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Monday, September 15, 2025

संगठन निर्माण की नई राह पर कांग्रेस – जिलाध्यक्ष चयन में पारदर्शिता की पहल

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उत्तर प्रदेश की राजनीति में कांग्रेस (Congress) का पुनरुत्थान एक लंबे समय से चुनौती बना हुआ है। लेकिन हाल ही में, पार्टी ने 2027 के विधानसभा चुनावों की तैयारी के तहत संगठन निर्माण में एक नई प्रक्रिया अपनाने की घोषणा की है। इस नई प्रक्रिया में पार्टी जिलाध्यक्ष और महानगर अध्यक्ष जैसे महत्वपूर्ण पदों पर इंटरव्यू आधारित चयन का प्रावधान लेकर आई है। यह पहल न केवल पार्टी संगठन को मजबूत करने की दिशा में एक सकारात्मक कदम है, बल्कि यह पार्टी की आंतरिक लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को भी नया आयाम देती है।

उत्तर प्रदेश, जिसे कभी कांग्रेस का गढ़ माना जाता था, पिछले कुछ दशकों से पार्टी के लिए संघर्ष का मैदान बना हुआ है। क्षेत्रीय दलों के प्रभुत्व और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की बढ़ती लोकप्रियता ने कांग्रेस को प्रदेश की मुख्यधारा की राजनीति से लगभग बाहर कर दिया है। 2024 के लोकसभा चुनावों के परिणामों ने पार्टी को नए आत्मविश्वास से भर दिया है, और इसी के मद्देनजर यह नई रणनीति अपनाई गई है।

पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय और प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडे ने संगठनात्मक ढांचे को पारदर्शी और प्रभावी बनाने के उद्देश्य से इस प्रक्रिया को लागू करने का फैसला किया है। यह कदम न केवल पार्टी के कार्यकर्ताओं को प्रेरित करेगा, बल्कि संगठन में उस भरोसे को भी बहाल करेगा, जो पिछले वर्षों में कमजोर पड़ा है।
प्रियंका गांधी वाड्रा के समय से उत्तर प्रदेश को छह जोनों में विभाजित किया गया था। इस जोनल सिस्टम को जारी रखते हुए अब प्रत्येक जोन में 10 से 13 जिलों को शामिल किया गया है। यह संरचना संगठन को क्षेत्रीय स्तर पर अधिक प्रभावी बनाने का प्रयास है। पार्टी ने हर जिले में एक जिलाध्यक्ष और एक महानगर अध्यक्ष की नियुक्ति के लिए नए मानक तय किए हैं।

अजय राय का यह कहना कि “इस बार सिफारिश के बजाय जमीन से जुड़े लोगों को प्राथमिकता दी जाएगी,” पार्टी के संगठनात्मक ढांचे में पारदर्शिता और जमीनी हकीकत को प्रतिबिंबित करता है। यह पहल उन कार्यकर्ताओं को पहचान देने का वादा करती है, जिन्होंने पार्टी के लिए निष्ठा और मेहनत से काम किया है।

जिलाध्यक्ष और महानगर अध्यक्ष के चयन के लिए इंटरव्यू आधारित प्रक्रिया अपनाई गई है। इसमें उम्मीदवारों से पार्टी के 10 तय सवाल पूछे जाएंगे। सवाल मुख्य रूप से इन बिंदुओं पर आधारित होंगे: जैसे पार्टी की विचारधारा और नीतियों की समझ।पार्टी के कार्यक्रमों और आंदोलनों में भागीदारी के प्रमाण। संगठन को मजबूत करने के लिए उनकी योजनाएं और रणनीतियां।स्थानीय समस्याओं को समझने और समाधान देने की उनकी क्षमता।इंटरव्यू प्रक्रिया के तहत यह सुनिश्चित किया जाएगा कि उम्मीदवार न केवल पार्टी के प्रति वफादार हों, बल्कि संगठन को आगे ले जाने के लिए दृष्टिकोण और कार्यक्षमता भी रखते हों।

पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने इस प्रक्रिया के पीछे के उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए कहा कि सिफारिश आधारित चयन प्रणाली पार्टी के कार्यकर्ताओं में हताशा का कारण बनी थी। यह नई प्रक्रिया इस चलन को समाप्त करने और जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं को सशक्त बनाने का प्रयास है। यह पहल पार्टी के भीतर आंतरिक लोकतंत्र को मजबूत करने की दिशा में एक बड़ा कदम है।

