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Wednesday, July 16, 2025

सावन के पहले सोमवार पर रामेश्वर नाथ मंदिर में उमड़ा आस्था का सैलाब

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कम्पिल धाम में त्रेतायुगीन शिवलिंग के दर्शन को उमड़े हजारों श्रद्धालु

कम्पिल: सावन माह के पहले सोमवार को प्राचीन रामेश्वर नाथ मंदिर में आस्था, श्रद्धा और भक्ति का अप्रतिम संगम देखने को मिला। तड़के भोर से ही श्रद्धालु भगवान शिव के जलाभिषेक और रुद्राभिषेक के लिए मंदिर परिसर में उमड़ पड़े। “बोल बम” और “हर हर महादेव” के गगनभेदी जयघोष से वातावरण पूरी तरह शिवमय हो उठा।फर्रुखाबाद के अलावा एटा, कासगंज, बदायूं समेत आसपास के जिलों से हजारों शिवभक्तों ने पहुंचकर शिवलिंग का पूजन-अर्चन किया। कई कांवड़िए गंगा से पवित्र जल लेकर पैदल यात्रा करते हुए बाबा के दरबार पहुंचे और जल अर्पित किया।

रामेश्वर नाथ मंदिर की विशेष महिमा इसके पौराणिक इतिहास से जुड़ी है। मान्यता के अनुसार त्रेतायुग में भगवान श्रीराम के अनुज शत्रुघ्न ने लवणासुर वध से पहले इस स्थान पर शिवलिंग की स्थापना की थी। यह वही शिवलिंग है जिसकी पूजा सीता जी ने अशोक वाटिका में की थी। इसी कारण इस मंदिर को दक्षिण भारत के रामेश्वरम के समान पवित्र और फलदायक माना जाता है।

मंदिर परिसर में स्थापित नादिया, हनुमान, गणेश और गंगा माता की प्रतिमाएं भी विशेष आस्था का केंद्र हैं। साथ ही परिसर में अनेक संतों की समाधियाँ स्थित हैं। लंबे समय तक कारब वाले स्वामी त्यागी महाराज ने मंदिर की देखरेख की, उनके ब्रह्मलीन होने के बाद अब उनके शिष्य आनंद गिरि महाराज सेवा कार्यों का संचालन कर रहे है।

इस विशेष दिन के अवसर पर पुजारियों द्वारा रुद्राभिषेक, भस्म आरती और विशेष पूजन संपन्न कराया गया, जिसमें हजारों श्रद्धालुओं ने भाग लिया। मंदिर प्रांगण में हर ओर भक्ति और शिव प्रेम की दिव्य अनुभूति देखी गई।श्रद्धालुओं की भारी भीड़ को देखते हुए प्रशासन ने सुरक्षा के चाकचौबंद इंतजाम किए थे। महिला पुलिसकर्मियों की तैनाती, पेयजल, छाया, और भंडारे की उचित व्यवस्था की गई थी, जिससे श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की असुविधा न हो।

हर साल सावन माह के प्रत्येक सोमवार को यह मंदिर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ को आकर्षित करता है, लेकिन प्रथम सोमवार का विशेष महत्व होता है। मान्यता है कि इस दिन यहां दर्शन-पूजन करने से शिव कृपा शीघ्र प्राप्त होती है और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।

कम्पिल का रामेश्वर नाथ मंदिर न केवल शिवभक्तों की आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह स्थान हमें हमारे पौराणिक इतिहास से भी जीवंत रूप से जोड़ता है। सावन की यह भक्ति पूर्ण शुरुआत श्रद्धा, विश्वास और अध्यात्म की गहराईयों में डूबने का साक्षात अनुभव कराती है।

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