नई दिल्ली: केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने बुधवार को कहा कि उसने एचपीजेड टोकन निवेश धोखाधड़ी मामले में आरोपपत्र (chargesheet) दाखिल कर दिया है। इस मामले में चीनी नागरिक के स्वामित्व और नियंत्रण वाली कंपनी शिगू टेक्नोलॉजी प्राइवेट लिमिटेड पर कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान जनता को ठगने का आरोप है।
सीबीआई ने बताया कि आरोपियों ने “एचपीजेड टोकन” नामक एक फर्जी मोबाइल एप्लिकेशन लॉन्च किया था, जिसमें दावा किया गया था कि निवेश का उपयोग क्रिप्टोकरेंसी माइनिंग के लिए किया जाएगा और इससे बहुत अधिक रिटर्न मिलेगा। महज तीन महीनों के भीतर, करोड़ों रुपये एकत्र किए गए और धोखेबाजों द्वारा उनका गबन कर लिया गया।
एक अधिकारी ने कहा, “सीबीआई की जांच से पता चला है कि यह कोई अलग-थलग घटना नहीं थी, बल्कि विदेशी नागरिकों द्वारा संचालित एक बड़े, सुनियोजित साइबर अपराध नेटवर्क का हिस्सा थी। यह गिरोह कोविड-19 के बाद के दौर में भारतीय नागरिकों को निशाना बनाकर कई साइबर घोटालों के लिए जिम्मेदार था, जिसमें ऋण ऐप, फर्जी निवेश ऐप और फर्जी ऑनलाइन नौकरी के प्रस्ताव देने वाले प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल किया गया था।”
सीबीआई ने शुरू में डोर्त्से, रजनी कोहली, सुशांत बेहरा, अभिषेक, मोहम्मद इमधाद हुसैन और रजत जैन सहित छह लोगों को गिरफ्तार किया था और अब उसने दो चीनी नागरिकों वान जून और ली अनमिंग सहित 30 आरोपियों के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया है, जिन्होंने ऑपरेशन को निर्देशित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
वान जून, जिलियन कंसल्टेंट्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड नामक कंपनी के निदेशक थे, जो एक चीनी कंपनी जिलियन कंसल्टेंट्स की सहायक कंपनी थी। वान जून ने डॉर्टसे की मदद से शिगू टेक्नोलॉजीज सहित कई फर्जी कंपनियां बनाईं। जांच में पता चला है कि ये फर्जी कंपनियां बड़े संगठित साइबर धोखाधड़ी के अपराधों से प्राप्त धन को इकट्ठा करने और उसे वैध बनाने का माध्यम बनीं। कुछ ही महीनों में इन कंपनियों के बैंक खातों से 1000 करोड़ रुपये से अधिक की राशि निकाली गई। ये धोखाधड़ी एक ही संगठित आपराधिक गिरोह द्वारा नियंत्रित और आपस में जुड़ी हुई थीं, जिसका संचालन विदेश में होता था।
जांच में भुगतान एग्रीगेटरों के अत्यधिक परिष्कृत उपयोग का भी खुलासा हुआ। भारत में भुगतान एकत्रीकरण प्रणालियां अभी-अभी शुरू हुई थीं, और ये एग्रीगेटर वास्तविक कंपनियों को बड़ी मात्रा में धन संग्रह और वितरण सेवाएं प्रदान कर रहे थे। इस तकनीक ने उपयोगकर्ताओं को एक साथ बड़ी संख्या में बैंक खातों तक पहुंच प्रदान की थी। भारत की इस सुव्यवस्थित भुगतान प्रणाली का इन जालसाजों ने दुरुपयोग किया और एक फर्जी कंपनी के खातों से दूसरी फर्जी कंपनी के खातों में तेजी से धन का हेरफेर किया। साथ ही, उन्होंने निवेशकों का विश्वास जीतने के लिए उन्हें आंशिक रूप से धन वापस भी दिया।
जिलियन कंसल्टेंट्स ने कई फर्जी कंपनियां बनाने के लिए कंपनी सचिवों (सीए) सहित कई पेशेवरों को नियुक्त किया था। इस तरह एकत्रित धन को क्रिप्टोकरेंसी में परिवर्तित कर देश से बाहर भेज दिया गया। सीबीआई ने सुश्री वान जून सहित सभी मुख्य साजिशकर्ताओं की पहचान कर ली है और 27 आरोपियों और 3 कंपनियों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया है।
मामले में अन्य संदिग्धों के खिलाफ आगे की जांच जारी है। सीबीआई चक्र-वी जैसे अथक अभियानों के माध्यम से इन परिष्कृत साइबर धोखाधड़ी नेटवर्क को ध्वस्त करने के लिए अपने अटूट संकल्प पर अडिग है। सीबीआई भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था को मजबूत करना, संवेदनशील निवेशकों की रक्षा करना, लक्षित गिरफ्तारियां करना, संपत्ति जब्त करना और अंतरराष्ट्रीय सहयोग स्थापित करना जारी रखेगी।


