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Friday, March 14, 2025

सपा की बदली विचारधारा से मुस्लिम वोट बैंक में असमंजस, कांग्रेस को संजीवनी की उम्मीद

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लखनऊ। लोकसभा चुनाव बीत चुके हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश की राजनीति में अब भी सपा की बदली विचारधारा चर्चा में बनी हुई है। समाजवादी पार्टी (सपा) प्रमुख अखिलेश यादव के हालिया बयानों और सनातन धर्म के प्रति बढ़ते झुकाव ने पार्टी के पारंपरिक मुस्लिम (Muslim) वोट बैंक में असमंजस पैदा कर दिया है। दूसरी ओर, कांग्रेस को उम्मीद है कि मुस्लिम और दलित वोट बैंक वापस उसकी ओर लौट सकता है।

बड़े सनातन प्रेम के चलते मुस्लिम समाज से दूरी

अखिलेश यादव का हाल के महीनों में सनातन धर्म के प्रति झुकाव साफ दिखा है। उन्होंने सार्वजनिक मंचों पर राम, कृष्ण और परशुराम का उल्लेख किया और प्रयागराज के कुंभ में जाने की इच्छा जताई और जाने के दौरान स्नान ध्यान सहित शंकराचार्य और बाबाओं के पंडालों में भी वो खूब गए।जबकि अपने मुख्यमंत्रित्व काल में हुए कुंभ में उनकी व्यवस्था थी,लेकिन इस बार की तरह उन्होंने 2012 में कुंभ नहीं नहाया था।यही नहीं, उन्होंने सैफई महोत्सव जैसे आयोजनों में हिंदू धार्मिक प्रतीकों को प्रमुखता दी, जो पहले समाजवादी पार्टी की छवि का हिस्सा नहीं था।

इस बदलाव से सपा के मुस्लिम समर्थकों के बीच चिंता बढ़ी है। पार्टी के मुस्लिम नेताओं को भी अब उतनी प्राथमिकता नहीं मिल रही है जितनी पहले मिला करती थी। चुनाव के दौरान भी सपा ने किसी बड़े मुस्लिम चेहरे को प्रमुखता नहीं दी, जिससे मुस्लिम मतदाता खुद को असहज महसूस कर रहे हैं।

पीडीए की परिभाषा बदली,अब अल्पसंख्यक की जगह अगड़े

सपा की राजनीति अब पारंपरिक ‘पीडीए’ (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) से हटकर नए समीकरण पर केंद्रित होती दिख रही है। जिसमें अखिलेश की ही जुबानी पीडीए को परिभाषित किया गया की पिछड़े,दलित और अल्पसंख्यक की जगत कमजोर अगड़े शामिल हैं।वही अखिलेश यादव ने अब खुद को हर वर्ग का प्रतिनिधि बताने की रणनीति भी अपनाई है, जो मायावती की बसपा की रणनीति से मेल खाती है।उन्होंने सपा में किसी भी अन्य जाति के नेता को बढ़ावा न देकर खुद को या फिर पत्नी डिम्पल और बेटी अदिति को आगे किया है,बेटा अभी छोटा है,जो आने वाले समय में पार्टी के शीर्ष नेताओं में शुमार होगा,सपा की बदली राजनीति से प्रमुख वोटर अपने परिवार को आगे बढ़ता देश रोमांचित है,वर्ग विशेष सोशल मीडिया के जरिए अपने नेता अखिलेश को खूब बढ़ावा भी दे आने वाले दौर में उन्हें सूबे का मुख्यमंत्री मान रहा है।

इस बदलाव से कांग्रेस उत्साहित है। यूपी में अपना आधार खो चुकी कांग्रेस को लगता है कि मुस्लिम और दलित मतदाता, जो कभी उसका मजबूत वोट बैंक था, अब उसकी ओर लौट सकता है। कांग्रेस ने हाल के महीनों में मुस्लिम समुदाय से संपर्क बढ़ाया है और कई मुस्लिम नेताओं को संगठन में अहम जिम्मेदारी दी है।

क्या बदलेगा यूपी का सियासी गणित?

उत्तर प्रदेश में मुस्लिम मतदाता लगभग 19% हैं और चुनावी नतीजों पर सीधा असर डालते हैं। हाल ही में खत्म हुए लोकसभा चुनावों में सपा को मुस्लिम वोटों का समर्थन मिला, लेकिन यह 2019 और 2014 की तुलना में कम रहा।वही एक फर्क आजम खान की अनदेखी और पार्टी में अन्य मुस्लिम चेहरे को बढ़ावा न देना भी रहा।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर सपा अपनी रणनीति में बदलाव करती रही और मुस्लिम मतदाताओं की अनदेखी जारी रखी, तो कांग्रेस और अन्य दलों को इसका फायदा मिल सकता है। वहीं, बसपा के कमजोर पड़ने से दलित वोट बैंक के भी नए समीकरण बनने की संभावना है।
आने वाले विधानसभा चुनावों में यह देखना दिलचस्प होगा कि सपा की यह नई नीति उसे मजबूत बनाएगी या कमजोर। क्या मुस्लिम मतदाता सपा से दूर होंगे, या फिर यह सिर्फ एक अस्थायी असमंजस है? यह आने वाले महीनों में साफ हो जाएगा।

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