विनय यादव
बांसुरी नगरी तराई के जनपद पीलीभीत (pilibhit) में जब कोई युवा सीमित संसाधनों के साथ अपने सपनों की उड़ान भरता है, तो वह सिर्फ अपना नहीं, बल्कि पूरे समाज का भविष्य संवारने का कार्य करता है। कुछ ऐसी ही प्रेरणादायक कहानी है नंदकिशोर कश्यप की, जिनकी मेहनत और लगन ने उन्हें “कुलचा जंक्शन” (Kulcha Junction) तक पहुंचाया और जिनकी सराहना स्वयं प्रदेश सरकार में दर्जा प्राप्त राज्य मंत्री सुरेश गंगवार ने की। शनिवार को पीलीभीत के प्रसिद्ध कुलचा जंक्शन पर उस समय विशेष दृश्य देखने को मिला, जब राज्य मंत्री सुरेश गंगवार ने वहां पहुंचकर तंदूरी अमृतसरी कुलचे और आम का पन्ना का स्वाद चखा। यह कोई साधारण औपचारिक यात्रा नहीं थी, बल्कि एक मेहनतकश युवा के संघर्ष, आत्मनिर्भरता और उद्यमशीलता को नमन करने का अवसर था।
मंत्री गंगवार की उपस्थिति और सराहना ने यह स्पष्ट संकेत दिया कि शासन-प्रशासन अब जमीनी स्तर पर काम करने वालों की पहचान कर रहा है और उन्हें प्रोत्साहन भी दे रहा है। नंदकिशोर कश्यप की यह यात्रा आसान नहीं रही। कोविड महामारी के दौर में जब बड़े-बड़े उद्योग ठप हो गए, तब इस युवा ने हार नहीं मानी।
अपनी पाक-कला में निपुणता को व्यवसाय में बदलते हुए उन्होंने न केवल खुद को संभाला, बल्कि चार अन्य बेरोजगार युवाओं को भी रोजगार प्रदान किया। ऐसे उदाहरण आज के समय में दुर्लभ हैं, जब युवा अक्सर सरकारी नौकरी या स्थायित्व की तलाश में अपने जुनून को दबा देते हैं। कश्यप ने न सिर्फ सपने देखे, बल्कि उन्हें साकार भी किया—वो भी बिना किसी सरकारी सहायता के।
सुरेश गंगवार की टिप्पणी कि “नंदकिशोर जैसे युवा ही आत्मनिर्भर भारत की असली तस्वीर हैं”
कोई राजनीतिक बयान नहीं, बल्कि आज की जमीनी हकीकत का प्रतिबिंब है। जब युवाओं को सही दिशा, प्रोत्साहन और सम्मान मिलता है, तो वे समाज की धारा को बदलने में सक्षम होते हैं। यह भी उल्लेखनीय है कि नंदकिशोर कश्यप को पूर्व में पीलीभीत के आईपीएस अधिकारी जयप्रकाश द्वारा सम्मानित किया जा चुका है, जो यह दर्शाता है कि उनकी कर्मठता लंबे समय से पहचान पा रही है।
आज के दौर में जब फास्ट-फूड और रेडीमेड संस्कृति ने स्थानीय व्यंजनों की जगह ले ली है, तब “कुलचा जंक्शन” जैसे उपक्रम न केवल स्वाद की विरासत को बचा रहे हैं, बल्कि रोजगार के नए द्वार भी खोल रहे हैं। यह केवल एक दुकान नहीं, बल्कि एक सामाजिक प्रयोगशाला है, जहां स्वाद, स्वावलंबन और सेवा एक साथ पनप रहे हैं।
इस पूरे घटनाक्रम से एक बड़ा संदेश यह भी निकलता है कि नेताओं को जनता के बीच जाकर उनके प्रयासों को समझना और सम्मान देना चाहिए। जब जनप्रतिनिधि स्वयं जमीनी उद्यमों को समर्थन देते हैं, तो न केवल प्रशासनिक विश्वास बढ़ता है, बल्कि सामाजिक सहभागिता भी प्रगाढ़ होती है। सुरेश गंगवार की यह पहल उसी दिशा में एक सकारात्मक कदम है।
अंततः, नंदकिशोर कश्यप और उनका “कुलचा जंक्शन” हमें यह सिखाता है कि अगर इरादे मजबूत हों और काम के प्रति समर्पण हो, तो सफलता निश्चित है। यह कहानी न केवल पीलीभीत, बल्कि समूचे उत्तर प्रदेश के युवाओं के लिए एक प्रेरणा है कि आत्मनिर्भर भारत का सपना किसी भी चाय की दुकान, कुलचे की थाली या लिट्टी-चोखा के ठेले से शुरू हो सकता है—बस ज़रूरत है हौसले और मेहनत की।