(मुकेश “कबीर”-विभूति फीचर्स)
आजकल टेगड़ों से बचना बड़ा मुश्किल है, भले ही आप महीने भर बाद फेसबुक खोलें आपको कई लोग टेग कर देते हैं फिर या तो इनकी महीने भर की यश गाथा देखते रहिए या वापस अपनी खिड़की बंद कर लीजिए, या फिर हाइड करते रहिए अगले एक महीने तक । कभी कभी तो लगता है कि हमने फेसबुक ही इन टेगड़ों के लिए खोला है, हम अपनी पोस्ट डाल ही नहीं पाते कि कोई न कोई टेग कर देता है, यह बिल्कुल ऐसा ही है जैसे पुराने वक़्त में हम दिवाली पर अपने घर की दीवार लीप पोतकर चमकाते थे और अगले दिन ही कोई चुनावी छुटभैये नेता पोस्टर चिपका जाते थे “खाऊ चंद को वोट दो” या कोई लिख जाता था आपका चुनाव चिन्ह “बिना पेंदी का लोटा” और हम मन मसोसकर रह जाते थे। हम उनका भी कुछ नहीं उखाड़ पाते थे और इन टेग करने वालों का भी कुछ नहीं कर पाते । वो तो भला हो शेषन साब का जिन्होंने घर की दीवारों पर चुनाव प्रचार बंद करा दिया। लेकिन फेसबुक पर ऐसा कोई टीएन शेषन नहीं है जो इन टेग करने वालों को रोक सके टेग करने वाले खुद की वॉल पर कुछ लिखें या न लिखें लेकिन दूसरों की वॉल जरूर पूरी भर देंगे जैसे उनको बॉस ने टार्गेट दिया हो कि सबको टेग करो तो ढाई पर्सेंट इंक्रीमेंट लगेगा ,उस ढाई पर्सेंट के चक्कर में कई लोगों से तीन पांच कर लेंगे लेकिन आदत नहीं सुधारेंगे, कई बार आप गुस्से मे उन्हें ब्लॉक भी कर देते हैं लेकिन ना जाने कहाँ से वापस आ जाते हैं। जैसे बड़े क्रिमिनल तुरन्त ज़मानत पर बाहर छूट जाते हैं और फिर नए सिरे से काम पर लग जाते हैं l ये टेगड़े इतने अधिकार से दूसरों की वॉल पर टेग करते हैं जैसे आपने इनसे इसी शर्त पर उधार ले रखा हो कि मेरी वॉल पर डेढ़ सौ बार टेग कर लेना उधार पट जाएगा l इनको कोई फर्क़ नहीं पड़ता कि सामने वाले को कितनी दिक्कत हो रही है, या उनके अन्य फ्रेंड्स को कितनी दिक्कत हो रही हो जो देखना किसी और को चाहते हैं लेकिन दिखाई कोई और देता है l टेगडे अपनी हर छोटी बड़ी बात दूसरों की वॉल पर चिपका देते हैं, जैसे डस्टबिन हो कोई, फिर आप पढ़े या न पढ़े उनकी पोस्ट रेगुलर मिलती रहेगी जैसे देश का सबसे तेज बढ़ता अखबार रोज सुबह आपके दरवाजे पर टपक पड़ता है, जिसके प्रथम पृष्ठ पर छोटे कपड़े पहने हुए बड़ी हीरोइन दिखाई देती है उसके बाद ही कोई न्यूज होगी l ख़ैर उसकी चर्चा फिर कभी। वैसे भी आजकल छोटे कपड़े वालियों से डरना जरूरी है वर्ना बड़ा लोचा हो जाता है, एक बाबाजी ने विरोध कर दिया था छोटे कपड़ों का तो कसम से भाई साब उनकी बाबागिरी खतरे में पड़ गई थी,हमें अपनी व्यंग्यकारी खतरे में नहीं डालना इसलिए वापस टेगड़ों पर ही आते हैं l इन टेगड़ों की एक और खासियत यह होती है कि यदि इन्होंने कोई बड़ा कारनामा किया है तो दो दो बार भी टेग कर देते हैं, उन्हें पता नहीं कैसे खुद पर इतना भरोसा होता है कि पहली बार में उन्हें किसी ने पढ़ा ही नहीं होगा इसलिए तुरंत सेकंड राउन्ड फायर …इन्हें किसी से डर भी नहीं लगता ,ना फटकार का डर,न अनफ्रेंड किए जाने का डर। ये जानते हैं कि जो हफ्तों तक खुद की वॉल पर नहीं आते वो अनफ्रेंड करने कहाँ आयेंगे और यदि एक दो ने अनफ्रेंड कर भी दिया तो उनकी ही लिस्ट में से आठ दस को फ्रेंड बना लेंगे, कुछ दिन नए फ्रेंड्स को शांति से जीने देंगे उसके बाद उनको टेग करने लगेंगे, समंदर में मछलियों की कमी है क्या ? तो बात का ग्रैंड टोटल यह है कि टेगड़ों का कोई इलाज नहीं ,बस सावधानी में ही सुरक्षा है। इनका हाल भी प्यार करने वालों जैसा है इसलिए फेसबुक चलाने का शौक है तो टेगड़ों को वैसे ही स्वीकार करो जैसे प्यार करने वाले पार्क में घूमने जाते हैं तो मच्छरों को एडजस्ट करते हैं, क्योंकि ये टेगड़े तो एडजस्ट करने वाले हैं नहीं l जैसे प्यार करने वालों के बारे में कहा जाता है वही हाल इनका है, आई मीन..टेग करने वाले कभी डरते नहीं जो डरते हैं वो टेग करते नहीं…बाय द वे आपको हमारा व्यंग्य अच्छा लगे तो इसको अपनी वॉल पर जरूर डालना और हो सके तो फ्रेंड्स को टेग भी कर देना..। (विभूति फीचर्स)
व्यंग्य : टेग करने वाले कभी डरते नहीं,जो डरते हैं वो…


