यूथ इंडिया क्रिकेट एक्सक्लूसिव
गुमनामी में खोये सितारे पार्ट-2

रिकॉर्ड बनाकर भी खो गया एक भारतीय तेज गेंदबाज… संन्यास की कहानी सिस्टम की बड़ी समस्या उजागर करती है
गांव के कच्चे मैदान से भारत की जर्सी तक पहुंचे बरिंदर सरन सिर्फ 31 की उम्र में क्रिकेट छोड़ गए—कहानी सिर्फ एक खिलाड़ी की नहीं, बल्कि उस सिस्टम की भी है जहां कई प्रतिभाएं मौके के अभाव में दबकर खत्म हो जाती हैं।

सूर्या अग्निहोत्री
यूथ इंडिया एक्सक्लूसिव खबरों में क्रिकेट के गुमनाम खिलाडियों पर चर्चा की सीरीज में आज हम दूसरा पार्ट आप के बीच लाये हैं। इस सीरीज में उन खोए हुए सितारों पर चर्चा हो रही है जिनकी क्रिकेट में इंट्री तो धमाकेदार हुई, मगर गायब होने में सिर्फ कुछ मैच ही लगे। भारतीय क्रिकेट का इतिहास जितना चमकदार है, उसके भीतर उतनी ही अनसुनी कहानियों की परतें दबी हैं। उन कहानियों में से एक नाम तेज गेंदबाज बरिंदर सरन का भी है—वह खिलाड़ी जिसने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ T20I डेब्यू में 4/10 का भारतीय रिकॉर्ड बनाया, IPL में अपनी तेज गेंदों से पहचान हासिल की, और इतने कम समय में चयनकर्ताओं को अपनी ओर देखने पर मजबूर किया। लेकिन यह चमक कुछ ही वर्षों में धुंधली पड़ गई, और अंत में 29 अगस्त 2024 को उन्होंने इंस्टाग्राम पर पोस्ट लिखकर संन्यास की घोषणा कर दी। 31 की उम्र में क्रिकेट छोड़ने का फैसला न सिर्फ चौंकाने वाला था, बल्कि सवाल भी खड़ा करता है कि आखिर कब तक भारतीय क्रिकेट में प्रतिभाएं मौके के अभाव में खोती रहेंगी।

बरिंदर सरन की कहानी एक गांव से शुरू होती है—फतेहगढ़ साहिब, पंजाब का वह इलाका जहां वह एक किसान परिवार में पले-बढ़े। क्रिकेट की कोई बड़ी सुविधा नहीं, सिर्फ टेनिस बॉल और दोस्तों की टोली। किंग्स इलेवन पंजाब (अब पंजाब किंग्स) की ओर से आए एक ट्रायल विज्ञापन ने उनकी जिंदगी की दिशा बदल दी। वे गांव से निकलकर ट्रायल में पहुंचे, चयन नहीं हुआ, लेकिन पहली बार उन्हें राज्य के अनकैप्ड प्रतिभाओं की सूची में जगह मिली। यहीं से उनकी यात्रा ने पेशेवर मोड़ लेना शुरू किया। इसके बाद चंडीगढ़ में ट्रेनिंग, इंडिया अंडर-19 स्पीड्स्टर प्रतियोगिता में हिस्सा और दुबई की ICC अकादमी में अभ्यास—इन सबने इस युवा लेफ्ट-आर्म पेसर को एक नई पहचान दी।

कम लोग जानते हैं कि कभी वह बॉक्सर बनने की राह पर थे। भिवानी बॉक्सिंग क्लब में उन्होंने महीनों की ट्रेनिंग की थी और मुक्केबाज़ी में वह उतने ही जुनूनी थे जितने क्रिकेट में। लेकिन किस्मत ने उन्हें क्रिकेट की ओर खींचा—और यह वही रास्ता था जो उन्हें भारत की नीली जर्सी तक ले गया। 2015 में राजस्थान रॉयल्स ने उन्हें IPL में मौका दिया। 2016 में सनराइजर्स हैदराबाद ने उन्हें अपनी तेज गेंदबाजी यूनिट का हिस्सा बनाया। उनकी रफ्तार, बाउंस और सटीकता ने कई बड़े बल्लेबाजों को परेशान किया।

