33 C
Lucknow
Saturday, September 13, 2025

96 प्रकार के पिंडदान और अक्षय श्राद्ध का स्थान है नर्मदा का उद्गम स्थल अमरकंटक

Must read

(गरिमा विजयवर्गीय -विनायक फीचर्स)

पितरों के पिंडदान (Pinddaan) और तर्पण की जब बात आती है, तब बिहार के गया जी का उल्लेख प्रमुखता से आता है, लेकिन कम ही लोगों को इस बात की जानकारी होगी कि मध्यप्रदेश स्थित मां नर्मदा नदी का उद्गम स्थल अमरकंटक भी पितरों के पिंडदान के सर्वश्रेष्ठ स्थलों में से एक है। कहा जाता है कि सरस्वती नदी का जल तीन दिन में पवित्र बनाता है, यमुना जल सात दिन में पावन बनाता है, गंगा जल में स्नान तत्काल पवित्र बनाता है, किंतु नर्मदा नदी एकमात्र वह नदी है, जो दर्शन मात्र से मनुष्यों को पवित्र बनाती है।

अमरकंटक में पितरों के पिंडदान का सर्वप्रथम उल्लेख श्रीमद् वायुपुराण में मिलता है, इसके अनुसार कुछ विशिष्ट स्थान पितरों के पिंडदान के लिए अतिश्रेष्ठ माने गए हैं। इनमें अमरकंटक की भी गणना की जाती है।

वायु पुराण के अनुसार श्री बृहस्पति जी कहते हैं कि अमरकंटक में कुशाओं पर जो एक बार पिंडदान कर देता है, वह पितरों को संतुष्ट करने वाला अक्षय श्राद्ध होता है। अमरकंटक में एक बार भी पितरों की अर्चना करने पर स्वर्ग सुलभ है। देश भर में कुल 48 स्थान पिंडतीर्थ के तौर पर निर्धारित हैं, लेकिन अमरकंटक देश का एकमात्र स्थान है, जहां 96 प्रकार के पिंडदान की व्यवस्था है। शास्त्रों के अनुसार पिंडदान के लिए नदियों का संगम हाेना आवश्यक है, इस दृष्टि से देखें तो अमरकंटक पंचप्रयाग की संज्ञा पाए हुए हैं। यहां नर्मदा नदी के उद्गम स्थल के पहले दो नदियों गायत्री-सावित्री का संगम होता है।

इसके बाद ये दोनों नदियां नर्मदा, कपिला, वैतरणी और अंत में ऐरंड नदी में जाकर मिलती हैं। इस प्रकार अमरकंटक पंचप्रयाग है। ऐरंड नदी का वर्णन स्कंद पुराण में भी मिलता है। अमरकंटक में सभी पूर्ववर्ती नदियां जिस स्थान पर आकर ऐरंड में मिलती हैं, उस स्थान की महिमा सर्वाधिक मानी गई है। ऐरंड को माया से निवृत्ति दिलाने वाली नदियों के रूप में वर्णित किया गया है। ऐसे में इस संगम पर एक बार पिंडदान का वही फल प्राप्त होता है, जो 16 बार गया जी में पिंडदान के बाद प्राप्त होता है।

यहां आकर ये भ्रांति भी टूट जाती है कि केवल मृत व्यक्तियों के नाम पर ही पिंडदान किया जा सकता है। अमरकंटक के मुख्य मंदिर नर्मदा कुंड के पारंपरिक प्रधान पुजारी वंदे महाराज बताते हैं कि अमरकंटक मेंं मनोकामना प्राप्ति, सिद्धि प्राप्ति समेत अनेक कामनाओं की पूर्ति के लिए पिंडदान की व्यवस्था है। अधिकतर पिंडदान पितृ पक्ष के दौरान ब्रह्म मुहूर्त में किए जाते हैं। यहां पहले पिंडदान की व्यवस्था सिर्फ मंदिर में ही थी, लेकिन अब संपूर्ण अमरकंटक में पांच ऐसे स्थान हैं, जहां विभिन्न प्रकार के पिंडदान से मोक्ष प्राप्ति होती है। हालांकि नर्मदा कुंड के गर्भगृह स्थान में पिंड दान अब भी सीधे बैकुंठ प्राप्ति का मार्ग माना गया है।

