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Thursday, December 12, 2024

बढ़ती ही जा रही है इंडिया गठबंधन में दरार, उभरी है नेतृत्व परिवर्तन की मांग

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अशोक भाटिया , मुंबई

भाजपा का मुकाबला करने के लिए बने विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ (INDIA) में दरार बढ़ती ही जा रही है। महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी से सपा के अलग होने और पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी के गठबंधन के कामकाज से असंतुष्ट होने से साफ है कि गठबंधन का भविष्य सवालों में है। विपक्षी गठबंधन में सबसे ज्यादा मतभेद कांग्रेस की स्थिति को लेकर है। गठबंधन अब भाजपा को छोड़कर आपस में ही उलझता नजर आ रहा है। विपक्षी गठबंधन का गठन जून 2023 में लोकसभा चुनाव से पहले ‘भाजपा हटाओ, देश बचाओ’ के नारे के साथ किया गया था। हरियाणा और महाराष्ट्र में मिली करारी हार के बाद इंडिया गठबंधन बिखर सा गया है, बड़ी बात यह है इंडिया गठबंधन के ही कई नेता कांग्रेस को चुनौती देने का काम कर रहे हैं। कांग्रेस के लोकसभा चुनाव प्रदर्शन के बाद जो हैसियत बढ़ गई थी, एक बार फिर वो पतन की ओर दिखाई दे रही है।दैनिक नवभारत टाइम्स के अनुसार सपा की महाविकास अघाड़ी में यह फूट हिंदुत्व के मुद्दे पर पड़ी है ।
टीएमसी ने तो उसके नेतृत्व पर ही सवाल उठाने शुरू कर दिए है। तृणमूल कांग्रेस ने बंगाल के सभी 6 विधानसभा उपचुनावों में जीत हासिल की है वहीं महाराष्ट्र में कांग्रेस की हार को लेकर इंडिया अलायंस के नेतृत्व परिवर्तन की मांग भी उठा दी है। पार्टी के सीनियर लीडर और सांसद कल्याण बनर्जी ने कहा है कि कांग्रेस को अहंकार अपना किनारे रखना चाहिए और ममता बनर्जी को इंडिया ब्लॉक का लीडर घोषित किया जाए। उन्होंने कहा कि गठबंधन को एक मजबूत और निर्णायक नेतृत्व की जरूरत है।

टीएमसी सांसद ने दावा किया कि ममता बनर्जी के पास मजबूत नेतृत्व है। साथ ही, उनके जमीनी स्तर से जुड़ाव ने उन्हें विपक्षी गठबंधन के लिए सबसे कारगर व्यक्ति बना दिया है। रक्तदान शिविर में बोलते हुए कल्याण बनर्जी ने कहा, ‘कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों को हाल के चुनावों में मिली विफलता को स्वीकार करना होगा। अब व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं पर एकता को प्राथमिकता देने की जरूरत है। उन्हें अपना अहंकार छोड़ देना चाहिए और ममता बनर्जी को इंडिया गुट के नेता के रूप में स्वीकार करना होगा।’तृणमूल सांसद कल्याण बनर्जी ने मुख्यमंत्री ममता के भाजपा से लड़ने के ट्रैक रिकॉर्ड का जिक्र किया। उन्होंने ममता बनर्जी को सिद्ध नेता बताते हुए कहा, ‘वह पूरे देश में एक लड़ाकू के रूप में पहचानी जाती हैं। उनका नेतृत्व और जनता से जुड़ने की क्षमता उन्हें आदर्श चेहरा बनाती है। इसलिए एकजुट और व्यावहारिक दृष्टिकोण के बिना विपक्ष के प्रयास लड़खड़ाते रहेंगे।’

