नई दिल्ली: आजादी का अमृत महोत्सव समिति (Azadi Ka Amrit Mahotsav Samiti) की ओर से ‘स्वदेशी सुरक्षा एवं स्वावलंबन’ (Indigenous Security and Self-Reliance) विषय पर कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. राज कुमार मित्तल ने की। मुख्य अतिथि एवं वक्ता के तौर पर प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता सतीश कुमार उपस्थित रहे।
विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. राज कुमार मित्तल ने अपने विचार रखते हुए कहा कि आज के समय में देश को स्वावलंबी होना अत्यंत आवश्यक है। इसीलिए हमें अपनी शक्ति को पहचानकर उसके अनुरूप कार्य करने की आवश्यकता है। स्वरोजगार भारत की एक विशेषता है, और आज के समय में भारत को विश्वगुरु बनाने के लिए आर्थिक विषयों पर व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाना होगा।
प्रो. मित्तल ने बताया कि वर्तमान में हम विदेशी मानसिकता से जकड़े हुए हैं, इसीलिए केवल स्वदेशी के माध्यम से ही हम अपने आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय दृष्टिकोण को सुरक्षित रख सकते हैं। उन्होंने कहा कि पश्चिमी विचारधारा प्रौद्योगिकी का दुरुपयोग कर संसाधनों का अनुचित दोहन करती है क्योंकि उनका मुख्य सिद्धांत ‘उपयोग’ नहीं बल्कि ‘उपभोग’ है, जबकि भारतीय विकास मॉडल की मूल भावना स्वदेशी है। भारत की पारिवारिक व्यवस्था हमारी समृद्धि और संस्कृति का आधार है, और स्वदेशी को अपनाकर हम ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना को बढ़ावा देते हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि स्वदेशी के साथ-साथ स्वभाषा का सम्मान करना भी आवश्यक है। वर्तमान में युवाओं में नौकरी पाने की प्रवृत्ति है, जबकि उन्हें नौकरी देने वाला बनने का प्रयास करना चाहिए। इसीलिए स्थानीय संसाधनों का प्रयोग कर ‘लोकल फॉर वोकल’ को प्रोत्साहित करना, उद्यमिता को बढ़ावा देना और युवाओं को इससे जोड़ना ही भारत को आत्मनिर्भर बनाने का मार्ग है। इसके लिए मानसिकता में बदलाव जरूरी है, क्योंकि छोटे-छोटे परिवर्तनों से ही बड़े बदलाव संभव होते हैं।
मुख्य अतिथि एवं प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता श्री सतीश कुमार ने विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि जिस प्रकार शेर शिकार करने से पूर्व पीछे मुड़कर अवलोकन करता है, उसी प्रकार हमें भी स्वतंत्रता के पथ पर आगे बढ़ने से पहले यह ‘सिंहावलोकन’ करना चाहिए कि कितनी पीढ़ियों के अथक संघर्ष और बलिदान के बाद हमें यह आज़ादी प्राप्त हुई है। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े अनेक प्रेरक प्रसंगों और कहानियों का उल्लेख किया तथा बताया कि ‘वंदे मातरम्’ गीत को वर्तमान स्वतंत्रता का बीजारोपण कहा गया है। इसके साथ ही उन्होंने स्वदेशी आंदोलन, बंग-भंग आंदोलन, नमक सत्याग्रह जैसे जन-आंदोलनों के महत्व पर विस्तार से प्रकाश डाला।
कुमार ने बताया कि 15वीं शताब्दी में भारत का इतिहास इतना स्वर्णिम था कि विश्व के कोने-कोने से लोग यहाँ शिक्षा, दर्शन, नवाचार और व्यापार के लिए आते थे। उन्होंने युवाओं से आह्वान किया कि भारत को पुनः ‘सोने की चिड़िया’ और ‘विश्वगुरु’ बनाने के लिए आगे आना होगा। जब हम अपने देश के प्रति निष्ठावान होंगे और देश से जुड़े उत्पादों एवं संसाधनों के प्रति समर्पित रहेंगे, तभी हम भारत को पूर्ण रोजगारयुक्त, गरीबी-मुक्त और समृद्ध राष्ट्र बना पाएंगे। उन्होंने कहा कि स्वदेशी को अपनाना, स्थानीय संसाधनों का सम्मान करना, और आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ना ही वह मार्ग है जो न केवल आर्थिक प्रगति देगा, बल्कि हमारी संस्कृति, भाषा और पहचान को भी संरक्षित रखेगा। इसीलिए जब छोटे छोटे प्रयास सामूहिक रूप से किए जायेंगे, तो वह आवश्यक रूप से बड़े और ऐतिहासिक परिवर्तन का कारण बन सकते हैं।
कार्यक्रम के दौरान कुलपति एवं मुख्य अतिथि द्वारा विद्यार्थियों की ओर से पूछे गये प्रश्नों का उत्तर दिया गया। साथ ही कार्यक्रम में उपस्थित सभी शिक्षकों, गैर शिक्षण कर्मचारियों एवं विद्यार्थियों को ‘हर घर तिरंगा’ अभियान के तहत तिरंगा झंडा वितरित किया गया। इसके अतिरिक्त सभी को ‘नशा मुक्ति’ एवं ‘स्वदेशी अपनाओ’ की शपथ दिलाई गई। कार्यक्रम के अंत में आयोजन समिति की ओर से स्मृति चिन्ह एवं शॉल भेंट करके सम्मानित किया गया।