मौत के बाद भी बिल का बोझ क्यों: अब संवेदना से जुड़ा नियम जरूरी

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प्रशांत कटियार

देश में स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर अक्सर चर्चा होती है कभी इलाज के महंगे खर्च पर, तो कभी निजी अस्पतालों की मनमानी पर। लेकिन एक सवाल जो आज भी समाज की आत्मा को झकझोर देता है, वह यह है कि किसी मरीज की मृत्यु के बाद भी उसके परिजनों को अस्पताल के बिल चुकाने के लिए संघर्ष क्यों करना पड़ता है।हर दिन देश के सैकड़ों अस्पतालों में ऐसी तस्वीरें सामने आती हैं, जब मरीज के निधन के बाद भी अस्पताल प्रबंधन का रवैया मानवीय नहीं, बल्कि व्यावसायिक नजर आता है। मृतक परिवार के सदस्य, जिनके घर का चिराग बुझ चुका होता है, वे रोते-बिलखते अस्पताल के काउंटर पर खड़े होकर बिल का हिसाब करते हैं पहले पेमेंट करो, फिर शव मिलेगा। यह दृश्य किसी भी संवेदनशील समाज के लिए शर्मनाक है।सरकार को अब समय रहते स्वास्थ्य विभाग में एक नया नियम लागू करना चाहिए चाहे निजी अस्पताल हो या सरकारी, यदि किसी मरीज की इलाज के दौरान मृत्यु हो जाती है, तो उस अवधि के सभी अस्पताल चार्ज जैसे बेड चार्ज, नर्सिंग चार्ज, डॉक्टर विजिट चार्ज को पूरी तरह माफ किया जाए। केवल दवाओं और वास्तविक चिकित्सा सामग्री के खर्च का ही भुगतान लिया जाए।यह कदम न केवल शोकग्रस्त परिवार के आर्थिक बोझ को कम करेगा, बल्कि अस्पताल प्रबंधन को भी ईमानदारी और मानवता से उपचार करने के लिए प्रेरित करेगा। क्योंकि जब डॉक्टर और प्रशासन जानेंगे कि इलाज के नतीजे में लापरवाही या असंवेदनशीलता उन्हें आर्थिक रूप से प्रभावित कर सकती है, तो वे मरीज की जान बचाने के लिए पूरी निष्ठा से काम करेंगे।वर्तमान व्यवस्था में अधिकांश निजी अस्पताल व्यापार का अड्डा बन चुके हैं। मरीज को ग्राहक और इलाज को सर्विस समझा जाता है। यही कारण है कि जब मरीज की जान चली जाती है, तब भी अस्पताल अपनी फीस, वार्ड चार्ज, ऑक्सीजन रेंट और यहां तक कि मॉनिटरिंग चार्ज तक वसूलते हैं।यह व्यवहार केवल अमानवीय ही नहीं, बल्कि असंवेदनशीलता की पराकाष्ठा है। एक परिवार जिसने अपनों को खो दिया है, वह उस पल में अस्पताल का बिल नहीं, बल्कि अपने प्रियजन के आखिरी दर्शन चाहता है।
इसलिए सरकार को चाहिए कि इस दिशा में ठोस नीति बनाकर अस्पतालों को बाध्य किया जाए कि मृत्यु की स्थिति में सभी गैर जरूरी चार्ज स्वतः माफ हों। इससे समाज में संवेदना, मानवता और स्वास्थ्य सेवाओं पर भरोसा तीनों की बहाली संभव होगी।
क्योंकि सवाल सिर्फ इतना है क्या मौत के बाद भी इंसान को बिल चुकाना जरूरी है,अगर नहीं, तो अब वक्त है कि इस अमानवीय प्रथा पर हमेशा के लिए पूर्णविराम लगाया जाए।

लेखक दैनिक यूथ इंडिया के स्टेट हेड हैं।

 

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