दरअसल ममता बनर्जी की छवि एक आंदोलनकारी के रूप में भी देखने को मिली है, जब पश्चिम बंगाल में लेफ्ट की सरकार थी, जब कई सालों तक टीएमसी को संघर्ष करना पड़ा था, तब ममता बनर्जी का अलग ही सियासी रूप सामने आया था। पैरों में चप्पल पहनकर उन्होंने कई किलोमीटर का आंदोलन किया था। सिंगूर में उन्होंने जनता के लिए जिस तरह से लेफ्ट सरकार से टक्कर ली थी, उसने उनकी सियासी पहचान हमेशा के लिए बदल दी थी। उस एक आंदोलन ने बता दिया था कि ममता बनर्जी जमीन से जुड़ी नेता हैं, उनकी भी कॉमन मैन वाली छवि है। उनका यह अंदाज राष्ट्रीय स्तर पर पीएम मोदी के सियासी कद को चुनौती दे सकता है।

जब भी राहुल गांधी से ममता बनर्जी की तुलना की जाती है, अनुभव के मामले में नेता प्रतिपक्ष हमेशा पीछे छूटते हैं। जिस नेता को लगातार तीन बार सरकार बनाने का मौका मिला, जिसने पिछले 15 सालों से किसी राज्य की कमान संभाल रखी हो, उसका अनुभव सियासी तौर पर अप्रत्याशित होता है, प्रशस्तिक जिम्मेदारी निभाने में भी वो काफी निपुण माना जाता है। ऐसे में यह सियासी अनुभव भी ममता बनर्जी को इंडिया गठबंधन के लिए मुफीद बना सकता है।
शुक्रवार को एक समाचार चैनल से बात करते हुए सीएम ममता बनर्जी ने गठबंधन के नेतृत्व और समन्वय को लेकर निराशा व्यक्त की। उन्होंने कहा कि मैंने इंडिया ब्लॉक का गठन किया था, अब इसका प्रबंधन करना उन लोगों पर निर्भर है जो इसका नेतृत्व कर रहे हैं। अगर वे इसे नहीं चला सकते, तो मैं क्या कर सकती हूं? मैं बस यही कहूंगी कि सभी को साथ लेकर चलने की जरूरत है।

विपक्षी इंडिया गठबंधन के नेतृत्व करने पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की हालिया टिप्पणी को लेकर गठबंधन के सहयोगियों की ओर समर्थन की किया गया है। पहले समाजवादी पार्टी और अब शरद पवार। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बयान पर शरद पवार ने कहा कि हां, निश्चित रूप से (वह गठबंधन का नेतृत्व करने में सक्षम हैं), वह इस देश की एक प्रमुख नेता हैं। उनमें वह क्षमता है। संसद में उनके द्वारा चुने गए नेता जिम्मेदार, कर्तव्यनिष्ठ और जागरूक लोग हैं। इसलिए उन्हें ऐसा कहने का अधिकार है।

ममता के बयान पर कांग्रेस ने कड़ी प्रतिक्रिया जताई है। बंगाल कांग्रेस के प्रवक्ता सौम्य राय आइच ने कहा कि कांग्रेस और उसकी सहयोगी पार्टियां पूरे भारत में भाजपा के खिलाफ लड़ रही हैं, जबकि ममता का भाजपा विरोध सीजनल पालिटिक्स की तरह है। वह कभी इंडिया गठबंधन में हैं तो कभी नहीं। उनकी पार्टी संसद में अदाणी के खिलाफ कुछ नहीं बोल रही।ममता भाजपा के खिलाफ चुप रहेंगी और गठबंधन का नेतृत्व भी करना चाहेंगी, ये दोनों चीजें एक साथ नहीं हो सकतीं।वहीं भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता प्रदीप भंडारी ने कहा कि 80 से ज्यादा बार रिलांच होने के बावजूद राहुल व प्रियंका गांधी वाड्रा को अगर उनके गठबंधन के नेता ही गंभीरता से नहीं लेते तो देश की जनता कैसे लेगी? जो लोग एक-दूसरे की राजनीतिक जमीन कमजोर करने में लगे हैं, वे जनता की सेवा नहीं कर सकते। पीएम मोदी हमेशा यही कहते रहे हैं कि यह गठबंधन अहंकारी है, जिसमें लोग एक-दूसरे के खिलाफ खड़े हैं। चुनाव के बाद गठबंधन टूट जाता है और इसके सदस्य आपस में ही लड़ने लगते हैं।

