✍️ शरद कटियार
उत्तर प्रदेश में पुलिस महानिदेशक राजीव कृष्ण का यह बयान — “अपराध और अपराधियों को किसी भी कीमत पर बख्शा नहीं जाएगा” — केवल एक प्रशासनिक घोषणा नहीं, बल्कि एक सख़्त संदेश है उस समाज के लिए भी, जो अपराधी और निर्दोष में फर्क करने के बजाय आज भी जात और धर्म के चश्मे से देखता है।
यह विडंबना ही है कि जब कोई अपराधी पकड़ा जाता है, यह उसे पर शिकंजा करने की तैयारी होती है तो उसके अपराध पर चर्चा कम और उसकी जाति या धर्म पर बहस ज़्यादा होती है। अपराध पर नफरत नहीं, बल्कि अपराधी के सामाजिक पहचान पर सहानुभूति दिखाना — यही वह सोच है जो कानून से ज़्यादा समाज को कमजोर करती है।
सवाल यह है कि जब पुलिस अपराधी पर शिकंजा कसती है, तो उस अपराधी की जातीय समाज का वर्ग क्यों तिलमिला उठता है? क्या कानून केवल कुछ खास तबकों के लिए है?
आज का सबसे बड़ा खतरा — अपराध का समर्थन और, अपराधी का महिमामंडन करना है। और सबसे ज्यादा दुखद यह कि इसमें सोशल मीडिया ने आग में घी डालने का काम किया है।
सोशल मीडिया के प्लेटफॉर्म्स पर आज ऐसे अनगिनत पोस्ट देखने को मिलते हैं जहाँ अपराधियों को “मासूम” या “सिस्टम का शिकार” बताकर नायक बनाया जाता है। यह न केवल कानून की गरिमा का अपमान है, बल्कि समाज की नैतिक जड़ों पर प्रहार भी।
अपराध की कोई जात नहीं होती, कोई धर्म नहीं होता — वह सिर्फ़ अपराध होता है। और अपराधी सिर्फ़ अपराधी होता है, चाहे वह किसी भी वर्ग, समुदाय या हैसियत से क्यों न जुड़ा हो।
समाज को यह समझना होगा कि अपराध खत्म करने की जिम्मेदारी केवल पुलिस की नहीं, बल्कि हर नागरिक की है।
यदि जनता अपराधियों को अपनी जातीय पहचान का कवच देगी, तो कानून कितना भी सख्त क्यों न हो — अपराध की जड़ें और गहरी होती जाएंगी।
युवाओं को विशेष रूप से यह समझने की जरूरत है कि सोशल मीडिया पर किसी अपराधी का समर्थन करना “स्वतंत्रता का प्रयोग” नहीं बल्कि अपराध का नैतिक संरक्षण है। एक क्लिक से दिया गया “लाइक” या “शेयर” कभी-कभी कानून और व्यवस्था के खिलाफ माहौल बना देता है।
समाज तभी सुरक्षित होगा जब हम यह तय करेंगे कि हम अपराधी के नहीं, कानून के साथ हैं।अपराधी का पुराना इतिहास और उसके कृत्य भी जाँचने चाहिए।
जब जाति और धर्म से ऊपर उठकर न्याय की बात होगी — तब ही अपराध पर शिकंजा सच में सफल होगा।और अपराध पर लगाम लगेगी।
योगी सरकार की जीरो टॉलरेंस नीति ने कानून को सशक्त किया है, लेकिन समाज को भी अब अपनी भूमिका निभानी होगी।
कानून अपराधियों को सजा दे सकता है, लेकिन अपराध की मानसिकता मिटाने की ताकत सिर्फ़ समाज के पास है।
अपराधी चाहे कोई भी हो, उसे समाज का नहीं, कानून का जवाब देना चाहिए।
और जो समाज अपराधी को जात या धर्म के नाम पर ढाल बनाता है, वह खुद अपराध का भागीदार बन जाता है।






