“मां की इज्जत में ही जीवन की इबादत है, उसके आशीर्वाद से ही हर राह जन्नत है।”

सूर्या अग्निहोत्री
मां वह रिश्ता है जो न सिर्फ इस दुनिया में, बल्कि पूरे ब्रह्मांड में सबसे बड़ा और सबसे पवित्र माना गया है। शायद इसी कारण भारतीय संस्कृति में मां को भगवान से भी ऊँचा दर्जा दिया गया है। यह बात यूं ही नहीं कही गई कि भगवान हर जगह नहीं हो सकते, इसलिए उन्होंने मां को बनाया। मां वह शक्ति है जो हर समय, हर हाल में, हर रूप में अपनी संतान के साथ खड़ी रहती है—बिना किसी शर्त, बिना किसी अपेक्षा के।
दुनिया के प्रेम से मां का प्रेम नौ महीने अधिक होता है, क्योंकि मां हमें नौ महीने अपनी कोख में रखती है। उस दौरान हमारी उम्र आगे बढ़ती रहती है, जीवन आकार लेता है। लेकिन इस दुनिया में कदम रखते ही उम्र उलटी गिनती गिनने लगती है—समाप्ति की ओर। मां ही वह है जो हमारे जन्म से पहले भी हमारे लिए जीती है और जन्म के बाद भी अपने जीवन से ज्यादा हमारी जिंदगी की फिक्र करती है।
जैसे-जैसे हम बड़े होते जाते हैं, जीवन की भागदौड़ में उलझते जाते हैं। रिश्ते, जिम्मेदारियां और स्वार्थ हमें घेर लेते हैं। इस बीच हम अक्सर मां के प्रेम, उसके संघर्ष और उसके त्याग को भूलते चले जाते हैं। लेकिन मां… उसे कभी कोई शिकायत नहीं होती। वह बस इसी में खुश हो जाती है कि उसकी औलाद खुश है, सुरक्षित है और अच्छा जीवन जी रही है। मां अपनी खुशी हमारी मुस्कान में ढूंढ लेती है।
जब हम थककर घर लौटते हैं, तो घर में हर कोई अपने-अपने सवाल लेकर खड़ा होता है। कोई पूछता है इतनी देर क्यों हो गई, कोई पूछता है मेरे लिए क्या लाए, कोई अपनी जरूरतें गिनाने लगता है। लेकिन सिर्फ एक मां होती है, जो बिना किसी सवाल के पूछती है—“बेटा, भूखे तो नहीं हो? कुछ खाया या नहीं?” यही एक सवाल दिनभर की थकान, तनाव और गिले-शिकवे को पल भर में मिटा देता है।
मां की गोद वह जगह है जहां दुनिया के सारे दुख, सारी परेशानियां और सारे कष्ट आकर थम जाते हैं। कहा जाता है कि मां के पास से मौत भी थम जाती है, क्योंकि उसकी ममता में जीवन को बचाने की अद्भुत शक्ति होती है। मां सिर्फ जन्म देने वाली नहीं होती, वह जीवन गढ़ने वाली भी होती है।
इस संसार में आने के बाद हमारी पहली गुरु मां ही होती है। वही हमें सिखाती है कि कौन अपना है और कौन पराया, क्या सही है और क्या गलत। रिश्तों की पहली पहचान, संस्कारों की पहली सीख और इंसान बनने की पहली पाठशाला—सब कुछ मां से ही शुरू होता है।
जिस घर में मां को कष्ट दिया जाता है, जहां मां का अपमान होता है, उस घर में कभी सच्चा सुख नहीं टिकता। जो लोग मां की इज्जत नहीं कर सकते, उनसे भगवान भी कभी खुश नहीं होता—चाहे वे कितनी ही पूजा-पाठ, हवन या भंडारे क्यों न कर लें। पैसा, रुतबा और दिखावा सब व्यर्थ हो जाता है, अगर घर में मां की आंखों में आंसू हों।
सच यही है कि मां को दुखी रखकर कोई कभी सुखी नहीं हो सकता। मां का आशीर्वाद ही सबसे बड़ा वरदान है और उसकी बद्दुआ सबसे बड़ा अभिशाप। मां की दुआओं के आगे किस्मत भी झुक जाती है और राहें खुद-ब-खुद आसान हो जाती हैं।
मां है, तो जीवन है… और जीवन है, तो सारी दुनिया है।






