नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सोमवार को अरावली पहाड़ियों (Aravalli Hills) की संशोधित “परिभाषा” से संबंधित अपने पूर्व निर्देशों और विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट के कार्यान्वयन पर रोक लगा दी। कोर्ट ने आशंका जताई कि इन बदलावों की गलत व्याख्या की जा रही है और इससे पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में अनियंत्रित खनन की अनुमति मिल सकती है।
भारत के मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत, न्यायमूर्ति जे.के. माहेश्वरी और ए.जी. मसीह की अध्यक्षता वाली अवकाशकालीन पीठ ने कहा कि संशोधित परिभाषा को लागू करने से पहले और स्पष्टीकरण की आवश्यकता है। पीठ ने कहा, “हम समिति की सिफारिशों और इस न्यायालय के निर्देशों को स्थगित रखना आवश्यक समझते हैं।”
अदालत ने अरावली पर्वत श्रृंखला की अद्यतन परिभाषा के संबंध में जिन मुद्दों की जांच या पुन: जांच की आवश्यकता है, उनका अध्ययन करने के लिए एक नई विशेषज्ञ समिति के गठन का भी आदेश दिया। केंद्र सरकार और राजस्थान, गुजरात, दिल्ली और हरियाणा की सरकारों को नोटिस जारी किए गए। सुप्रीम कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई 21 जनवरी को तय की।
केंद्र द्वारा अरावली पर्वतमाला की संशोधित परिभाषा की अधिसूचना जारी करने के विरोध में कार्यकर्ताओं और वैज्ञानिकों द्वारा उठाए गए विरोध और चिंताओं के बाद स्वतः संज्ञान लेते हुए कार्यवाही शुरू की गई। पिछले महीने, सुप्रीम कोर्ट ने अरावली पर्वतमाला की संशोधित परिभाषा को स्वीकार कर लिया था और केंद्र को इस क्षेत्र में किसी भी नई खनन गतिविधि की अनुमति देने से पहले सतत खनन के लिए एक व्यापक योजना तैयार करने का निर्देश दिया था।
केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को बताया कि सतत खनन योजना पहले ही स्वीकार कर ली गई है। हालांकि, मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत ने कहा कि समिति की रिपोर्ट और अदालत की पिछली टिप्पणियों को गलत समझा जा रहा है। उन्होंने कहा, “कुछ स्पष्टीकरण आवश्यक हैं, और कार्यान्वयन से पहले, निष्पक्ष, तटस्थ और स्वतंत्र विशेषज्ञ की राय पर विचार किया जाना चाहिए।”


