इंजी. विकास कटियार
आज का दौर सूचना और तकनीक का है। इंटरनेट और सोशल मीडिया ने जीवन को तेज़, आसान और सूचनाओं से भरपूर बना दिया है। रील, वीडियो और पोस्ट की निरंतर धारा ने हमारी दिनचर्या पर गहरा प्रभाव डाला है। लेकिन इस डिजिटल चकाचौंध के बीच एक बुनियादी सच अक्सर ओझल हो जाता है—इंटरनेट मीडिया का कंटेंट क्षणिक है, जबकि बच्चे देश का स्थायी भविष्य हैं।
आज अधिकांश घरों में बच्चों के हाथ में मोबाइल या टैबलेट होना सामान्य बात हो गई है। माता-पिता अक्सर सुविधा के लिए बच्चों को स्क्रीन के हवाले कर देते हैं। इससे बच्चे डिजिटल कंटेंट के उपभोक्ता बनते जा रहे हैं, जबकि उनके रचनात्मक, बौद्धिक और सामाजिक विकास पर अपेक्षित ध्यान नहीं दिया जा रहा।
बचपन के वर्ष किसी भी व्यक्ति के जीवन की नींव होते हैं। यह समय कल्पनाशील खेल, किताबों, संवाद और वास्तविक अनुभवों का होता है। स्क्रीन आधारित दुनिया इस स्वाभाविक विकास को सीमित कर देती है।
अत्यधिक सोशल मीडिया उपयोग बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है। दूसरों की तथाकथित “परफेक्ट लाइफ” देखकर उनमें हीन भावना और असंतोष पनप सकता है। ‘लाइक’ और ऑनलाइन स्वीकार्यता की चाह आत्म-सम्मान को बाहरी मानकों से जोड़ देती है।
इसके साथ ही, वास्तविक सामाजिक संपर्क की कमी से बच्चों के संवाद कौशल, भावनात्मक समझ और सामूहिक व्यवहार पर नकारात्मक असर पड़ता है। दोस्ती निभाना, मतभेद सुलझाना और भावनाओं को समझना—ये गुण स्क्रीन से नहीं, बल्कि जीवन से सीखते हैं।
इंटरनेट को पूरी तरह नकारना समाधान नहीं है। यह ज्ञान और अवसरों का विशाल माध्यम भी है। आवश्यकता इस बात की है कि बच्चों को जिम्मेदार डिजिटल नागरिक बनाया जाए।
उन्हें यह सिखाना जरूरी है कि ऑनलाइन क्या सुरक्षित है और क्या नहीं, फर्जी खबरों की पहचान कैसे करें और अपनी निजी जानकारी की रक्षा कैसे करें। डिजिटल साक्षरता आज उतनी ही जरूरी है जितनी पारंपरिक शिक्षा।
किसी भी देश का भविष्य ट्रेंडिंग कंटेंट या एल्गोरिदम से नहीं, बल्कि उसकी युवा पीढ़ी से तय होता है। बच्चों के स्वास्थ्य, शिक्षा, चरित्र और कौशल में निवेश ही राष्ट्र निर्माण का आधार है।
माता-पिता और शिक्षक यदि बच्चों के साथ समय बिताएं, उनकी रुचियों को पहचानें और नैतिक मूल्यों—जैसे करुणा, ईमानदारी और सहयोग—को जीवन का हिस्सा बनाएं, तो एक सशक्त और संवेदनशील समाज का निर्माण संभव है।
आज आवश्यकता इस बात की है कि हम अपनी प्राथमिकताओं पर पुनर्विचार करें। बच्चों को डिजिटल दुनिया का गुलाम नहीं, बल्कि उसका समझदार उपयोगकर्ता बनाना होगा।
इंटरनेट मीडिया का कंटेंट क्षणिक है, लेकिन बच्चे देश की सबसे मूल्यवान पूंजी हैं। उनके संतुलित और समग्र विकास से ही भारत का भविष्य सुरक्षित, सशक्त और नैतिक बन सकता है। अब समय आ गया है कि हम कंटेंट नहीं, इंसान को प्राथमिकता दें।





