सपा का सबसे बड़ा दुश्मन बीजेपी नही उसका सीमित वोट बैंक है, जो 30 फीसदी पर अटका है

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प्रशांत कटियार

उत्तर प्रदेश की राजनीति 2027 के लिए खौल रही है और जमीन पर हालात साफ बता रहे हैं कि आने वाला चुनाव अब सिर्फ नारों, पोस्टरों और भीड़ के दम पर नहीं जीता जाएगा। यह चुनाव पूरी तरह आंकड़ों, सामाजिक इंजीनियरिंग और सूक्ष्म वोट प्रबंधन का होगा, जहाँ एक-एक वोट सरकार की दिशा तय करेगा। 2022 और 2024 के आधिकारिक आंकड़े इस हकीकत को काटदार तरीके से सामने रखते हैं कि समाजवादी पार्टी सिर्फ विरोधाभासों से नहीं, बल्कि अपने ही वोटों के गैप से हारती आई है, और अगर वही पैटर्न 2027 में दोहराया गया तो अखिलेश यादव सरकार के दरवाज़े तक पहुँचकर फिर लौट आएँगे। 2022 विधानसभा चुनाव में बीजेपी को कुल 3,80,51,721 वोट (3.8 करोड़) मिले, जो 41.3 फ़ीसदी वोट शेयर था, और इसी के दम पर उसने 273 सीटें जीत लीं। दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी को 2,95,43,934 वोट (2.9 करोड़) मिले, जो 32.1 फ़ीसदी वोट थे, लेकिन सीटें सिर्फ 125 मिलीं। अब यहाँ आंकड़े सबसे ज्यादा चुभते हैं—सपा 7 सीटों पर 1,000 से कम वोटों से हार गई, और 77 सीटें ऐसी थीं जहाँ हार का अंतर सिर्फ 13,006 वोट या उससे कम था। इन सभी 77 सीटों पर अगर सपा को कुल 4,96,408 वोट और मिल जाते, तो वह हर सीट पर टाई की स्थिति में आ जाती और इन 77 सीटों पर सिर्फ एक-एक वोट और मिल जाता, तो सपा 125 की जगह 202 सीटों पर पहुँच कर सरकार बना लेती। यानी सपा हारी नहीं सूक्ष्म प्रबंधन के अभाव में सीटें फिसल गईं।

2024 लोकसभा चुनाव ने यूपी की राजनीतिक तस्वीर को और भी तेज़ी से बदल दिया। इस चुनाव में बीजेपी का वोट शेयर 41.37 फ़ीसदी रहा, जबकि सपा ने अपने इतिहास का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए 33.59 फ़ीसदी वोट हासिल किए। कांग्रेस 9.46 फ़ीसदी, बसपा 9.39 फ़ीसदी, अन्य 3.96 फ़ीसदी, और NOTA 0.72 फ़ीसदी वोट हासिल हुए। लेकिन सीटों में उथल-पुथल कहीं ज्यादा दिखी,सपा 37 सीटें, बीजेपी 33, कांग्रेस 6 सीटों पर आई। यह वही यूपी है जहाँ बीजेपी खुद को अजेय मानती थी, लेकिन यहाँ पहली बार उसकी नींव हिली और सपा ने परंपरागत वोट बैंक से बाहर निकलकर नई जमीन पकड़ ली। इस चुनाव की सबसे बड़ी राजनीतिक हलचल निषाद वोट बैंक में दिखी। सपा ने निषाद समाज में ऐतिहासिक सेंध लगाते हुए संतकबीर नगर में पप्पू निषाद, सुल्तानपुर में रामभुआल निषाद को जिताया, जिन्होंने मेनका गांधी तक को हरा दिया। गोरखपुर जैसी बीजेपी की सुरक्षित भूमि पर सपा के निषाद प्रत्याशी ने रवि किशन की विजय का अंतर 3.75 लाख से घटाकर सिर्फ 1 लाख कर दिया। यह सुनिश्चित संकेत है कि बीजेपी का सामाजिक आधार टूट रहा है और सपा पहली बार उन जातियों में प्रवेश कर रही है जो अब तक उसके लिए बंद दरवाज़े थीं।

विपक्षी INDIA गठबंधन ने इस बार संविधान बचाओ, आरक्षण बचाओ, जाति जनगणना और 30 लाख नौकरियों जैसे मुद्दों को जमीन पर उतारा। इन मुद्दों ने जनमत को प्रभावित किया और सपा को अपने इतिहास का सबसे बड़ा वोट शेयर मिल गया। लेकिन इसके साथ ही बिहार से मिला ताज़ा राजनीतिक सबक यूपी के लिए चेतावनी की घंटी बनकर खड़ा है। बिहार में महागठबंधन की हार यह साफ बता गई कि सिर्फ मुस्लिम यादव समीकरण पर टिक कर चुनाव जीतना अब असंभव है। तेजस्वी यादव पूरी तरह MY समीकरण पर टिका खेल खेलते रहे, कांग्रेस के पास कोई कोर वोट बैंक नहीं था, और असदुद्दीन ओवैसी ने 25 सीटों पर 23 मुस्लिम उम्मीदवार उतारकर 5 सीटें जीत लीं जिससे मुस्लिम वोट भारी संख्या में कट गया। एनडीए लगातार जंगलराज का नैरेटिव जनता के मन में डालता रहा और विपक्ष जवाब देने में कमजोर पड़ गया। नतीजा महागठबंधन ध्वस्त। यही खतरा यूपी में भी उतना ही बड़ा है, क्योंकि आज भी सपा का मूल वोट बैंक यादव मुस्लिम का लगभग 30 फ़ीसदी ही है। इसके बाहर की जातियाँ सपा पर पूरी तरह भरोसा नहीं कर पा रही हैं। 2024 में कुर्मियों ने वोट दिया, लेकिन उनके बीच यह धारणा गहरी है कि सत्ता में आने के बाद सपा उन्हें दरकिनार कर देती है। अन्य पिछड़ी जातियां कुर्मी, मौर्य कुशवाहा, लोधी, काछी, कहार, बिंद सपा से अभी भी भावनात्मक दूरी बनाए हुए हैं। ऊँची जातियों में भरोसा न के बराबर है।

सपा 2024 में जितनी ऊपर उठी है, वह 2027 का ठोस आधार तभी बनेगा जब अखिलेश यादव पारंपरिक राजनीति की दीवार तोड़कर नई सामाजिक रचना तैयार करेंगे। यादव मुस्लिम वोट बैंक की सीमा अब तय है यह 30 फ़ीसदी दिलाता है, लेकिन सरकार नहीं। सत्ता तभी मिलेगी जब अगले 10 फ़ीसदी वोट का नया गठजोड़ बनेगा निषाद, कुर्मी, मौर्य, लोधी, शाक्य, , दलित उपजातियाँ इन्हें साथ लाए बिना सरकार का रास्ता बंद है। यूपी 2027 के लिए साफ है जिसने आंकड़ों को समझा और समाज को जोड़ा, वही राज करेगा, बाकी लोग पोस्टरों और नारों में ही उलझकर रह जाएंगे।

लेखक दैनिक यूथ इंडिया के स्टेट हेड है।

 

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