डेमोक्रेसी से आम आदमी को क्या फायदा?

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— शरद कटियार

आज गांव-मोहल्लों में सबसे ज्यादा बहस इसी बात पर हो रही है कि कौन नेता बनेगा—अमित शाह, नरेंद्र मोदी, योगी आदित्यनाथ या कोई और। लोग आपस में झगड़े तक कर लेते हैं। लेकिन इन सारी बहसों का सबसे बड़ा सवाल यही है—इन सबके नेता बनने से आम आदमी को क्या फायदा?
सच यह है कि आम आदमी की जिंदगी नेता बदलने से नहीं बदलती।
गरीब का गरीब ही रहता है, बेरोजगार का बेटा बेरोजगार ही रहता है, किसान का कर्ज वही रहता है। नेता चाहे सांसद बने, विधायक बने या मंत्री, सबसे पहले अपने हित, अपने क्षेत्र और अपनी जाति के बड़े लोगों का विकास करता है।
जाति के नेता से समाज को क्या मिला?
हर व्यक्ति सोचता है—”मेरी जाति का नेता ऊपर जाएगा तो हमें फायदा मिलेगा।” लेकिन इतिहास बताता है कि यह सोच गलत है। पूरा कुर्मी समाज आज रो रहा है कि नीतीश कुमार का गृह मंत्रालय छिन लिया गया।पर सवाल यह है—उनके 10 बार मुख्यमंत्री बनने से कुर्मी समाज को क्या मिला?
क्या गरीब कुर्मी किसान अमीर हो गया?क्या नौजवानों को नौकरी मिल गई? क्या गांव का विकास हो गया?
नहीं। फायदा सिर्फ नेता को मिलता है। समाज वहीं का वहीं रहता है। आज राजनीति धर्म के नाम पर लड़ाई करवा रही है। कभी राम के नाम पर, कभी रहीम के नाम पर। लेकिन आम आदमी की जिंदगी में ना महंगाई कम हुई, ना बेरोजगारी घटी, ना अस्पताल सुधरे, ना शिक्षा अच्छी हुई।
दुनिया के 90% देशों में लोग इन धार्मिक बहसों में नहीं फंसते। वे इंसानियत, विज्ञान और विकास पर ध्यान देते हैं।हमारे यहां युवा पीढ़ी को जानबूझकर भटकाया जा रहा है।राष्ट्रवाद और जुमलेबाजी में फर्क समझना होगा,राष्ट्रवाद का मतलब क्या है?गांव में सड़क,बच्चों को शिक्षा,किसानों को सही दाम, युवाओं को नौकरी,महंगाई से राहत,
अस्पतालों में इलाज।ये राष्ट्रवाद है। नेताओं के नारे नहीं। लेकिन आज नेताओं ने राष्ट्रवाद को जुमलेबाजी का हथियार बना दिया है।लोग नेता के नाम पर लड़ रहे हैं,
नेता जनता के नाम पर जीत रहे हैं और आम आदमी अपनी ही जगह खड़ा रह जाता है।
यह साफ है कि जाति की राजनीति से समाज को कुछ नहीं मिला, धर्म की राजनीति से देश आगे नहीं बढ़ा,और नेता बदलने से गरीब की हालत नहीं सुधरी।देश को ऐसे नेतृत्व की जरूरत है जो इंसानियत, विकास और सच्चे राष्ट्रवाद की बात करे। जुमलों से नहीं—काम से। यह बात आज हर भारतीय को सोचनी चाहिए,वरना लोकतंत्र सिर्फ वोट डालकर नेताओं को बड़ा बनाने का खेल बनकर रह जाएगा।

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