नैनीताल: उत्तराखंड उच्च न्यायालय (High Court) ने बुधवार को सॉफ्टवेयर इंजीनियर राजेश गुलाटी (Rajesh Gulati) की आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखा, जिसे अपनी पत्नी अनुपमा गुलाटी की निर्मम हत्या का दोषी ठहराया गया था। न्यायमूर्ति रविंद्र मैथानी और न्यायमूर्ति आलोक माहेरा की खंडपीठ ने निचली अदालत के आदेश को बरकरार रखते हुए गुलाटी की आजीवन कारावास की सजा की पुष्टि की।
राजेश ने अनुपमा से 1999 में प्रेम विवाह किया था। शादी के बाद दोनों अमेरिका चले गए। छह साल बाद, वे अमेरिका से लौटे और देहरादून के प्रकाश नगर इलाके में एक किराए के मकान में रहने लगे। वे अक्सर छोटी-छोटी बातों पर झगड़ते रहते थे। पुलिस जांच में पता चला कि 17 अक्टूबर, 2010 की रात को दोनों के बीच फिर झगड़ा हुआ, जिसके दौरान राजेश ने अनुपमा को थप्पड़ मारा, जिससे उसका सिर दीवार से टकरा गया। अनुपमा के बेहोश हो जाने पर राजेश घबरा गया और उसने उसकी हत्या कर दी।
शव को ठिकाने लगाने के लिए राजेश ने अगले दिन एक इलेक्ट्रिक आरी और एक डीप फ्रीजर खरीदा। उसने अनुपमा के शरीर को 72 टुकड़ों में काटा, उन्हें पॉलिथीन बैग में पैक किया और डीप फ्रीजर में रख दिया। सबूत मिटाने के लिए राजेश रोजाना शरीर के अंगों से भरे पॉलिथीन बैग देहरादून के बाहरी इलाके में फेंक देता था।
अपराध का खुलासा तब हुआ जब अनुपमा का भाई सुजान कुमार 12 दिसंबर 2010 को देहरादून आया। जब सुजान ने राजेश से अपनी बहन के बारे में पूछा, तो उसने टालमटोल भरे जवाब दिए। इसके बाद सुजान ने देहरादून छावनी पुलिस स्टेशन में गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई। शिकायत के आधार पर पुलिस राजेश के घर पहुंची और तलाशी के दौरान डीप फ्रीजर में अनुपमा के शरीर के अंग बरामद किए।
राजेश को गिरफ्तार कर लिया गया और मुकदमे की सुनवाई के बाद देहरादून की एक अदालत ने 1 सितंबर, 2017 को उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई। अदालत ने राजेश पर 15 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया और आदेश दिया कि 70,000 रुपये सरकारी खजाने में जमा किए जाएं और शेष राशि उसके बच्चों के बैंक खाते में जमा की जाए। राजेश ने 2017 में इस आदेश को उच्च न्यायालय में चुनौती दी, लेकिन उसे हार का सामना करना पड़ा।


