लेखक – भारत चतुर्वेदी, राष्ट्रीय अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश पत्रकार परिषद
पत्रकारिता केवल पेशा नहीं, बल्कि यह समाज का आईना है। यह वह माध्यम है जो सत्ता और जनता के बीच सेतु का काम करता है। लेकिन आज जब सूचना की गति प्रकाश से भी तेज़ हो गई है, तब पत्रकारिता के सामने सबसे बड़ी चुनौती “विश्वसनीयता” की है। मैंने अपने चार दशक लंबे पत्रकारिता जीवन में देखा है कि कैसे कलम, कैमरा और विचार ने समाज को झकझोरा, सरकारों को सजग किया और आम आदमी को आवाज़ दी। पर आज वही पत्रकारिता एक चौराहे पर खड़ी है, जहाँ सच्चाई और सनसनी के बीच की रेखा धीरे-धीरे धुंधली पड़ती जा रही है।
बीते वर्षों में पत्रकारिता ने कई रूप बदले हैं — कभी अखबार के पन्नों पर स्याही से लड़ाई लड़ी, तो कभी कैमरे के लेंस से सच दिखाया। लेकिन डिजिटल युग में जब मोबाइल स्क्रीन ने अखबार और टीवी दोनों को पीछे छोड़ दिया, तब पत्रकारिता को भी अपने स्वरूप में बदलाव लाना पड़ा। अब हर व्यक्ति “न्यूज मेकर” है और सोशल मीडिया ने हर हाथ में एक “मिनी न्यूज रूम” दे दिया है। पर सवाल यह है कि क्या हर जानकारी खबर है, और क्या हर वायरल वीडियो सच्चाई है?
पत्रकारिता की सबसे बड़ी शक्ति उसकी जिम्मेदारी है। यह जिम्मेदारी केवल खबर देने की नहीं, बल्कि समाज को दिशा देने की है। एक सच्चा पत्रकार वही है जो भीड़ में खड़ा होकर सच की आवाज़ उठाए, भले ही वह आवाज़ कमजोर पड़े। पत्रकारिता में साहस होना जरूरी है, क्योंकि बिना साहस के कलम केवल शब्दों का संग्रह रह जाती है, विचारों का नहीं।
मैंने हमेशा यह कहा है कि पत्रकार का काम “लोकतंत्र की आँख” बनना है — न सरकार का पक्ष लेना, न विपक्ष का, बल्कि केवल जनहित का। जब पत्रकार सत्ता से सवाल पूछना बंद कर देता है, तब लोकतंत्र कमजोर होता है। आज जरूरत है उस पत्रकारिता की जो सत्ता को आईना दिखाने का साहस रखे, और जनता के दर्द को संवेदनशीलता से सामने लाए।
पत्रकारिता का एक और अहम पहलू “संवेदनशीलता” है। यह पेशा केवल सूचनाएँ बांटने का माध्यम नहीं, बल्कि समाज के कमजोर तबकों की आवाज़ बनने की जिम्मेदारी भी निभाता है। जब कोई पत्रकार किसी किसान की बदहाली, किसी छात्र की सफलता, या किसी महिला के संघर्ष की कहानी लिखता है — तभी उसकी कलम असली अर्थों में समाज की सेवा करती है।
आज डिजिटल मीडिया के इस दौर में, जब खबरें लाइक्स, व्यूज़ और क्लिक पर तौली जा रही हैं, तब पत्रकारिता के लिए अपनी आत्मा को बचाए रखना सबसे कठिन काम है। खबरों को बिकने की वस्तु नहीं, बल्कि विचार का वाहक बनाए रखना ही असली चुनौती है। पत्रकारिता में प्रतिस्पर्धा हो सकती है, पर समझौता नहीं।
मैं सभी युवा पत्रकारों से कहना चाहूँगा कि इस पेशे में आने का अर्थ केवल नौकरी करना नहीं, बल्कि एक जिम्मेदारी निभाना है। पत्रकारिता में सफलता का असली पैमाना आपकी सैलरी नहीं, बल्कि आपकी विश्वसनीयता है। जब समाज आपकी लिखी बात पर भरोसा करता है, तब ही आप पत्रकार कहलाने के योग्य हैं।
हमारे पूर्वज पत्रकारों ने अंग्रेज़ी हुकूमत के दौर में कलम को हथियार बनाया था, और आज हमें उसी परंपरा को डिजिटल युग में जीवित रखना है। फर्क सिर्फ इतना है कि तब खतरे बाहर से थे, और आज भीतर से हैं — जैसे लालच, दबाव, पक्षपात और सनसनी की होड़।
पत्रकारिता का भविष्य तभी उज्जवल होगा जब हम फिर से उसकी आत्मा को समझेंगे — “जनसेवा, निष्पक्षता और सच्चाई।” मीडिया का काम सत्ता को गिराना नहीं, बल्कि सुधारना है। उसका उद्देश्य विरोध नहीं, विमर्श है। अगर पत्रकार अपने नैतिक मूल्यों पर अडिग रहे, तो कोई ताकत पत्रकारिता को झुका नहीं सकती।
मुझे गर्व है कि आज भी देश के कोने-कोने में ऐसे पत्रकार हैं जो कठिन परिस्थितियों में भी सच्चाई की मशाल थामे हुए हैं। वही पत्रकार हमारे लोकतंत्र के असली प्रहरी हैं।
समय बदल रहा है, माध्यम बदल रहे हैं, लेकिन पत्रकारिता की आत्मा आज भी वही है — जनता के साथ, सच्चाई के साथ और जिम्मेदारी के साथ। और जब तक कलम जीवित है, तब तक सच को दबाया नहीं जा सकता।
यही पत्रकारिता का असली धर्म है — और यही इसकी अमर पहचान भी।






