देश की राजनीति, प्रशासन, मीडिया और समाज—सब अपने-अपने लक्ष्य, अपने-अपने फायदे और अपने-अपने समीकरण गढऩे में इतने व्यस्त हो गए हैं कि राष्ट्रवाद की मूल आत्मा कहीं खोती जा रही है। लोकतंत्र की यह विडंबना आज हम सभी के सामने खड़ी है कि हर संस्था, हर वर्ग और हर व्यक्ति अपनी-अपनी जुगत में लगा है, लेकिन राष्ट्रहित पर बात करने वाला कोई नहीं दिखता। सवाल उठता है—जब सब अपने में खो गए हैं, तब राष्ट्रवाद आखिर जाएगा कहाँ?
आज राजनीति का केंद्र विकास नहीं, वोट बन गया है। नेता का हर कदम इस चिंता में घिरा है कि कौन-सा वर्ग कब नाराज़ हो जाएगा, किस समुदाय को कैसे साधना है और कौन-सा मुद्दा चुनावी फायदे में बदलेगा। राष्ट्र पहले और राजनीति बाद मे—यह विचार अब इतिहास हो चुका है। आज समीकरण पहले सेट होते हैं, और उसके बाद राष्ट्रहित पर भाषण।
प्रशासन का दायित्व जनता है, लेकिन वास्तविकता में अधिकारियों का फोकस सत्ता को खुश रखने में लगा रहता है। फाइलों से लेकर फैसलों तक, हर जगह राजनीतिक दबाव हावी है। ईमानदारी कमजोर पड़ती है और जवाबदेही राजनीति के दरवाज़े पर गिरवी हो जाती है। जिस तंत्र से जनता को न्याय मिलना था, वही तंत्र सुविधाजनक चापलूसी में बदलता जा रहा है। कभी देश की चौथी ताकत माने जाने वाला मीडिया आज टीआरपी, पैकेज, प्रायोजक और पेड न्यूज़ की चपेट में है। सत्य की जगह सेंसेशन बिकता है।
प्रश्न पूछने की जगह प्रचार दिखता है। जहाँ पत्रकारिता एक मिशन थी, वही आज एक व्यवसाय मात्र बन चुकी है।जनता को सही जानकारी नहीं, बल्कि सजाई-सँवराई कहानी मिलती है। अपराधी और माफिया आज किसी अंधेरे में नहीं, बल्कि खुले मंचों पर ताकत का प्रदर्शन करते दिखाई देते हैं। राजनीति भी उन्हें अपने हितों के लिए इस्तेमाल करती है। नतीजा यह कि अपराध राजनीति का हिस्सा बन गया है और डर समाज का।
जब अपराधी ताकत का केंद्र बन जाए, तब राष्ट्रवाद किसे बचाएगा? देश का हर बड़ा तंत्र, हर मुख्य स्तंभ, अपने लक्ष्य में व्यस्त है नेता वोट बैंक जोडऩे में अधिकारी सत्ता को खुश रखने में मीडिया मुनाफा कमाने में अपराधी ताकत बढ़ाने में। वह इन सबके बीच पीसता रहता है, उम्मीद करता है कि कोई उसके बारे में सोचेगा, लेकिन उसका सपना आज भी अधूरा ही है। राष्ट्रवाद केवल भाषणों, नारों और सोशल मीडिया पोस्ट से नहीं आता। राष्ट्रवाद वह भावना है जिसमे निर्णय जनता के हित में हों, राजनीति नीति पर चले, न कि नीयत पर अधिकारी जनसेवा को प्राथमिकता दें,मीडिया देश की सच्चाई बोले समाज अपराध को नहीं, कानून को सर्वोच्च माने, सच्चा राष्ट्रवाद तभी जिंदा रह सकता है जब हर व्यक्ति अपने व्यक्तिगत लाभ से पहले राष्ट्रहित को रखे। अगर हम चाहते हैं कि राष्ट्रवाद लौटे, मजबूत हो, और आने वाली पीढिय़ाँ एक बेहतर देश देखें, तो शुरुआत हमें ही करनी होगी। जिम्मेदार नागरिक बनकर, सही को सही और गलत को गलत कहकर, और उन संस्थाओं को जवाबदेह बनाकर जिन्हें जनता ने ताकत दी है।जब हम बदलेंगे, तभी व्यवस्था बदलेगी।और जब व्यवस्था बदलेगी, तभी राष्ट्रवाद लौटेगा।






