कमालगंज। केंद्र सरकार की बहुप्रचारित अमृत सरोवर योजना जिसका उद्देश्य जल संरक्षण, रोजगार सृजन और ग्रामीण सौंदर्यीकरण था, वह भी अब भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ती नजर आ रही है। कमालगंज ब्लॉक के ग्राम पंचायत उस्मानगंज में लगभग 68 लाख रुपये की लागत से बना अमृत सरोवर भ्रष्टाचार, लापरवाही और प्रशासनिक मिलीभगत का जीता-जागता उदाहरण बन गया है।जहां एक ओर सरकारें ग्रामीण विकास और पारदर्शिता के बड़े-बड़े दावे करती हैं, वहीं जमीन पर इस योजना की हकीकत बेहद चौंकाने वाली है। इस योजना के तहत जो तालाब बनना था, वह आज जर्जर स्थिति में है, उसके चारों तरफ घनी झाड़ियां, टूटी-फूटी इंटरलॉकिंग, बिना प्लास्टर का मुख्य द्वार, टूटे इनलेट आउटलेट और तालाब तक पहुंचने के लिए कोई पक्की या साफ सुथरी राह तक नहीं है।गांव के प्रधान पति आकाश बाबू कश्यप ने बारबार प्रशासन को काम की गुणवत्ता और पारदर्शिता को लेकर अवगत कराया, लेकिन उनकी एक न सुनी गई। कारण साफ है – जिन लोगों ने काम करवाया, उनकी सत्ता पक्ष में गहरी पकड़ है। आकाश बाबू कहते हैं मैंने हर स्तर पर गुहार लगाई कि सरोवर को योजना के मुताबिक बनवाया जाए, लेकिन कोई सुनने को तैयार नहीं था। अधिकारी आंख मूंदे बैठे रहे।
ग्रामीणों ने खोली पोल
गांव के जागरूक नागरिक धर्मेंद्र यादव, ताहिर खान और पवन कटियार ने बताया कितालाब के नाम पर केवल कागजों में काम हुआ है। हकीकत में निर्माण अधूरा है और जहां थोड़ा बहुत हुआ भी है, उसकी गुणवत्ता बेहद खराब है। घासफूस ने सरोवर को ढक दिया है और चारों तरफ गंदगी का आलम है।उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि निर्माण कार्य शुरू होते ही अधिकारियों और ठेकेदारों की सांठगांठ से पैसे निकाल लिए गए और फिर उसका बंदरबांट कर लिया गया। सरोवर के लिए तय मानकों को न तो अपनाया गया और न ही निर्माण पूरा कराया गया।
सीडीओ ने दिए जांच के आदेश
जब इस गंभीर मुद्दे पर मुख्य विकास अधिकारी अरविंद कुमार मिश्रा से बात की गई तो उन्होंने कहा,मामले को गंभीरता से लिया जाएगा। मौके पर जाकर जांच कराई जाएगी। यदि कार्य मानक के अनुसार नहीं पाया गया तो जिम्मेदार अधिकारियों और ठेकेदारों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी
प्रशासनिक चुप्पी क्यों?
सबसे बड़ा सवाल यही है कि जब शिकायतें लगातार की गईं, तो अब तक कोई कार्रवाई क्यों नहीं हुई? क्या सत्ता पक्ष से जुड़ा होना भ्रष्टाचार के लिए छूट का लाइसेंस बन चुका है?
जनता की मांग
गांव के लोगों ने प्रशासन और शासन से मांग की है कि इस योजना में हुए भ्रष्टाचार की स्वतंत्र जांच करवाई जाए और ठेकेदार, संबंधित अधिकारी, पर्यवेक्षक व तकनीकी कर्मियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए। साथ ही, तालाब का पुनः निर्माण करवाकर इसे उपयोगी बनाया जाए, ताकि जनता को इसका वास्तविक लाभ मिल सके।यह मामला सिर्फ एक तालाब या एक योजना का नहीं है, यह ग्रामीण विकास की उस व्यवस्था का पर्दाफाश है, जहां कागजों पर काम और जमीन पर घोटाले होते हैं। अगर अब भी आंखें बंद रहीं, तो अमृत जैसे नाम वाली योजनाएं भी जनता के लिए जहर बनती रहेंगी।