2016 में एमएस धोनी की कप्तानी में जब उन्होंने T20I डेब्यू किया, तो दुनिया ने पहली बार उस गेंदबाज की असली चमक देखी। ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ उनके पहले ही मैच में आए आंकड़े—4 विकेट, 10 रन—आज भी भारतीय T20 इतिहास के सर्वश्रेष्ठ डेब्यू स्पेल के रूप में दर्ज हैं। यह रिकॉर्ड 2025 तक भी कोई भारतीय गेंदबाज नहीं तोड़ सका। यह वह क्षण था जब लगा कि भारत को नया लेफ्ट-आर्म स्ट्राइक बॉलर मिल गया है। लेकिन भारतीय क्रिकेट का इतिहास बताता है कि प्रतिभावान खिलाड़ियों का सतह पर टिके रहना उतना आसान नहीं जितना दिखता है।

बरिंदर सरन के करियर की सबसे बड़ी बाधा इंजरी और अनियमित मौके रहे। तेज गेंदबाजी हमेशा ही चोटों के जोखिम के साथ आती है, और बरिंदर भी इससे अछूते नहीं रहे। बार-बार की चोटों ने उनके करियर की गति धीमी कर दी। और जब भी वे वापसी करते, भारत की टीम पहले से ही बुमराह, शमी, भुवनेश्वर और उमेश जैसे दिग्गजों से भरी रहती थी। चयनकर्ताओं की नजरों में जगह बनाना मुश्किल हो जाता। यह सिर्फ उनकी नहीं, बल्कि ऐसे कई भारतीय गेंदबाजों की कहानी है जो घरेलू क्रिकेट में छा जाते हैं, लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुंच ही नहीं पाते या फिर लंबे समय तक टिक नहीं पाते।

भारत की घरेलू संरचना जिस तरह विशाल है, उसमें प्रतियोगिता भी उतनी ही तगड़ी है। हर सीजन में सौ–दो सौ नए खिलाड़ी चमकते हैं, लेकिन उनमें से केवल दो–तीन ही टीम इंडिया तक पहुंच पाते हैं। कई प्रतिभाएं चयन की राजनीति, फ्रेंचाइज़ी दबाव, मार्केट वैल्यू और इंजरी मैनेजमेंट जैसी खामियों में खो जाती हैं। बरिंदर जैसे खिलाड़ी, जिनमें 140+ की रफ्तार और स्विंग दोनों का मेल था, उन्हें वह निरंतरता नहीं मिल सकी जिसकी बड़ी गेंदबाजों को जरूरत होती है।

उनके करियर के रिकॉर्ड बताते हैं कि उन्होंने जितना खेला, बेहतरीन खेला। वनडे में 6 मैच और 18 विकेट, T20I में 2 मैच और 6 विकेट, IPL में 27 मैच और 18 विकेट—इन सबके बावजूद उनका करियर बहुत छोटा रह गया। घरेलू क्रिकेट में उन्होंने 150 से अधिक विकेट लिए और पंजाब की गेंदबाजी में एक अहम स्तंभ रहे। लेकिन अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में वे लगातार जगह नहीं बना सके—और यह सवाल आज भी खड़ा है कि क्या भारत अपनी तेज गेंदबाजी प्रतिभाओं को संभालने में अभी भी कमजोर है?

उनके संन्यास की घोषणा भी उतनी ही शांत थी जितना उनका लंबा अंतराल। न कोई प्रेस कॉन्फ्रेंस, न कोई बड़ा बयान। बस सोशल मीडिया पर एक पोस्ट—“यह सही समय है आगे बढ़ने का।” इस एक वाक्य में बहुत कुछ छिपा हुआ था। संन्यास लेने के बाद वे फिलहाल क्रिकेट से दूर हैं, किसी नई आधिकारिक भूमिका में नहीं दिखे हैं, लेकिन अपने खेल के दिनों की यादें और ट्रेनिंग झलकियां सोशल मीडिया पर साझा करते रहते हैं।

बरिंदर सरन का संन्यास एक चेतावनी की तरह है—कि भारत जैसा विशाल क्रिकेटing देश अब भी अपने तेज गेंदबाजों को पर्याप्त सुरक्षा, मैनेजमेंट और अवसर नहीं दे पा रहा। जब एक रिकॉर्ड-होल्डर लेफ्ट-आर्म पेसर सिर्फ 31 में खेल छोड़ देता है, और देश को पता भी मुश्किल से चलता है—तो समझना चाहिए कि समस्या खिलाड़ी में नहीं, व्यवस्था में कहीं गहरी है।

बरिंदर सरन की कहानी सिर्फ उनकी नहीं है; यह उन हजारों भारतीय युवाओं की कहानी है जो सीमित अवसरों की वजह से अपनी पूरी प्रतिभा दुनिया को दिखाने से पहले ही छिप जाते हैं। सवाल यह नहीं कि बरिंदर क्यों नहीं टिके—सवाल यह है कि अगला बरिंदर कौन है… और क्या वह भी ऐसे ही खो जाएगा?

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