्कि जिंदगी के सार का निचोड़ हैं। धर्मेंद्र ने अपने लंबे, सक्रिय और ऊर्जावान जीवन में यह साबित किया कि स्वास्थ्य केवल शरीर तक सीमित नहीं—यह मन की शांति, आत्मा की स्थिरता और जीवन की सरलता से जुड़ा हुआ है। उनकी फिटनेस, उनकी मुस्कान, उनका संतुलित व्यवहार—सब कुछ इस बात का प्रमाण था कि वे शरीर और मन की एकता को समझते थे। वे अक्सर कहा करते थे— शरीर को मजबूत रखो और मन को साफ़—यही दुनिया की सबसे बड़ी कमाई है। आज के तनावग्रस्त जीवन में यह संदेश और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। विश्वभर में लोकप्रियता और धन-संपत्ति हासिल करने के बावजूद उन्होंने कभी अपने मूल स्वभाव को नहीं छोड़ा।कहते हैं कि धर्मेंद्र की सबसे बड़ी पहचान उनका दिल से जुड़ाव था—वे लोगों को सम्मान देते थे, और हर व्यक्ति में इंसानियत देखते थे। वे कहते थे,सब कुछ यहीं रह जाता हैज् नाम, शोहरत, दौलत। मनुष्य के साथ सिर्फ उसके कर्म जाते हैं। उनके इन शब्दों में वह गहराई है, जिसे समझना जीवन का सबसे बड़ा पाठ बन सकता है। धर्मेंद्र अक्सर जीवन के अनिश्चित सफर के बारे में बात करते थे। उनका वह वाक्य पता नहीं करने के बाद कहां ले जाते हैं एक साधारण लेकिन अत्यंत गूढ़ भाव है। यह मनुष्य की समग्र यात्रा का वास्तविक और विनम्र स्वीकार है। इसमें कोई भय नहीं, बल्कि एक प्रश्न है, एक जिज्ञासा है—जो हर व्यक्ति के मन में कहीं न कहीं छिपी रहती है। उन्होंने जीवन को गंभीरता से नहीं, बल्कि सहजता से लिया। और मृत्यु को अंत नहीं, एक पड़ाव माना। भारत के सबसे बड़े एक्शन हीरो, सबसे लोकप्रिय स्टार और करोड़ों दिलों के चहेते होने के बावजूद धर्मेंद्र ने कभी अपने जीवन को अहंकार के बोझ से नहीं भरने दिया। वे हमेशा कहते थे जो मिला, उसी में खुश रहना सीखो।क्योंकि अंत में सब समाप्त हो जाता है,बस इंसान की अच्छाई रह जाती है। उनका यह जीवन-फिलॉसफी हर उम्र के व्यक्ति के लिए प्रेरणा है। धर्मेंद्र ने फिल्मों में जितने किरदार निभाए, वे सब आज भी भारतीय सिनेमा की धरोहर हैं शोले के वीरू से लेकर बंधिनी, अनुपमा, चुपके चुपके और हमराज़ तक—हर किरदार में उन्होंने जीवन की सच्चाई, भावनाओं की गहराई और इंसानियत की गर्माहट को जिया और असल जीवन में उनकी सीखें स्वस्थ रहो, मन को साफ़ रखो, रिश्तों को महत्व दो, सब कुछ यहीं रह जाता है आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं। धर्मेंद्र भले अब इस दुनिया में न हों, लेकिन उनके शब्द, उनकी सादगी, उनकी मुस्कान और उनका जीवन-दर्शन आने वाली पीढिय़ों को प्रेरित करता रहेगा। उन्होंने हमें यह सिखाया जीवन की असली संपत्ति पैसा नहीं,स्वस्थ तन, शांत मन और अच्छा दिल है।यही धर्मेंद्र की विरासत है। यही उनकी अमरता है।

