वॉशिंगटन/नई दिल्ली। अमेरिका में आज से एच-1बी वीजा के लिए नया नियम लागू हो गया है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने शनिवार को व्हाइट हाउस में कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किए थे और उसके बाद से यह नियम प्रभावी हो गया है। अब नए आवेदकों को एच-1बी वीजा के लिए एकमुश्त 1 लाख डॉलर यानी लगभग 88 लाख रुपये शुल्क चुकाना होगा। ट्रंप प्रशासन के इस कदम से भारतीय आईटी कंपनियों और वहां काम करने वाले पेशेवरों में हड़कंप मच गया है। व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव कैरोलाइन लेविट ने स्पष्ट किया है कि यह कोई वार्षिक शुल्क नहीं है बल्कि एकमुश्त शुल्क है, जो केवल नए वीजा आवेदनों पर लागू होगा। पहले से एच-1बी वीजा धारकों, नवीनीकरण कराने वालों या विदेश यात्रा से लौटने वालों पर इसका कोई असर नहीं पड़ेगा। अमेरिकी नागरिकता और आव्रजन सेवा (यूएससीआईएस) ने भी पुष्टि की है कि 21 सितंबर 2025 से पहले जमा किए गए आवेदन प्रभावित नहीं होंगे।
अचानक लागू हुए इस नियम से भारतीयों में असमंजस और दहशत का माहौल है। अमेरिका में बसे कई भारतीयों ने दिवाली और शादियों के लिए बनाई गई अपनी भारत यात्रा योजनाएं रद्द कर दी हैं, वहीं जो लोग पहले से भारत में हैं वे वापसी की अनिश्चितता से जूझ रहे हैं। स्थिति को देखते हुए अमेरिका स्थित भारतीय दूतावास ने आपातकालीन सहायता के लिए मोबाइल नंबर +1-202-550-9931 (व्हाट्सएप सहित) जारी किया है और कहा है कि इस नंबर का इस्तेमाल केवल आपात स्थिति में किया जाए।भारतीय आईटी कंपनियों पर इस नियम का सीधा असर पड़ने की संभावना है। नैस्कॉम के उपाध्यक्ष शिवेंद्र सिंह ने सदस्य कंपनियों से अपील की है कि वे अमेरिका से बाहर मौजूद अपने कर्मचारियों को तत्काल वापस बुलाएं ताकि वे नए नियम की जद में न आएं। आंकड़ों के अनुसार अमेजन, टीसीएस, माइक्रोसॉफ्ट, मेटा, एपल और गूगल जैसी दिग्गज कंपनियों के हजारों कर्मचारी एच-1बी वीजा पर अमेरिका में काम कर रहे हैं। इनके अलावा इंफोसिस, विप्रो, टेक महिंद्रा और एचसीएल जैसी भारतीय कंपनियां भी इस सूची में शामिल हैं। भारतीय आईटी क्षेत्र पहले से ही वैश्विक मंदी और आउटसोर्सिंग बाजार की चुनौतियों का सामना कर रहा है और अब इस भारी-भरकम शुल्क के कारण उस पर अतिरिक्त दबाव पड़ना तय है। विशेषज्ञों का कहना है कि ट्रंप सरकार का यह कदम भारत-अमेरिका कारोबारी रिश्तों और तकनीकी पेशेवरों की आवाजाही को गंभीर रूप से प्रभावित करेगा।