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Monday, October 27, 2025

चार महीने बाद हाईकोर्ट से मिली जमानत, जे.एस. यूनिवर्सिटी फर्जीवाड़ा केस में उमेश मिश्रा हुए रिहा, अधिवक्ता सुरेंद्र प्रसाद गुप्ता ने की बहस

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इलाहाबाद: आगरा मंडल के फिरोजाबाद के चर्चित निजी विश्वविद्यालय जे. एस. यूनिवर्सिटी से जुड़े फर्जीवाड़ा मामले में कृषि विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर उमेश मिश्रा को लगभग सवा चार महीने बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट (High Court) ने जमानत दे दी है। इस जमानत याचिका में उनके अधिवक्ता सुरेन्द्र प्रसाद गुप्ता ने उनके पक्ष में अदालत में बहस की।

हाईकोर्ट ने अपने आदेश में उल्लेख किया कि विश्वविद्यालय में छात्रों से वसूली गई फीस सीधे प्राइवेट बैंक खाते में जमा की जाती थी, और छात्रों को प्रदान की जाने वाली मार्कशीट और डिग्री पर वाइस चांसलर और रजिस्ट्रार के हस्ताक्षर होते हैं। ऐसे में कोर्ट ने माना कि असिस्टेंट प्रोफेसर उमेश मिश्रा का जेल में होना न्यायसंगत नहीं है और उन्हें जमानत मिलनी चाहिए।

इस मामले का प्रारंभ तब हुआ था जब जे. एस. यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर सुकेश यादव और रजिस्ट्रार नंदन मिश्रा पर फर्जीवाड़े का आरोप लगा और दोनों को जयपुर जेल में बंद किया गया। इसके बाद विश्वविद्यालय में पढ़ रहे छात्रों ने चिंता जताई कि शायद उनकी मार्कशीट और डिग्रियां भी फर्जी हो सकती हैं। इसी आशंका के चलते छात्रों ने स्थानीय थाना शिकोहाबाद में शिकायत दर्ज कराई, जिसके आधार पर असिस्टेंट प्रोफेसर उमेश मिश्रा को जेल भेजा गया।

उल्लेखनीय है कि इस मामले में विश्वविद्यालय के अन्य वरिष्ठ अधिकारी डायरेक्टर गौरव यादव और प्रो वाइस चांसलर पी.एस. यादव समेत अन्य आरोपी शामिल हैं। आरोप है कि सभी आरोपी संगठित रूप से विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) द्वारा निर्धारित सीटों से अधिक छात्रों को एडमिशन देते थे और अवैध रूप से फीस वसूलते थे। इसके अलावा, उन्हें फर्जी मार्कशीट और डिग्री प्रदान करने के लिए भी दोषी ठहराया गया।

स्थानीय पुलिस ने इस मामले में थाना शिकोहाबाद में बी.एन.एस. की धारा 318(4), 338, 336(3), 340(2), 111(2)(B) के तहत एफआईआर दर्ज की थी। ये धाराएं आई.पी.सी. की धारा 420, 467, 468 और 471 के समतुल्य हैं, जिसमें उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान है। अधिवक्ता सुरेन्द्र प्रसाद गुप्ता ने कोर्ट में प्रस्तुत किया कि उमेश मिश्रा की भूमिका सीमित थी और वित्तीय लेन-देन विश्वविद्यालय के अधिकारियों द्वारा नियंत्रित था। अदालत ने उनकी दलीलों को स्वीकार करते हुए जमानत मंजूर कर दी।

इस घटना ने एक बार फिर निजी विश्वविद्यालयों में शैक्षणिक और वित्तीय पारदर्शिता को लेकर सवाल उठाए हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने वाले ऐसे मामलों में सख्त कानूनी कार्रवाई और निगरानी आवश्यक है।

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