सीएमओ ऑफिस के पास एम्बुलेंसों का कब्रिस्तान: दर्जनों जीवनरक्षक वाहन मरम्मत के अभाव में धूल फांकते, सिस्टम की शर्मनाक लापरवाही बरकरार

0
8

फर्रुखाबाद। स्वास्थ्य सेवाओं की वास्तविक तस्वीर देखने हो तो मुख्य चिकित्सा अधिकारी कार्यालय के निकट, जिला आयुर्वेदिक एवं यूनानी अधिकारी कार्यालय के ठीक सामने खड़ी दर्जनों एम्बुलेंसें व्यवस्था की जर्जर हालत बयां करने के लिए काफी हैं। ये वही एम्बुलेंस हैं जो ज़रूरतमंद मरीजों के लिए जीवन और मृत्यु के बीच का पुल साबित हो सकती थीं, लेकिन मरम्मत न होने के कारण आज खुले मैदान में कबाड़ की तरह सड़ती हुई, धूल और जंग की परतों में दबी हुई खड़ी हैं।
इन एम्बुलेंसों की हालत देख ऐसा लगता है कि मानो स्वास्थ्य विभाग ने इन्हें लंबे समय से अपने हाल पर छोड़ दिया हो। कहीं टायर पूरी तरह पंक्चर और जमीन में धंसे हुए हैं, तो कहीं इंजन ढक्कन खुला पड़ा है और तार सड़ चुके हैं। कुछ वाहनों के शीशे टूट चुके हैं और अंदरूनी सीटों पर धूल की मोटी परत जम चुकी है। कई एम्बुलेंसें तो ऐसी हालत में पहुंच चुकी हैं कि उनमें पौधे उग आए हैं, जिससे साफ पता चलता है कि महीनों नहीं बल्कि वर्षों से इन गाड़ियों पर किसी अधिकारी की नजर नहीं पड़ी।स्थानीय लोगों और अस्पताल के आसपास आने जाने वाले मरीजों का कहना है कि यह दृश्य बेहद शर्मनाक है। वहीं दूसरी तरफ, जिला अस्पताल व सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर एम्बुलेंस की कमी की शिकायतें आए दिन सुनने को मिलती हैं। गंभीर मरीजों व गर्भवती महिलाओं को घंटों तक एम्बुलेंस का इंतजार करना पड़ता है, कई बार हालत गंभीर होने पर परिजन निजी वाहनों का सहारा लेने को मजबूर हो जाते हैं। ऐसे में जीवनरक्षक वाहनों को इस तरह यूं ही खड़ा सड़ने के लिए छोड़ देना प्रशासनिक संवेदनहीनता का सबसे बड़ा उदाहरण है।ड्राइवरों और कर्मचारियों का आरोप है कि कई एम्बुलेंसें मामूली मरम्मत से दोबारा सड़क पर आ सकती हैं, लेकिन फंड जारी न होने और विभागीय अधिकारियों की अनदेखी के कारण इन्हें ठीक नहीं कराया जा रहा। वहीं कुछ गाड़ियां स्पेयर पार्ट्स के अभाव में महीनों से खड़ी हैं, लेकिन इनके रख-रखाव या मरम्मत के लिए कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई।जबकि सरकार बार बार एम्बुलेंस सेवाओं के सुदृढ़ीकरण के दावे करती है, ऐसे में जिलास्तर पर खड़ी इन जर्जर गाड़ियों की हालत उन दावों की पोल खोल देती है। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी इस पूरे प्रकरण पर चुप्पी साधे हुए हैं। न तो इन गाड़ियों की मरम्मत का कोई आदेश जारी हुआ है, न ही इनके निस्तारण या पुनः संचालन की कोई योजना को सार्वजनिक किया गया है।जिले में स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली का यह दृश्य न सिर्फ सरकारी लापरवाही की कलई खोलता है, बल्कि यह सवाल भी खड़ा करता है कि आखिर कब तक मरीजों की जान जोखिम में डालकर ऐसे बहुमूल्य वाहनों को बर्बाद होने दिया जाएगा? प्रशासन का मौन इस गंभीर मुद्दे को और संदिग्ध बनाता है।फर्रुखाबाद में एम्बुलेंसों का यह कब्रिस्तान जनता के धैर्य, व्यवस्था की संवेदनहीनता और तंत्र की विफलता का जीवंत प्रतीक बन गया है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here