नई दिल्ली। लोकसभा में संविधान पर चल रही चर्चा के दौरान उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने प्रदेश में बढ़ती असामान्य घटनाओं और सरकार की नीतियों पर सवाल उठाए। उन्होंने विशेष रूप से पुलिस अभिरक्षा में होने वाली मौतों और फर्जी मुठभेड़ों पर चिंता जताई। अखिलेश ने कहा कि किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन और स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता, लेकिन उत्तर प्रदेश में यह मौलिक अधिकार लगातार छीने जा रहे हैं। उनका आरोप था कि प्रदेश में फर्जी मुठभेड़ों और हिरासत में मौतों के मामलों में तेजी से वृद्धि हो रही है, जिससे कानून व्यवस्था पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं।
अखिलेश यादव ने जाति जनगणना के मुद्दे को भी प्रमुखता से उठाया। उन्होंने कहा कि यदि सरकार जाति जनगणना कराना चाहती है, तो उसे इस प्रक्रिया को बिना किसी रुकावट के पूरा करने देना चाहिए। उनका मानना था कि जाति जनगणना से समाज में भेदभाव नहीं बढ़ेगा, बल्कि यह एक सशक्त और समान समाज की ओर बढ़ने की दिशा में एक कदम होगा। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि नौकरियों में आउटसोर्सिंग की प्रक्रिया के कारण आरक्षण की व्यवस्था कमजोर हो रही है, और केवल कुछ विशेष वर्ग को ही प्राथमिकता दी जा रही है।
अखिलेश ने देश में बढ़ती असमानता पर भी चिंता व्यक्त की। उनका कहना था कि 82 करोड़ लोग सरकारी राशन पर निर्भर हैं, जबकि देश की एक छोटी सी आबादी के पास अधिकांश दौलत केंद्रित है। उन्होंने सरकार से सवाल किया कि यदि अर्थव्यवस्था वास्तव में बढ़ रही है तो गरीबों की स्थिति क्यों सुधरी नहीं है। उनका यह भी कहना था कि असमानता के कारण सामाजिक न्याय की भावना कमजोर हो रही है, और यह संविधान द्वारा निर्धारित सिद्धांतों के खिलाफ है।
पूर्व मुख्यमंत्री ने मुस्लिम समुदाय के खिलाफ होने वाले उत्पीड़न पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि मुसलमानों के धर्मस्थलों पर कब्जा किया जा रहा है, और उनके वोट डालने के अधिकार को भी छीनने की कोशिश की जा रही है। उन्होंने उदाहरण दिया कि उत्तर प्रदेश में चुनाव के दौरान अल्पसंख्यक समुदाय को जानबूझकर वोट डालने से रोका गया, और यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए एक बड़ा खतरा है। उनके अनुसार, सरकार की नीतियों ने समाज में धार्मिक असहमति और भेदभाव को बढ़ावा दिया है।
अखिलेश यादव ने संविधान के प्रस्तावना में दिए गए सामाजिक और आर्थिक न्याय के सिद्धांत को याद करते हुए कहा कि वर्तमान सरकार इन मूल सिद्धांतों का पालन करने में नाकाम रही है। उन्होंने तानाशाही की ओर इशारा करते हुए कहा कि आज देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाने की कोशिश हो रही है और कानून का दोहरा मापदंड अपनाया जा रहा है। उनके अनुसार, सत्ता पक्ष के लोग किसी भी आलोचना से बचने के लिए दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं, जो लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है।