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शरद कटियार

भारतीय सिनेमा के सदाबहार अभिनेता धर्मेंद्र सिर्फ एक सुपरस्टार नहीं थे—वे एक विचार थे, एक सादगी थे, एक प्रेम थे और एक ऐसा जीवन-दर्शन थे, जिसे आज भी लाखों लोग अपनाना चाहेंगे। पर्दे पर शक्ति, गंभीरता, रोमांस और हास्य के प्रतीक बने धर्मेंद्र असल जीवन में उतने ही सहज, शांत और दार्शनिक थे।जीवन के अंतिम वर्षों में उन्होंने एक बेहद गहरी बात कही थी—
स्वस्थ तन और मन ही असली पूंजी है। बाकी सब यहीं छूट जाता है। पता नहीं करने के बाद कहां ले जाते हैं। उनके ये शब्द किसी फिल्मी संवाद की तरह नहीं, बल्कि जिंदगी के सार का निचोड़ हैं। धर्मेंद्र ने अपने लंबे, सक्रिय और ऊर्जावान जीवन में यह साबित किया कि स्वास्थ्य केवल शरीर तक सीमित नहीं—यह मन की शांति, आत्मा की स्थिरता और जीवन की सरलता से जुड़ा हुआ है। उनकी फिटनेस, उनकी मुस्कान, उनका संतुलित व्यवहार—सब कुछ इस बात का प्रमाण था कि वे शरीर और मन की एकता को समझते थे। वे अक्सर कहा करते थे— शरीर को मजबूत रखो और मन को साफ़—यही दुनिया की सबसे बड़ी कमाई है।
आज के तनावग्रस्त जीवन में यह संदेश और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। विश्वभर में लोकप्रियता और धन-संपत्ति हासिल करने के बावजूद उन्होंने कभी अपने मूल स्वभाव को नहीं छोड़ा।कहते हैं कि धर्मेंद्र की सबसे बड़ी पहचान उनका दिल से जुड़ाव था—वे लोगों को सम्मान देते थे, और हर व्यक्ति में इंसानियत देखते थे। वे कहते थे,सब कुछ यहीं रह जाता हैज् नाम, शोहरत, दौलत। मनुष्य के साथ सिर्फ उसके कर्म जाते हैं। उनके इन शब्दों में वह गहराई है, जिसे समझना जीवन का सबसे बड़ा पाठ बन सकता है। धर्मेंद्र अक्सर जीवन के अनिश्चित सफर के बारे में बात करते थे। उनका वह वाक्य पता नहीं करने के बाद कहां ले जाते हैं एक साधारण लेकिन अत्यंत गूढ़ भाव है। यह मनुष्य की समग्र यात्रा का वास्तविक और विनम्र स्वीकार है। इसमें कोई भय नहीं, बल्कि एक प्रश्न है, एक जिज्ञासा है—जो हर व्यक्ति के मन में कहीं न कहीं छिपी रहती है। उन्होंने जीवन को गंभीरता से नहीं, बल्कि सहजता से लिया। और मृत्यु को अंत नहीं, एक पड़ाव माना। भारत के सबसे बड़े एक्शन हीरो, सबसे लोकप्रिय स्टार और करोड़ों दिलों के चहेते होने के बावजूद धर्मेंद्र ने कभी अपने जीवन को अहंकार के बोझ से नहीं भरने दिया।
वे हमेशा कहते थे जो मिला, उसी में खुश रहना सीखो।क्योंकि अंत में सब समाप्त हो जाता है,बस इंसान की अच्छाई रह जाती है। उनका यह जीवन-फिलॉसफी हर उम्र के व्यक्ति के लिए प्रेरणा है। धर्मेंद्र ने फिल्मों में जितने किरदार निभाए, वे सब आज भी भारतीय सिनेमा की धरोहर हैं शोले के वीरू से लेकर बंधिनी, अनुपमा, चुपके चुपके और हमराज़ तक—हर किरदार में उन्होंने जीवन की सच्चाई, भावनाओं की गहराई और इंसानियत की गर्माहट को जिया और असल जीवन में उनकी सीखें स्वस्थ रहो, मन को साफ़ रखो, रिश्तों को महत्व दो, सब कुछ यहीं रह जाता है आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं।
धर्मेंद्र भले अब इस दुनिया में न हों, लेकिन उनके शब्द, उनकी सादगी, उनकी मुस्कान और उनका जीवन-दर्शन आने वाली पीढिय़ों को प्रेरित करता रहेगा। उन्होंने हमें यह सिखाया जीवन की असली संपत्ति पैसा नहीं,स्वस्थ तन, शांत मन और अच्छा दिल है।यही धर्मेंद्र की विरासत है। यही उनकी अमरता है।

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