स्कंद पुराण के रेवा खंड में मां नर्मदा के धरती पर अवतरित होने की कथा है। इसके अनुसार चंद्रवंश के चक्रवर्ती राजा पुरुरवा ने महादेव से विशेष आराधना कर मां नर्मदा को धरतीलोक पर उतारने का आग्रह किया। महादेव ने आठ पर्वतों को बुला कर पूछा कि कौन नर्मदा के वेग को वहन करने में सक्षम है, जिसके बाद मां नर्मदा विंध्यपर्वत पर उतरीं। मां नर्मदा ने विंध्यपर्वत के रास्ते धरती पर उतर कर राजा पुरुरवा से अपने जल को स्पर्श करने को कहा, उनकी आज्ञा पाकर पुरुरवा ने मां नर्मदा के पवित्र जल से अपने पितरों का तिल और नर्मदा जल से तर्पण किया।

रेवा खंड के अनुसार मां नर्मदा के जल से पितरों का तर्पण करने पर पुरुरवा के पूर्वज उस परम पद को प्राप्त हुए, जो देवताओं के लिए भी दुर्लभ है। रेवा खंड मे ऐसे और भी कई प्रसंग हैं, जो बता रहे हैं कि मां नर्मदा के उद्गम स्थल अमरकंटक में पितरों के तर्पण की महिमा अन्यत्र कहीं तर्पण से कहीं अधिक फलदायी है। एक प्रसंग चंद्रवंश के राजर्षि हिरण्यतेजा का भी है, जिन्होंने पितरों के कष्ट देखकर मां नर्मदा के जल से उनका तर्पण कर उनकी मुक्ति का मार्ग प्रशस्त किया। कहा गया है कि संसार में जब कोई नदी नहीं थीं, तब पूर्वजों का तर्पण पोखरों में होता था। उसी समय हिरण्यतेजा ने घोर तप कर नर्मदा को वरदान रूप में मांगा और नर्मदा जल से पितरों का तर्पण किया।

अमरकंटक, मध्यप्रदेश के अनूपपुर जिले का एक छोटा सा कस्बा है। मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ की सीमा पर बसा ये कस्बा नर्मदा के साथ ही सोन नदी का भी उद्गम है। ये क्षेत्र मैकल पर्वत श्रृंखला से भी आच्छादित है, इसी कारण ही नर्मदा का एक नाम मैकल सुता भी है। लगभग 12 फुट की गहराई के एक कुंड से निकलती हैं यहां नर्मदा, जिसे अब पूरी तरह कवर कर दिया गया है। कोटितीर्थ मंदिर समूह नाम के इस स्थान पर स्थित इस नर्मदा कुंड के चारों ओर असंख्य शिवलिंग हैं।

समूचा मंदिर परिसर अनेक सफेद मंदिरों से बना है। इसी मंदिर परिसर के पास ऐतिहासिक महत्व के कलचुरी वंश के 16वीं शताब्दी के पुरातत्व संरक्षित मंदिर समूह भी हैं। उद्गम के कुछ आगे चलकर नर्मदा नदी की धारा कपिलधारा के नाम से पहचानी जाती है, जो नर्मदा का पहाड़ों से मैदान तक के सफर का पहला जलप्रपात है। इसी क्रम में आगे दुग्ध धारा और इसी प्रकार के और कई जलप्रपात हैं, जिनके रास्ते नर्मदा डिंडोरी और फिर आगे के मैदानी इलाकों का सफर तय करती हैं।

किवदंतियां किस प्रकार दैवीय अस्तित्वों को जन-जन में स्वीकार्य बनाने में अहमियत रखती हैं, ये प्रत्यक्ष तौर पर दिखाई देता है ‘नर्मदा माई की बगिया’ में जाकर। किवदंती है कि इस स्थान पर नर्मदा अपने बचपन में खेला करतीं थीं। गगनचुंबी पेड़ों से घिरे इस स्थान पर उनकी सखी गुल बकावली औषधि की झाड़ियां थीं। यहां ये औषधि अब भी बड़ी मात्रा में है, इसके फूल का अर्क नेत्ररोग के लिए उपयोगी बताया जाता है। अमरकंटक का सोनमुड़ा वो स्थान है, जहां के एक कुंड से सोन नदी का उद्गम हुआ है। नर्मदा से अलग ये नदी दक्षिण-पूर्व की ओर बहती हुई गंगा नदी में मिल जाती है। (विनायक फीचर्स)

Must read

More articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Latest article