उत्तर प्रदेश के विभिन्न जोनों में क्षेत्रीय संतुलन और प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना पार्टी की इस नई रणनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह प्रक्रिया न केवल संगठन को अधिक समावेशी बनाएगी, बल्कि विभिन्न क्षेत्रों और समुदायों के कार्यकर्ताओं को भी एक मंच प्रदान करेगी।उदाहरण के लिए पूर्वांचल के जिलाध्यक्षों के इंटरव्यू सबसे पहले आयोजित किए गए।

इसके बाद प्रयागराज, अवध, बुंदेलखंड, ब्रज, और पश्चिम जोन के कार्यकर्ताओं के इंटरव्यू होंगे। इस नई पहल के पीछे पार्टी की यह उम्मीद है कि 2027 के विधानसभा चुनावों से पहले एक मजबूत संगठन तैयार किया जा सके। लेकिन यह रास्ता इतना आसान नहीं है। कांग्रेस को अभी भी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा: जैसे भाजपा और क्षेत्रीय दलों की गहरी जड़ें हैं। कांग्रेस को इनके प्रभाव को चुनौती देने के लिए नए नेतृत्व को प्रेरित करना होगा।पार्टी के पास युवाओं के लिए आकर्षक कार्यक्रम और नेतृत्व विकास के अवसर होने चाहिए।जनता के बीच कांग्रेस की एक नई छवि पेश करना अनिवार्य है। इंटरव्यू आधारित प्रक्रिया सुनिश्चित करेगी कि केवल मेहनती और योग्य कार्यकर्ता ही नेतृत्व की जिम्मेदारी लें।सिफारिश की राजनीति को खत्म करने से पार्टी के अंदर विश्वास का माहौल बनेगा।हर जिले और महानगर में प्रभावी नेतृत्व का गठन होगा।

पार्टी का यह कदम तभी सफल होगा जब इसे राष्ट्रीय नेतृत्व का पूर्ण समर्थन मिलेगा। उत्तर प्रदेश में संगठन के पुनर्निर्माण के लिए प्रियंका गांधी, राहुल गांधी, और मल्लिकार्जुन खड़गे जैसे नेताओं को व्यक्तिगत रूप से जुड़ना होगा।
दिल्ली आलाकमान द्वारा तैयार की गई अंतिम रिपोर्ट यह तय करेगी कि किसे जिलाध्यक्ष और महानगर अध्यक्ष के पद पर नियुक्त किया जाएगा। इससे यह भी सुनिश्चित होगा कि चयन प्रक्रिया निष्पक्ष और पारदर्शी बनी रहे।
पार्टी के इस बदलाव की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि वह सिफारिश की परंपरा से कितना हट पाती है। यदि कांग्रेस वास्तव में केवल जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं को नेतृत्व प्रदान करती है, तो यह न केवल पार्टी के अंदर बल्कि जनता के बीच भी सकारात्मक संदेश देगा।

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की यह नई पहल निश्चित रूप से संगठन को मजबूती देने की दिशा में एक बड़ा कदम है। इंटरव्यू आधारित चयन प्रक्रिया और क्षेत्रीय संतुलन सुनिश्चित करने की कोशिश पार्टी के प्रति एक नई आशा का संचार करती है।
हालांकि, इस प्रक्रिया की सफलता इस पर निर्भर करेगी कि पार्टी इसे कितनी ईमानदारी और पारदर्शिता से लागू करती है। अगर कांग्रेस इस बदलाव को सही ढंग से अमल में लाती है, तो यह उत्तर प्रदेश की राजनीति में पार्टी के पुनरुत्थान का आधार बन सकता है।

2027 के विधानसभा चुनावों से पहले संगठन को मजबूत करना और जनता के बीच अपनी पकड़ बनाना कांग्रेस के लिए एक महत्वपूर्ण लक्ष्य है। यह देखना दिलचस्प होगा कि यह नई रणनीति पार्टी को कितनी मजबूती देती है और वह अपने पुराने गढ़ उत्तर प्रदेश में कितनी सफलता हासिल कर पाती है।

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