महाराष्ट्र में वैसे ही चुनाव पूर्व से महाविकास अघाड़ी के साथ समाजवादी पार्टी की पटरी मेल नहीं खा रही थी ।अब समाजवादी पार्टी ने महाविकास अघाड़ी से अलग होने की घोषणा की है। पार्टी के महाराष्ट्र अध्यक्ष अबू आजमी ने कहा कि चुनाव में कांग्रेस ने टिकट बंटवारे पर हमसे कोई बात नहीं की। किसी तरह का कोई कॉर्डिनेशन नहीं रहा। ऐसे में गठबंधन में रहने का क्या मतलब है। महाविकास अघाड़ी ने EVM के मुद्दे पर विधानसभा में सदस्यता की शपथ लेने से मना कर दिया था। शिवसेना उद्धव गुट के आदित्य ठाकरे ने इसकी घोषणा की थी, लेकिन समाजवादी पार्टी के दोनों विधायकों अबू आजमी और रईस शेख ने शपथ ली है।

संभल के मुद्दे पर भी समाजवादी पार्टी और कांग्रेस में अनबन जारी है। उत्तर प्रदेश में दोनों पार्टियों का गठबंधन है, लेकिन संभल को लेकर दोनों में किसी तरह का कोई तालमेल नहीं है। संसद में जब इस पर बहस हुई तब कांग्रेस के सांसद बाहर प्रदर्शन कर रहे थे।समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने संभल में हुई हिंसा के मामले को लोकसभा में जोर शोर से उठाया। मामला मुस्लिम वोट का है। इसीलिए राहुल गांधी और प्रियंका गांधी अगले ही दिन संभल के लिए रवाना हो गए। उत्तर प्रदेश पुलिस ने दोनों नेताओं को गाजीपुर बॉर्डर पर रोक दिया। इस पर समाजवादी पार्टी के सांसद रामगोपाल यादव ने कहा कि राहुल गांधी विरोध के नाम पर औपचारिकता कर रहे थे, उन्हें यह मुद्दा संसद में उठाना चाहिए था।
स्पष्ट है संसद के अंदर और बाहर भी समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के रिश्तों में दरार नज़र आने लगी है। समाजवादी पार्टी के सांसद संभल पर बहस चाहते थे, लेकिन राहुल गांधी और उनकी पार्टी का फोकस दूसरे मुद्दों पर था।हालांकि इस मुद्दे पर ममता बनर्जी भी अखिलेश यादव के साथ हैं। दोनों के बीच अच्‍छे रिश्‍ते हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में तो अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश की भदोही सीट तृणमूल कांग्रेस के लिए छोड़ दी थी, जबकि सब जानते हैं कि यूपी में ममता की पार्टी का कोई जनाधार नहीं है।

वैसे कुछ जानकार तो यहां तक मानते हैं कि ममता बनर्जी जो इस समय इंडिया गठबंधन को लीड करने की बात कर रही हैं, उनकी असल रणनीति तो पूरे विपक्ष अलग होने की है। उन्हें भी शायद इस बात का एहसास है कि कांग्रेस उनके नेतृत्व को स्वीकार नहीं करेगी, इस तरह से नाराजगी वाला कारण बताकर इंडिया गठबंधन से खुद को अलग कर सकती हैं और नए सिरे से अपनी राजनीति शुरू कर सकती हैं। वैसे ममता के अलावा नीतीश कुमार की राजनीति भी इस समय सुर्खियों में है, ऐसी खबर चल पड़ी है कि अगर बिहार में महाराष्ट्र फॉर्मूला लगाया गया, नीतीश की कुर्सी चली जाएगी।

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