लखनऊ: राजधानी के स्वास्थ्य भवन चौराहे पर शुक्रवार को आम आदमी पार्टी (AAP) के कार्यकर्ताओं ने जोरदार प्रदर्शन किया। यह प्रदर्शन देश के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डी. वाई. चंद्रचूड़ की पीठ में शामिल न्यायमूर्ति गवई पर जूता फेंकने की हालिया घटना के विरोध में किया गया। पार्टी कार्यकर्ताओं ने इसे लोकतंत्र और न्यायपालिका पर हमला करार देते हुए आरोपी की जल्द से जल्द गिरफ्तारी की मांग की।
सुबह से ही बड़ी संख्या में कार्यकर्ता पार्टी के झंडे और बैनर लेकर चौराहे पर जुटने लगे। कुछ ही देर में नारेबाजी शुरू हो गई और माहौल गरमाने लगा। “न्यायपालिका का अपमान नहीं सहेंगे”, “लोकतंत्र पर हमला बंद करो”, “दोषी की गिरफ्तारी करो” जैसे नारों से पूरा इलाका गूंज उठा। प्रदर्शन की सूचना मिलते ही पुलिस बल मौके पर पहुंच गया और हालात पर नियंत्रण की कोशिशें शुरू हुईं।
पार्टी नेताओं ने कहा कि यह घटना न केवल एक न्यायाधीश पर हमला है बल्कि यह देश के लोकतांत्रिक और न्यायिक ढांचे पर भी चोट है। उन्होंने कहा कि न्यायपालिका देश की सबसे ऊंची संस्था है और उस पर इस तरह की हिंसक हरकत को किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। आम आदमी पार्टी के प्रवक्ताओं ने कहा कि यदि आरोपी की जल्द गिरफ्तारी नहीं की गई तो पार्टी पूरे प्रदेश में इस मुद्दे को लेकर व्यापक आंदोलन छेड़ेगी।
पुलिस ने सुरक्षा व्यवस्था को देखते हुए प्रदर्शन कर रहे कार्यकर्ताओं को रोकने की कोशिश की, लेकिन प्रदर्शनकारी अपनी मांगों पर अड़े रहे। धीरे-धीरे प्रदर्शन उग्र रूप लेता गया, जिसके बाद पुलिस ने कई कार्यकर्ताओं को हिरासत में ले लिया। हिरासत में लिए गए कार्यकर्ताओं को ईको गार्डन स्थित अस्थायी निरोध स्थल भेजा गया, जहां उनसे पूछताछ की जा रही है।
घटना के बाद लखनऊ ट्रैफिक भी कुछ समय के लिए प्रभावित रहा, स्वास्थ्य भवन चौराहे से लेकर हजरतगंज तक वाहनों की लंबी कतारें लग गईं। पुलिस को स्थिति सामान्य करने में करीब एक घंटे का समय लगा। मौके पर मौजूद वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने बताया कि स्थिति अब नियंत्रण में है और कानून व्यवस्था को किसी भी कीमत पर बिगड़ने नहीं दिया जाएगा।
आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि जब तक आरोपी को गिरफ्तार नहीं किया जाता और न्यायपालिका पर इस तरह के हमलों को रोकने के लिए ठोस कदम नहीं उठाए जाते, तब तक वे शांत नहीं बैठेंगे। पार्टी नेताओं ने कहा कि यह मामला किसी दल या व्यक्ति का नहीं, बल्कि देश की न्याय व्यवस्था की गरिमा से जुड़ा है।
लखनऊ में यह प्रदर्शन राजधानी की सड़कों पर लोकतांत्रिक असंतोष की एक स्पष्ट झलक थी, जिसने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और न्यायिक गरिमा के बीच संतुलन कैसे कायम रखा जाए। पुलिस प्रशासन ने फिलहाल स्थिति पर नियंत्रण का दावा किया है, लेकिन इस विरोध ने राजधानी की सियासी फिज़ा में हलचल जरूर पैदा कर दी है।