
प्रशांत कटियार
देश की सड़कों, चौराहों, मंदिरों, मस्जिदों, रेलवे स्टेशनों और ट्रैफिक सिग्नलों पर फैली भीख की तस्वीर अब किसी मजबूरी की नहीं, बल्कि एक सुनियोजित धंधे की पहचान बन चुकी है। जिस देश में सरकार गरीबों को मुफ्त राशन, इलाज, आवास, शिक्षा और रोजगार से जोड़ने के लिए सैकड़ों योजनाएं चला रही हो, वहां भीख मांगने का यूं खुलेआम फलना-फूलना व्यवस्था और समाज दोनों पर बड़ा सवाल खड़ा करता है।
आज भीख मांगना सहानुभूति नहीं, बल्कि भावनात्मक ब्लैकमेल का हथियार बन गया है। गोद में बच्चों को लेकर, नकली विकलांगता दिखाकर, झूठी बीमारी का हवाला देकर लोगों की जेबें ढीली कराई जाती हैं। कई बार ऐसे लोग पकड़े गए हैं जो सुबह सड़क पर भिखारी और शाम को ठीक ठाक मकान में रहने वाले निकले। यह सच्चाई जितनी कड़वी है, उतनी ही शर्मनाक भी है कि मेहनत करने वाला मजदूर दिन भर खटकर जितना कमाता है, उससे अधिक कमाई भीख के नाम पर हो जाती है।भीख का यह फैलता जाल देश और प्रदेश की छवि को दुनिया के सामने बदनाम करता है। विदेशी पर्यटक जब भारत आते हैं और हर कदम पर भीख मांगते लोगों से घिरे रहते हैं, तो भारत की पहचान संस्कृति और विकास से नहीं, गरीबी और अव्यवस्था से जुड़ जाती है। यह स्थिति न केवल पर्यटन को नुकसान पहुंचाती है, बल्कि निवेश और अंतरराष्ट्रीय भरोसे पर भी असर डालती है।सबसे गंभीर पहलू यह है कि भीख अब कई जगह संगठित अपराध का रूप ले चुकी है। बच्चों को स्कूल भेजने के बजाय भीख मंगवाया जाता है, महिलाओं और कमजोर लोगों को गिरोहों के जरिए सड़कों पर बैठाया जाता है और उनकी कमाई हड़प ली जाती है। यह केवल सामाजिक बुराई नहीं, बल्कि अपराध है, जिसे सहानुभूति के नाम पर नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।अब समय आ गया है कि भीख मांगने पर सख्त रोक लगे और उसे अपराध की श्रेणी में रखा जाए। जो वास्तव में असहाय हैं, उनके लिए पुनर्वास, आश्रय, इलाज और रोजगार की व्यवस्था हो, लेकिन जो इसे पेशा बनाकर देश की गरिमा को ठेस पहुंचा रहे हैं, उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई हो। इसके साथ ही समाज को भी अपनी भूमिका निभानी होगी। हर हाथ फैलाने वाले को पैसा देकर हम अनजाने में इस धंधे को बढ़ावा देते हैं। दान देना है तो संस्थाओं, आश्रय गृहों और सरकारी माध्यमों से दीजिए, सड़क पर नहीं।
भीख से किसी का भविष्य नहीं सुधरता, न देश का सम्मान बढ़ता है। सम्मान मेहनत से मिलता है, आत्मनिर्भरता से मिलता है। अगर भारत को सच में विकसित और स्वाभिमानी बनाना है, तो भीख नहीं, काम की संस्कृति को बढ़ावा देना होगा। यह कठोर फैसला हो सकता है, लेकिन देश की गरिमा बचाने के लिए अब यही एकमात्र रास्ता है।
लेखक दैनिक यूथ इंडिया के स्टेट हेड हैं।






